Nagpanchami Special: महादेव की नगरी काशी में कभी सावन की प्रतिपदा से ही बीन की ध्वनि मुखर होने लगती थी। सपेरों का झुंड घूमने लगता था। हर गली चौराहे पर संपेरे बीन बजाते, नागों को नचाते दिख जाते थे। अब सपेरों का बीन बजा कर गुजारा करना मुश्किल हो गया है। अब नागपंचमी से कुछ दिन पहले भी इक्के-दुक्के सपेरे ही नजर आते हैं। काशी की एक अनोखी परम्परा समाप्ति की तरफ कदम बढ़ा रही है। बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने आए भक्तों की कतार के पास दिखे युवा संपेरे अनमोल कुमार ने बताया कि इस दौर में सांप दिखा कर, बीन बजा कर जीवन यापन बहुत कठिन हो गया है।
उन्होंने बताया कि परिवार की परंपरा का पालन करने के लिए सावन (Nagpanchami Special) में नाग और बीन लेकर निकलता हूं। मेरी एक बेटी है जिसके पालन पोषण के लिए साल के दूसरे महीनों में दूसरा काम करना पड़ता है। जीवन बचपन में अपने दादा जी के साथ सांपों की डलिया लेकर चलते थे।
Nagpanchami Special: बीन बजाते ही दौड़े चले आते थे लोग
दादा जी किसी मोहल्ले में बीन बजाना शुरू करते तो बहुत सारे बच्चे दौड़े-दौड़े आते और उनके इर्द-गिर्द जमा हो जाते। वह अपने पिता के साथ आते थे, तब भी ऐसा ही होता था लेकिन अब वह बीन बजाते-बजाते थक कर चुप हो जाते हैं पर बच्चों का झुंड नहीं दिखता। बड़े-बूढ़े भी अपने घर की खिड़की दरवाजे (Nagpanchami Special) से बाहर झांक कर बाहर आने की बजाय अंदर चले जाते हैं।
महुअर का खेल ना होगा भी बना विलुप्त का कारण
बनारस में संपेरों की अधिकता का एक बड़ा कारण लोकक्रीड़ा महुअर का खेल था। तंत्र-मंत्र और हाथ की सफाई के मेल वाले इस खेल के बंद हो जाने से भी संपेरों का आना बहुत कम हो गया है। महुअर के चंद खिलाड़ियों में एक पंजे लाल बताते हैं कि दो दशक पहले तक नाग पंचमी (Nagpanchami Special) के दिन मोहल्ले-मोहल्ले में महुअर होता था। एक ओर संपेरे तो दूसरी ओर स्थानीय खिलाड़ी। महुअर खेलने वाले संपेरों की अच्छी आमदनी हो जाती थी।