- क्या गाजीपुर के दिग्गज नेता मनोज सिन्हा का सपना रह जाएगा अधूरा
- या फिर वोटों की राजनीति के चलते राजभर के खाते में जाएगी यह सीट
- वैसे तो खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव के लिए कई चेहरे हैं दावेदार
NDA-SBSP: भले ही लोकसभा का चुनाव अगले साल यानी 2024 में होना है। लेकिन इसको लेकर अभी से राजनीतिक दलों की तरफ से हर हथकंडे अपनाने का सिलसिला शुरू हो गया है। एक तरफ सत्ताधारी भाजपा की अगुवाई वाली ‘एनडीए’ गठबंधन है तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई वाली ‘इंडिया’ गठबंधन। दोनों गठबंधन दलों (NDA-SBSP) के नेता अपने-अपने हिसाब से एक-दूसरे को मात देने की तैयारी में जुट गए हैं।
बात उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की करें तो यहां फिलहाल भाजपा ने सियासी दांव चलकर विपक्षियों को चौका दिया है। यह दांव है भाजपा के साथ सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) का गठबंधन (NDA-SBSP))। ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के साथ गठबंधन कर भाजपा ने पेंच तो फंसा ही दिया है।
इसके अलावा भाजपा ने सपा के विधायक दारा सिंह चौहान को भी अपने पाले में करके पूर्वांचल की राजनीतिक पिच पर ओबीसी कार्ड की बैटिंग शुरू कर दी है। वैसे भी -पूर्वांचल की सियासत में जातीय समीकरण का काफी अहम् रोल माना जाता है। ऐसे में पूर्वांचल के एक खास जिले ‘गाजीपुर’ की तरफ सभी दिग्गज नेताओं की निगाहें टिक गयी है।
हो भी क्यों न? यह जिला दिग्गज भाजपा नेता मनोज सिन्हा का है, जहां से वह तीन बार सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में एक संवैधानिक पद पर आसीन है। अब भाजपा के लिए गाजीपुर की सीट को जीतना प्रतिष्ठा का सवाल (NDA-SBSP) बन गया है। इसके लिए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ना चाहता है। यहीं वजह है कि जातीय समीकरण के आधार पर भाजपा ने सुभासपा से गठबंधन कर अपने इरादे जता दिये हैं।
राजनीतिक गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली पारी में मनोज सिन्हा रेल राज्यमंत्री भी रहे। गाजीपुर से तीन बार सांसद रहने वाले मनोज सिन्हा अपने जिले के विकास की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी (NDA-SBSP) थी, यह उनका दावा था।
अपने इसी दावे के साथ उनकी इच्छा थी कि इस सीट को जब वह छोड़े तो वह अपनी विरासत अपने बेटे को सौंप दें। गाजीपुर में हजारों करोड़ की परियोजनाओं के जरिए विकास की आंधी बहाने का दावा करने वाले मनोज सिन्हा को वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।
जातीय समीकरण के चलते जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और बीएसपी प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने एक लाख से ज्यादा वोटों से हरा दिया था, लेकिन वर्तमान स्थिति में अफजाल अंसारी को एक पुराने अपराधिक गैंगस्टर मामले में गाजीपुर के एमपी-एमएलए कोर्ट ने चार साल की सजा सुना दी है, जिसके बाद वे जेल चले गए और उनकी संसद सदस्यता भी समाप्त कर दी गई है। हालांकि अफजाल अंसारी इलाहाबाद हाईकोर्ट की शरण में हैं, जिसमें आगामी 24 जुलाई को फैसला आना है। ऐसे में इस सीट पर उपचुनाव (NDA-SBSP) भी होना तय माना जा रहा है।
राजनीतिक गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो अब सवाल उठता है कि प्रतिष्ठा की यह सीट होते हुए क्या भाजपा अपने दिग्गज नेता मनोज सिन्हा के पुत्र अभिनव सिन्हा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में यहां से उपचुनाव लड़ा सकती है? लेकिन जातीय समीकरण (NDA-SBSP) के आधार पर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व फिलहाल यह खतरा मोल लेने का तैयार नहीं है।
NDA-SBSP: खाली हुई सीट के कई दावेदार
वैसे तो खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव के लिए कई चेहरे दावेदार हैं। इसमें एमएलसी विशाल सिंह चंचल, वर्तमान अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह, रामनरेश कुशवाहा, शोभनाथ यादव, सरोज कुशवाहा, डॉ. संगीता बिंद ‘बलवंत’ के अलावा भी कई नाम चर्चा में हैं। लेकिन शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि इनमें से एक भी नाम ऐसा नहीं है, जो वर्तमान परिस्थिति में स्पष्ट जीत के साथ पार्टी लाइन पर एकमत दावेदार के रूप में दिखता हो।
ऐसे में सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर के साथ गठबंधन (NDA-SBSP) कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। क्योंकि पार्टी किसी भी कीमत पर यह उपचुनाव अपने पाले में करना चाहती है, भले ही वह गठबंधन की झोली में जाए। क्योंकि पार्टी की तरफ से कराये गये सर्वेक्षण के तहत जातिगत समीकरणों के आधार पर भाजपा ने इस जिले को जोखिम वाला मान लिया है।
राजनीतिक गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो पार्टी का साफ मानना है कि इस उपचुनाव में यदि जीत नहीं मिली तो इसका असर मिशन-2024 पर पड़ना तय है, वह भी खासकर पूर्वांचल की सियासी जमीन पर। ऐसे में उपचुनाव के लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन दल (NDA-SBSP) के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर या अरविंद राजभर को सियासी रणभूमि पर उतार कर किला फतह करने की तैयारी में हैं। वजह भी है।
जातीय समीकरण के आधार पर देखे तो गाजीपुर लोकसभा सीट पर सर्वाधिक पांच लाख से अधिक यादव मतदाता है। जबकि दलितों की संख्या भी कम नहीं है, यह भी लगभग पांच लाख के आसपास है।
साढ़े तीन लाख है राजभरों की संख्या
राजभर मतदाता की संख्या साढ़े तीन लाख से अधिक बतायी जाती है। इसके अलावा क्षत्रिय, ब्राह्मण, कुशवाहा, अल्पसंख्यक, निषाद, बिंद आदि समेत कई जातियां भी चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने में माहिर है। बावजूद इसके, ओम प्रकाश राजभर की अगुवाई वाली सुभासपा से हाथ मिलाकर (NDA-SBSP) भाजपा जिले में जातीय समीकरणों के हिसाब से अन्य दलों की तुलना में आगे निकलती नजर आ रही है। ऐसे में दोनों दल इसका लाभ उठाना चाहेंगे। इसके लिए वह इस सीट से अपने-अपने चुनाव चिह्न पर लड़ने के लिए भी दावेदारी करेंगे।

पिछले विस चुनाव में भाजपा का सूपड़ा हो गया था साफ
राजनीतिक गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो भाजपा और सुभासपा ने गठबंधन (NDA-SBSP) के तहत गाजीपुर में वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ा था। तब सात विधानसभा सीट वाले इस जिले में गठबंधन ने पांच सीटें जीतीं थी। वहीं, पिछले यानी 2022 के विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन टूट गया, जिसका का लाभ सपा ने उठाया। इस चुनाव में सपा-सुभासपा के गठबंधन ने जिले की सातों सीटें फतह कर लीं।
इनमें पांच सीटें सपा और दो सुभासपा की झोली में गईं। जिसमें सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर खुद जहूराबाद से दूसरी बार विधायक निर्वाचित हुए। जबकि जखनियां से बेदी राम चुनाव जीते। सभी सीटों पर भाजपा दूसरे स्थान पर रही।
Highlights
जीत-हार के आंकड़ों पर नजर डाले तो सदर सीट में डेढ़ हजार ही था, जबकि सबसे अधिक अंतर से ओम प्रकाश राजभर 46 हजार मत से जीते थे। जबकि शेष सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों को 25-35 हजार वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, जहूराबाद में जीत-हार का आंकड़ा काफी अधिक था। ऐसे में माना जा रहा है कि सुभासपा का हर सीट पर अच्छा वोट बैंक है।
भाजपा कमल के निशान पर लड़ सकती हैं चुनाव
राजनीतिक गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो भाजपा गाजीपुर का उपचुनाव पार्टी के चुनाव चिह्न कमल पर लड़ना चाहती है। इसके लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने सुभासभा मुखिया (NDA-SBSP) को मना भी लिया है और ओम प्रकाश राजभर लगभग इसके लिए तैयार भी है।
भाजपा हाईकमान इस चुनाव को राजभर वोटों के साथ सुभासपा की परीक्षा के तौर पर देख रही है। इसके बाद राजभर के लोकसभा चुनाव में सीटों के दावों पर भी विचार होगा। वैसे, आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सुभासपा कुछ पसंदीदा सीट पर अपना दावा कर रही है। हालांकि राजभर भी भाजपा के इम्तिहान को समझ रहे हैं और वह परीक्षा देने को तैयार हैं। उनके सामने भी और कोई सूरत नहीं है।
NDA-SBSP: यूं ही नहीं बढ़ी है भाजपा की चिंता
राजनीतिक गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव नतीजों ने भाजपा हाईकमान की चिंता बढ़ा दी है। भाजपा ने 2017 के चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें तो जीतीं, लेकिन गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़ जैसे जिलों में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा का पूरा फोकस पूर्वांचल में संगठन (NDA-SBSP) की कमियों को दूर करने के साथ-साथ जातीय समीकरण साधने पर भी है।
पार्टी हाईकमान उत्तर प्रदेश की 80 में से 80 लोकसभा सीटें जीतने के मिशन पर काम कर रही है। पार्टी यह जानती है कि पूर्वांचल की कई सीटों पर भाजपा की हार के पीछे मुख्य कारण राजभर वोट थे। राजभर मतदाताओं की अच्छी संख्या वाले बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ में भाजपा के गढ़ दरकने से भी राजभर वोट पर ओमप्रकाश की पकड़ (NDA-SBSP) ढीली नहीं हुई है। अनिल राजभर का चेहरा आगे कर सुभासपा के वोटों में सेंध लगाने की रणनीति फेल हो गई।
दुविधा की स्थिति में सवर्ण मतदाता
राजनीति गलियारों में गहरी नजर रखने वालों की मानें तो भाजपा और सुभासपा के गठबंधन के बाद गाजीपुर, बलिया और आजमगढ़ के सवर्ण मतदाता दुविधा की स्थिति में हैं। वह कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं है। आखिर वह करें तो क्या करें, यह सोच कर अभी से दुबले होते जा रहे हैं। सवर्ण मतदाताओं का रुझान तो वैसे भी हमेशा से भाजपा की तरफ ही रहा है। लेकिन मौजूदा समीकरण के बाद वह भी पशोपेश में हैं।
खुलकर तो नहीं बोल रहे, लेकिन अंदरखाने में यह बात जरूर चल रही है कि पार्टी के लिए दिन-रात वह मेहनत करते हैं और जब मलाई काटने का वक्त आता है तो बाजी कोई और मार ले जाता है। हालांकि भाजपा हाईकमान को यह बात भी मालूम है कि सवर्ण मतदाताओं में इसको लेकर काफी कष्ट है, लेकिन सियासी विवशता के आगे वह भी बेबस है।
जितेंद्र श्रीवास्तव