- काशी के उस्ताद को याद कर नम हुई आंखें
- कभी नहीं भूलेंगी शहनाई की सुरीली धुनें
- क़द्रदानों ने पेश किया ख़िराजे अक़ीदत, फातिहा पढ़कर की कुरानख्वानी
वाराणसी। शहनाई सम्राट भारत रत्न उस्ताद बिस्म्मिलाह खां की 107वीं जयंती पर उस्ताद के परिजनों और उनके कद्रदानों ने उनकी मजार पर अकीदत के फूल चढ़ाएं और दुआ-ए- खैर मांगी। इसके पूर्व उनके मकबरे पर फातिहा पढ़कर कुरानख्वानी हुई।
वाराणसी के पूर्व मेयर रामगोपाल मोहले ने भारत रत्न बिस्मिल्लाह खां को दरगाह-ए-फातमान पहुंचकर उनकी कब्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने उस्ताद को याद करते हुए कहा कि बाबा भोले की नगरी काशी से पूरी दुनिया में शहनाई का डंका बजाने वाले खां साहब को विदेशों से बड़े-बड़े ऑफर मिले। लोगों ने कहा आप काशी छोड़ हमारे मुल्क में बस जाइए, लेकिन खां साहब नहीं गए। सबसे उंन्होने यही सवाल किया कि देश छोड़ कर आ जाऊंगा, पर वहां मां गंगा को कहां से लाओगे जनाब। काशी और गंगा से लगाव रखने वाले ऐसे महापुरुष की जयंती पर उनको मैं हार्दिक श्रद्धांजलि देता हूं।

कांग्रेस नेता अजय राय ने दी श्रद्धांजलि
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व विधायक अजय राय ने भी भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की मजार पर पहुंच कर श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि हम सब काशीवासी बिस्मिल्लाह खान साहब की जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। बिस्मिल्लाह खां ने जन्म तो डुमराव में लिया, लेकिन अपनी कर्मस्थली काशी को बनाया। गंगा तट पर उंन्होने अपनी महान संगीत साधना की और शहनाई को शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचाया।

बिहार में जन्म, बनारस बनी कर्मस्थली
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनका नाम कमरुद्दीन खान था। वे ईद मनाने मामू के घर बनारस आये थे और उसी के बाद बनारस उनकी कर्मस्थली बन गई।
कार्यक्रम संयोजक शकील अहमद जादूगर ने बताया कि आज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब की 107 वी जयंती दरगाह ए फातमान पर उनके मकबरे पर मनाई जा रही हैं। खां साहब ने अपना समूचा जीवन काशी में बिताया, आज उनकी जयंती पर उनके चाहने वाले लोगों ने यहां एकत्रित होकर उन को श्रद्धा सुमन अर्पित किया।