- कभी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गई थीं सोमा घोष
- राहों में थी तमाम दुश्वारियां
- डॉ० राजेश्वर आचार्य ने उन्हें नौकरी के लिए कर दिया था मना
- इसके बाद संगीत को स्वतंत्र कैरियर बनाने की राह पर चल पड़ी
राधेश्याम कमल
वाराणसी। पद्मश्री डॉ० सोमा घोष बनारस में जन्मी व पली बढ़ी लेकिन अब वह मुबंई में रह रही है। एक जमाने में महान फिल्मकार नवेन्दु घोष की डॉ० सोमा घोष पुत्रवधू हैं। पिता मनमोहन चक्रवर्ती स्वतंत्रता सेनानी और मां अर्चना चक्रवर्ती गायिका रही। डॉ० सोमा घोष अपनी संगीत प्रतिमा का श्रेय मां को देती हैं। उनके व्यक्तित्व पर संगीत की कोमलता के साथ ही पिता की संघर्षशीलता की भी पूरी छाप दिखती है। पद्मश्री डॉ० सोमा घोष इन दिनों प्रसिद्ध ठुमरी गायिका स्व. बागेश्वरी देवी की स्मृति में बनारस में आयोजित स्व. बागेश्वरी देवी स्मृति ठुमरी महोत्सव के सिलसिले में आयी हुई हैं।
भारतरत्न शहनाई के जादूगर उस्ताद स्व. बिस्मिल्लाह खान की दत्तक पुत्री डॉ० सोमा घोष से मुलाकात हुई। इस दौरान उनसे बातचीत की गई। कहा कि मैं बनारस को हमेशा जीते हुए अपने भीतर महसूस करती हूं। बनारस शिव की नगरी है। यह अपने मूल प्रकृति में बिलकुल वैसे ही है जैसा शिव हैं। मुझे लगता है कि मैं खुद भी वैसी हूं।सोमा घोष को न जाने कितने पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें पद्मश्री के अलावा नारी शक्ति अवार्ड, गंधर्व कोकिला समेत कई पुरस्कार मिले।

डॉ० राजेश्वर आचार्य से मिली प्रेरणा
वे बताती हैं कि संगीत की दुनिया में उन्होंने जो भी मुकाम हासिल किया उसकी प्रेरणा उन्हें डॉ० राजेश्वर आचार्य से मिली। कहा कि आचार्यजी ने अगर मुझे नौकरी करने से मना न किया होता तो आज वह यह मुकाम हासिल न कर सकी होती। कहा कि मैं उन दिनों बनारस में थी। संगीत के ही सिलसिले में एक नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गोरखपुर गई थीं। बोर्ड में डॉ० राजेश्वर आचार्य भी थे। सवाल जवाब में मेरी रचनात्मक प्रकृति जानने के बाद उन्होंने कहा कि तुम नौकरी के लिए नहीं बनी हो। हर कलाकार का एक चरम होता है और तुममें एक अलग ही प्रतिभा है। बेहतर होगा कि तुम संगीत में अपनी अलग जगह बनाओ। इसके बाद हमने तमाम मुश्किलों के बावजूद नौकरी के बारे में कभी सोचा भी नहीं और संगीत को स्वतंत्र कैरियर बनाने की राह पर चल पड़ी।
पं. नारायण चक्रवर्ती व बागेश्वरी देवी से ली संगीत की शिक्षा
वे बताती है कि संगीत की शिक्षा तो हमने अपनी मां के अलावा सेनिया घराने के पं. नारायण चक्रवर्ती व बनारस घराने की महान ठुमरी गायिका श्रीमती बागेश्वरी देवी से ली। इनके अलावा हमने ग्वालियर घराने के डॉ० चितरंजन जोतिषी से भी गायकी की बारीकियों को सीखा। वे बताती है कि ठुमरी की शिक्षा हमने बागेश्वरी देवी से ली है। जबकि अपनी मां से ख्याल गायकी सीखी।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का स्नेह 2001 में मिला
वे बताती हैं कि शहनाई के जादूगर भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जिन्हें वह बाबा कह कर पुकारती थी। उनका स्नेह बनारस में ही एक समारोह में प्रस्तुति के दौरान मिला। 2001 में एक समारोह में उन्होंने मेरा गायन सुना और काफी प्रभावित हुए। कहा कि तुम मेरे साथ जुगलबंदी करोगी। मुझे बतौर बेटी अपनाने के पहले उन्होंने अपने परिवार को बताया और सभी की अनुमति ली। इसके बाद इसकी घोषणा की।
मुंबई में 2002 में बाबा के साथ हुई जुगलबंदी में अमिताभ-जया व नौशाद भी रहे
वे बताती है कि वर्ष 2002 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के साथ मुंबई में जुगलबंदी हुई। हमें याद है कि उस समय महानायक अमिताभ बच्चन व जया बच्चन भी टिकट लेकर समारोह में आये थे। प्रख्यात संगीतकार नौशाद जी पहली पंक्ति में श्रोताओं में थे। बाद में उन्होंने ग्रीन रूम में कहा कि ख्याल गायकी को तो तुमने बिलकुल नई दिशा दी है। ठुमरी, होरी जैसी विधाओं को तो तुम नई पीढ़ी के लिए लोकप्रिय बना रही हो।

दरबारी महफिल का भी किया प्रयोग
वे बताती हैं दरबारी महफिल में प्रयोग कम, परम्परा का पुनर्जीवन ज्यादा है। दरबारी महफिलें पहले से होती रही है। गौहर जान के समय में इसमें शास्त्रीय परम्परा का भरपूर ख्याल रखा जाता था। हमने उसे आज भी समय के अनुरूप पुनर्जीवन देने का प्रयास किया। आज शास्त्रीय संगीत की परम्परा का लोप होता जा रहा है के सवाल पर कहा कि यह कहना सही नहीं होगा। क्योंकि नई पीढ़ी के गायक अपने ढंग से जो नये नये प्रयोग कर रहे हैं उसमें बहुत कुछ शास्त्रीय परम्परा से भी लिया जा रहा है। आज जो फास्ट म्यूजिक है उसमें धूम धड़ाका तो खूब है लेकिन कहीं कोई रिलैक्स नहीं है। अगर आप रस में गायेंगे तो अच्छा लगेगा।
पुराने वाद्यों को बचाने के लिए मधु मुर्च्छना प्रोजेक्ट शुरू किया
वे बताती है कि इस ओर सबसे पहले संगीतकार नौशाद साहब ने ध्यान दिया था । पुराने वाद्य यंत्र बजाने वाले दाने-दाने के मोहताज हैं। पुराने वाद्यों को बचाने के लिए मधु मुर्च्छना प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस विरासत को बचाना जरूरी है। इस प्रोजेक्ट को चलाने में करोड़ों का खर्च है। अपने हर कंसर्ट में एक प्राचीन वाद्य इस्ट्रोड्यूस कर रही हूं। जिसका अच्छा असर देखने को मिल रहा है।