Pahalgam Attack: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले की न्यायिक जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने इस याचिका पर सख्त टिप्पणी करते हुए याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई और कहा कि यह समय देश की एकता और सुरक्षा बलों के समर्थन का है, न कि उनके मनोबल को तोड़ने वाला सवाल उठाने का।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं से तीखे शब्दों में कहा, “क्या आप सुरक्षा बलों का मनोबल गिराना चाहते हैं? ऐसी जनहित याचिकाएं दाखिल करने से पहले राष्ट्रीय भावना और संवेदनशीलता को समझना चाहिए। पूरा देश इस समय आतंकवाद के खिलाफ एकजुट खड़ा है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायिक जांच की मांग करने वाले लोग यह न समझें कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी आतंकी हमले की जांच के विशेषज्ञ बन गया है। “हमारा कार्य निर्णय देना है, जांच करना नहीं,” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने दो टूक कहा।
हालांकि अदालत ने यह संकेत अवश्य दिया कि यदि याचिका में छात्रों या पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर कोई मुद्दा हो, तो उसे संबंधित हाईकोर्ट में प्रस्तुत किया जा सकता है। इस टिप्पणी के बाद याचिका दाखिल करने वालों में से एक ने अपनी याचिका वापस भी ले ली।

यह जनहित याचिका कश्मीर निवासी मोहम्मद जुनैद, फतेश कुमार साहू और विकी कुमार की ओर से दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से मांग की थी कि घाटी में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर स्पष्ट और कड़े कदम उठाए जाएं ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
Pahalgam Attack: 22 अप्रैल की भयावह दोपहर, धर्म पूछकर मारी गई थी गोलियां
गौरतलब है कि 22 अप्रैल को अनंतनाग जिले की पहलगाम तहसील स्थित बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया था। इस हमले में कुल 26 पर्यटक मारे गए थे, जिनमें एक नेपाली नागरिक भी शामिल था। हमले की शुरुआत उस वक्त हुई जब पर्यटक सामान्य रूप से घाटी में घूम रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आतंकियों ने पुलिस की वर्दी पहनकर पहले भ्रम की स्थिति बनाई, फिर अचानक अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
चश्मदीद और हमले में जीवित बची असावरी जगदाले ने घटना की जो दास्तान बताई, वह रोंगटे खड़े कर देने वाली है। असावरी महाराष्ट्र के संतोष जगदाले की बेटी हैं, जो इस हमले में मारे गए। उन्होंने बताया कि उनका परिवार टेंट में छिप गया था, लेकिन एक आतंकी अंदर घुस आया। उसने उनके पिता से इस्लामी कलमा पढ़ने को कहा, और असमर्थता पर तीन गोलियां मार दीं – सिर, कान और पीठ में। वहीं, पास में मौजूद उनके चाचा को भी आतंकियों ने गोलियों से छलनी कर दिया।
हमले की शुरुआत में जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली थी, लेकिन बाद में संगठन इस दावे से पलट गया। इस मामले की जांच अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) कर रही है, जिसने 27 अप्रैल को जम्मू में इस हमले को लेकर केस दर्ज किया है।