- युवा पीढ़ी को संगीत से जोड़ने में मुझे मिली कामयाबी: पं. देवाशीष डे
- शिष्यों के साथ खुलती है आंख और गुजरती है रात
- दुनिया के दर्जनों देशों में दे चुके हैं व्याख्यान, अनगिनत सम्मान से नवाजे गये
राधेश्याम कमल
वाराणसी। भारतीय शास्त्रीय संगीत से मुझे युवाओं को जोड़ने में कामयाबी मिली है। अब तक हजारों शिष्यों को शास्त्रीय संगीत में पारंगत कर चुका हूं। रोज मेरी आंख विद्यार्थियों के साथ ही खुलती है और रात भी शिष्यों संग गुजरती है। बरसों की मेरी मेहनत आज रंगत ला रही है। कोई भी ऐसा विश्वविद्यालय, स्कूल अथवा मंच नहीं होगा जहां पर संगीत के क्षेत्र में सीखाये हुए मेरे शिष्य न हो। हर जगहों पर मेरे सीखाये शिष्य कामयाब हो रहे हैं और साथ ही मेरा भी नाम रौशन कर रहे हैं। यही वजह है कि मुझे उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिला।

पं. देवाशीष डे के पुत्र डॉ० शुभंकर डे जो कि असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, वे भी गायन में पारंगत हैं। संगीत पर शुभंकर डे की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। उनकी सुपुत्री जयन्तिका डे भी शास्त्रीय गायन में दक्ष हैं। पिछले दिनों जयन्तिका डे को प्रयाग संगीत समिति प्रयागराज की ओर से नगद व गोल्ड मेडल दिया गया। इसके साथ ही उनकी शिष्या आद्या मुखर्जी को भी गोल्ड मेडल दिया गया। देखा जाय तो उनका पूरा परिवार ही शास्त्रीय संगीत के प्रति समर्पित है।
पं० देवाशीष डे ने बातचीत में बताया कि अब तक लगभग चार हजार विद्यार्थियों को गायन के अलावा तबला व हारमोनियम में पारंगत कर चुका हूं। मेरे संगीत की गमक शिष्यों के सहारे हवा में फैल रही है। अब मुझे बहुत ज्यादा प्यार मिल रहा है। यह एक ऐसी चीज है जो खरीदी नहीं जा सकती है। पं. देवाशीष डे एक दिग्गज कलाकार होने के बावजूद उनमें सौम्यता व आदर का भाव झलकता है। एक ही मुलाकात में वह सभी के चहेते बन जाते हैं। यह कहना है बनारस घराने के प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. देवाशीष डे का। पं. देवाशीष डे से जनसंदेश टाइम्स ने खास मुलाकात की।

पं. पशुपतिनाथ मिश्र व मुकुंद विष्णु कालविंट से सीखी गायन की बारीकियां
पं. देवाशीष डे बताते हैं कि उनके प्रथम गुरु रामापुरा निवासी प्रख्यात शास्त्रीय गायक स्व. पं. पशुपतिनाथ मिश्र रहे। जिनके सानिध्य में तकरीबन 9 सालों तक रह कर उनसे गायन की बारीकियों को सीखा। बताया कि शुरूआती दौर में वह एक स्कूल में गायन सीखने जाते थे। जहां पर स्व. पं. पशुपतिनाथ मिश्र सीखाया करते थे। उन्होंने हमसे पूछा कहां रहते हो। हमने बताया कि रामापुरा तो वे बोले अरे यह तो हमारे घर के ही पास है। तुम अच्छा गाते हो। घर पर आ जाया करो। इनके बाद उनके दूसरे गुरु संव. मुकुंद विष्णु कालविंट रहे। उनके यहां जाकर भी हमने गायन की बारीकियों को सीखा। इसके बाद तो हमें हर जगहों पर मंचों पर कामयाबी मिलने लगी।
जैसे-जैसे ख्याति बढ़ती गई बड़े मंच भी मिलने लगे। मुझे अनगिनत सम्मान मिले जो हमारी जिंदगी का अनमोल धरोहर है। देवाशीष डे की संगीत पर दो पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। सुबह-ए-बनारस का पहला कार्यक्रम 24 नवम्बर 2016 में पं. देवाशीष डे के गायन से हुआ था। इसके बाद तो लगातार कई महीने तक काशी के अस्सी घाट पर सुबह-ए-बनारस के मंच पर उनका गायन व उनके शिष्य शिष्याओं का संगीत का कार्यक्रम चलता रहा जो प्रशंसनीय है।

शिल्पायन म्यूजिक हब में हर हफ्ते होता है संगीत का आयोजन
पं. देवाशीष डे ने भेलूपुर में शिल्पायन म्यूजिक हब के सभागार में शिष्यों को गायन, वादन में प्रशिक्षित करते हैं। इसमें उनके साथ शास्त्रीय गायिका डॉ० रागिनी सरना भी बच्चों को प्रशिक्षित करती हैं। डॉ० रागिनी सरना भी एक दक्ष गायिका हैं। इस समय यहां पर ढाई सौ बच्चे संगीत सीख रहे हैं। अब तक सौ बच्चों को स्कालरशिप भी दिया जा चुका है। सभागारों का नाम भी अपने गुरूओं के नाम पर रखा है। यहां पर हर सप्ताह संगीत का आयोजन होता है। जिसमें वह नये उभरते हुए कलाकारों को मौका देते हैं। वरिष्ठ कलाकारों का भी कार्यक्रम होता है। ताकि विद्यार्थियों को अच्छा संगीत सुनने का मौका मिले। यहां पर उस्ताद साहिद परवेज, अजय शंकर प्रसन्ना, पं. प्रभात कुमार, अशागर हुसैन खान, पद्मश्री शेखर सेन, पद्मश्री डॉ० सोमा घोष, पद्मश्री डॉ० राजेश्वर आचार्य, अभिनेत्री दीप्ति नवल आदि आकर इसकी प्रशंसा कर चुके हैं।

50 देशों में हैं उनके सिखाए हुए शिष्य
पं. देवाशीष डे बताते हैं कि लगभग 50 देशों में उनके सीखाये हुए शिष्य हैं। इनमें अमेरिका, जापान, ताइवान, फ्रांस, स्पेन, इजराइल, यूके, इटली, डेनमार्क, नार्वें, अर्जेटिना, स्वीटजरलैंड आदि प्रमुख हैं। इन दिनों जापान का 12 सदस्यीय एक दल उनके शिल्पायन में आया हुआ है जो यहां पर एक हफ्ते तक रह कर भारतीय संगीत की बारीकियों को सीखेंगे। इससे पूर्व वह आनलाइन भी उन्हें सीखा रहे थे।
पं. देवाशीष डे को वैसे तो ढेरों पुरस्कार व सम्मान मिले जिसकी गिनती नहीं है। उन्हें रायपुर में पं. विमलेन्दु मुखर्जी अवार्ड, दिल्ली में वसंत ठकार फेलोशिप व संस्कृति मंत्रालय से सीनियर फेलोशिप मिली।