Pishachmochan Kund: पितरों का पक्ष पितृपक्ष शनिवार से शुरू हो रहा है। 15 दिनों के इस पितृपक्ष में लोग अपने पितरों का तर्पण करेंगे। इस दौरान काशी के पिशाचमोचन कुंड पर चहलकदमी बढ़ जाएगी। प्राचीन कथाओं के मुताबिक, काशी में मृत्यु को खास माना जाता है। स्वयं कबीरदास के काल में भी काशी में मृत्यु से मोक्ष प्राप्ति को मान्यता दी जाती थी। लेकिन काशी के पिशाचमोचन कुंड पर लोग अपने परिजनों के आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। वैसे तो यहां पितरों के तर्पण करने वाले रोज ही यहां आते हैं। किन्तु मान्यता है कि पितृपक्ष में तर्पण करने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
हिन्दू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, पितृपक्ष में पूर्वजों को याद करके पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। आज हम वाराणसी के पिशाचमोचन के कुंड (Pishachmochan Kund) और मान्यताओं के बारे में बात करेंगे, जिसे सुनकर अप भी दंग रह जाएंगे। काशी में पिशाचमोचन कुंड एक ऐसा स्थान है, जहां के बारे में मान्यता है कि इस कुंड पर त्रिपिंडी श्राद्ध करने से पूर्वजों को प्रेत-आत्माओं की बाधा और अकाल मृत्यु से होने वाली व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है।

यहीं खुलते हैं बैकुंठ के द्वार
पिशाचमोचन कुंड (Pishachmochan Kund) एक ऐसा स्थान है, जहां पर पितृपक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध करने वालों का रेला लगता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, काशी के इस कुंद में श्राद्ध कर्म से पितरों के लिए बैकुंठ के द्वार यहीं खुलते हैं। कुंड के बारे में मान्यता है कि भगवान शंकर ने स्वयं प्रकट होकर इस कुंड को वरदान दिया था कि जो अपने पितरों का श्राद्ध करेगा, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी।
काशी में ही होता है पितरों का त्रिपिंडी श्राद्ध
गरुण पुराण के मुताबिक, सिर्फ काशी में ही पिशाचमोचन कुंड (Pishachmochan Kund) पर पितरों का त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है। यहां पितरों को जन्म-जन्मान्तर के बंधनों से मुक्ति दिलाने हेतु कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं। यहां पूजा करते समय अलग-अलग कलश पर त्रिदेवों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा की जाती है। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि धरती पर गंगा नदी का प्राकट्य के पहले से ही यह कुंड स्थापित है। भटकती आत्माओं के बैकुंठ जाने का मार्ग भी यहीं से खुलता है।

काशी खंड में भी इस कुंड (Pishachmochan Kund) का जिक्र मिलता है। इसके अनुसार, कुंड के किनारे बैठकर अकाल मृत्यु के शिकार हुए पितर के लिए श्राद्ध कर्म करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। तीर्थ पुरोहित दीपक पाण्डेय ने बताया कि ये कुंड अनादि काल से पिशाचमोचन में स्थित है तब इसे विमलोदक सरोवर के नाम से जाना जाता था। पुष्कर के रहने वाले ब्राह्मण की अकाल मौत हो गई और वह पिशाच योनि में भटकते हुए विमलोदक सरोवर तक पहुंच गए। सरोवर में डुबकी लगाते ही ब्राह्मण को पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई।
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Pishachmochan Kund: पिशाचमोचन पर ही अश्वदान की परंपरा
काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी का कहना है कि काशी को प्रथम पिंड कहते हैं। इसलिए सबसे पहले लोग काशी में पिशाचमोचन कुंड पर आकर पिंडदान करते हैं। उसके बाद गया और फिर अंत में केदारनाथ जाते हैं। पिशाचमोचन तीर्थ पर अश्वदान करने की परंपरा है जो ना तो प्रयागराज में होती है और ना ही गया में। अश्वदान के बाद ही यजमान प्रेत कुंड में पिंड डालने का अधिकारी होता है।
अच्छी और बुरी दोनों आत्माओं का वास
जिस प्रकार इस कुंड (Pishachmochan Kund) की कई मान्यताएं हैं, ठीक वैसे ही इस कुंड के पास स्थित पीपल के पेड़ के बारे में भी कई मान्यताएं हैं। इस पीपल के पेड़ में पितरों का तर्पण करने आए लोगों ने कई सिक्कों और कीलों को ठोंका है। मान्यता है कि यहां अतृप्त आत्माएं यानी अच्छी और बुरी दोनों ही आत्माओं का वास होता है। सिक्कों और कीलों के साथ ही लोग मृतक व्यक्ति की तस्वीर भी लगाते हैं। पितृपक्ष के 15 दिनों में यहां लाखों की संख्या में पितरों का तर्पण करने वालों की भीड़ जुटती है।
