वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीएचयू स्वतंत्रता भवन पहुंच चुके हैं। यहां उन्होंने स्वतंत्रता भवन में आयोजित कार्यक्रम में काशी सांसद संस्कृत प्रतियोगिता के टॉपर्स को सम्मानित किया। पीएम के साथ सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ व बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी मौजूद रहे। पीएम ने इस कार्यक्रम के दौरान सांसद फोटोग्राफी प्रतियोगिता, सांसद संगीतप्रतियोगिता समेत अन्य श्रेणियों में आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं को प्रमाण पत्र व मेडल देकर सम्मानित किया।
पीएम ने अपने भाषण की शुरुआत नम: पारवती पतये हर हर महादेव के साथ की। उन्होंने कहा कि काशी पहले से ही सर्व विद्या की राजधानी रही है। आज काशी का वह सामर्थ्य और स्वरुप फिर से संवर रहा है। ये पूरे भारत के लिए गौरव की बात है। पिछले 10 वर्षों में काशी में जो विकास कार्य हुए हैं, उसके संबंध में संपूर्ण जानकारी के लिए आज यहां दो बुक भी लांच की गई हैं। पिछले 10 वर्षों में काशी ने जो विकास की यात्रा की है। उसके हर पड़ाव और यहां की संस्कृति का वर्णन इन किताबों में किया गया है।
पीएम मोदी ने कहा कि हम सब तो निमित्त मात्र हैं। काशी में करने वाले तो महादेव हैं। जहां महादेव की कृपा हो जाती है, वह धरती संपन्न हो जाती है। काशी केवल हमारी आस्था का ही तीर्थ नहीं है, ये भारत की शाश्वत चेतना का जाग्रत केंद्र है। पीएम ने कहा, ‘एक समय था जब भारत की समृद्धि की गाथा पूरे विश्व में गाई जाती थी। इसके पीछे केवल भारत की केवल आर्थिक ताकत ही नहीं थी। इसके पीछे हमारी सांस्कृतिक समृद्धि भी थी। काशी जैसे हमारे तीर्थ और विश्वनाथ धाम जैसे हमारे मंदिर राष्ट्र की प्रगति की यज्ञशाला हुआ करती थी। यहां साधना होती थी और शास्त्रार्थ भी होते थे। यहां संवाद होते थे और शोध भी होते थे। यहां संस्कृति के स्रोत भी थे और साहित्य संगीत की सरिताएं भी थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीएचयू के स्वतंत्रता भवन में आयोजित सांसद संस्कृत प्रतियोगिता पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान अपने संबोधन में कहा कि काशी शिव की भी नगरी है। यह बुद्ध के उपदेशों की भी भूमि है। काशी जैन तीर्थकरों की जन्मस्थली भी है और शंकराचार्य को भी यहां से बोध मिला था। पूरे देश और दुनिया के कोने-कोने से भी ज्ञान, शोध और शांति की तलाश में लोग काशी आते हैं। हर प्रांत, हर भाषा, हर बोली, हर रिवाज़ के लोग आकर यहां बसे हैं। जिस स्थान पर ऐसी विविधता होती है, वहीं नए विचारों का जन्म होता है। काशी तमिल संगमम और गंगा पुष्करालु महोत्सव जैसे एक भारत श्रेष्ट भारत अभियानों का भी विश्वनाथ धाम हिस्सा बना है। नई काशी नए भारत की प्रेरणा बनकर उभरी है। मैं आशा करता हूं कि यहां से निकले युवा भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति के कार्यवाहक बनेंगे।