Ramnagar Ramleela: संसार में त्याग का दूसरा नाम भरत है। जैसा उन्होंने अपने बड़े भाई के लिए त्याग किया वैसा आज किसी के लिए करना संभव नहीं है। श्रीराम के समझाने पर उनका खड़ाऊ लेकर अयोध्या लौटे भरत उनके खड़ाऊं को राज सिंहासन पर रखकर वहां की समस्त जिम्मेदारी अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को सौंप कर नंदीग्राम चले गए। जहां पर्ण कुटी बनाकर वह निवास करने लगे।
चित्रकूट में श्रीराम को मनाने के लिए गए भरत को खुद अयोध्या [Ramnagar Ramleela] वापस लौटने के लिए श्रीराम ने मना लिया। वे उनकी बात मान गए और अयोध्या वापस लौटने के लिए तैयार हो गए। अयोध्या लौटने से पहले भरत ने चित्रकूट के पावन स्थलों को देखने की इच्छा व्यक्त की। श्रीराम ने उन्हें अत्रि मुनि की आज्ञा से चित्रकूट देखने की अनुमति दी। मुनि के कहने पर भरत ने सभी तीर्थों के जल को पहाड़ के समीप स्थित कर कूप में रख दिया। जिसे मुनि ने भरत कूप का नाम दिया। जिसकी महिमा श्रीराम सबको बताते हैं।

Ramnagar Ramleela: भरत की आरती के साथ समाप्त हुई रामलीला
भरत उनसे कहते हैं कि मेरी सभी इच्छाएं पूरी हुई अब आप जाने की आज्ञा दीजिए। श्रीराम उन्हें सब प्रकार से समझाते हैं। संतोष न होने पर उनको अपना खड़ाऊं देकर विदा करते हैं। जिससे भरत आनंदित हो उठते हैं। उनसे गले मिलकर अयोध्या वासियों को लेकर वापस चल पड़ते हैं। उधर सबको विदा [Ramnagar Ramleela] करके जब श्रीराम अपनी कुटिया में पहुंचे। यहीं पर सीता और लक्ष्मण के साथ आरती हुई।
दूसरी ओर, अयोध्या पहुंचने के बाद भरत ने श्रीराम का खड़ाऊं राज सिंहासन पर रखकर अयोध्या की देखरेख की जिम्मेदारी शत्रुघ्न को सौंप कर नंदीग्राम चले गए। और यहां पर पर्ण कुटी बनाकर रहने लगे और श्रीराम के वन से वापस लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। नंदीग्राम में भरत की आरती के बाद रामलीला को विराम दिया।