Rana Sanga Controversy: देश के गौरव और महान योद्धा राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी कर सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने खुद को ही नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी को भी एक बड़े राजनीतिक संकट में डाल दिया है। करणी सेना और क्षत्रिय समाज के विरोध के बाद पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को खुद मोर्चा संभालना पड़ा। हालांकि सपा सांसद ने अभी तक अपने बयान के लिए माफी नहीं मांगी है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा इस मुद्दे को और न बढ़ाने के प्रयास स्पष्ट दिखने लगे हैं। अखिलेश यादव ने अपने नेताओं को धार्मिक और ऐतिहासिक विषयों पर संयम बरतने की नसीहत देकर यह संकेत दे दिया है कि पार्टी अब इस मुद्दे से दूरी बनाना चाहती है।
रामजीलाल सुमन ने 21 मार्च को राज्यसभा में राणा सांगा को “गद्दार” करार देते हुए बयान दिया था, जिसने देशभर में क्षत्रिय समाज और करणी सेना को आक्रोशित कर दिया। देखते ही देखते यह विवाद आग की तरह फैला और यूपी, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में समाजवादी पार्टी के खिलाफ तीव्र प्रदर्शन हुए। आगरा में सांसद के घर का घेराव किया गया, वहीं लखनऊ जैसे शहरों में सड़कों पर उतरकर करणी सेना और क्षत्रिय समाज ने विरोध जताया।
Rana Sanga Controversy: राजनीतिक समीकरणों में उलझी सपा
विश्लेषकों का मानना है कि समाजवादी पार्टी इस पूरे मामले में अब साफ तौर पर बैकफुट पर है। राणा सांगा को केवल एक जाति विशेष के प्रतीक के रूप में नहीं देखा जा सकता। वे भारतीय इतिहास के एक वीर पुरुष रहे हैं, जिन्हें सभी वर्गों का सम्मान प्राप्त है। ऐसे में पार्टी को यह आभास हो गया कि इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से उसे लाभ की बजाय भारी नुकसान हो सकता है, विशेषकर आने वाले चुनावों के संदर्भ में।
दलित बनाम क्षत्रिय का नैरेटिव फेल
कुछ राजनीतिक समीकरणों को साधने की कोशिश में रामजीलाल सुमन का बयान कहीं न कहीं दलित बनाम क्षत्रिय संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार करता नजर आया, लेकिन यह नैरेटिव टिक नहीं सका। दरअसल, राणा सांगा जैसे राष्ट्रनायक को लेकर टिप्पणी को समाज के व्यापक तबके ने नकारा। विश्लेषकों का कहना है कि सुमन दलित राजनीति में बड़े चेहरे नहीं हैं जो इस विवाद से सपा को कोई विशेष वोटबैंक दिला सकें। उलटे इस बयान से पार्टी की छवि को ही ठेस पहुंची।
अखिलेश की चुप्पी और समझदारी
हालांकि अखिलेश यादव रामजीलाल सुमन के आगरा स्थित आवास पर उनसे मिलने गए थे, लेकिन उन्होंने कहीं भी उनके बयान का समर्थन नहीं किया। न ही सार्वजनिक मंच पर सुमन के पक्ष में कोई बयान दिया। इसके बजाय, उन्होंने पार्टी नेताओं को स्पष्ट तौर पर धार्मिक और ऐतिहासिक मुद्दों पर बयानबाजी से बचने की सलाह दी, जो यह संकेत देती है कि पार्टी अब इस मामले को सुलझाना चाहती है न कि उसे और तूल देना।
क्षत्रिय समाज का प्रभाव और भविष्य की चिंता
राजनीति के जानकारों का मानना है कि क्षत्रिय समाज की संख्या भले ही कई क्षेत्रों में कम हो, लेकिन वह राजनीतिक प्रभाव और जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। ऐसे में सपा के लिए इस समाज की नाराजगी को नजरअंदाज करना कठिन है। उन्होंने कहा कि यह विरोध किसी राजनीतिक दल की योजना का हिस्सा नहीं है, बल्कि जनभावनाओं की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि रामजीलाल सुमन के बयान ने समाजवादी पार्टी को एक असहज स्थिति में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि राणा सांगा जैसे राष्ट्रनायक पर टिप्पणी करके ठाकुर और दलित के बीच फूट पैदा करने की कोशिश राजनीति को कमजोर ही करेगी, मजबूत नहीं।
भाजपा पर सपा का आरोप भी फीका
समाजवादी पार्टी की ओर से यह आरोप भी लगाया गया कि यह विरोध प्रदर्शन भाजपा के इशारे पर हो रहे हैं। लेकिन यह तर्क अधिक प्रभावशाली नहीं हो पाया, क्योंकि राणा सांगा को लेकर टिप्पणी से समाज का बड़ा वर्ग आहत हुआ है। यदि यह केवल सियासी विरोध होता, तो इतने व्यापक स्तर पर प्रतिक्रिया नहीं होती।
Highlights
सपा की रणनीति में बदलाव के संकेत
सपा की रणनीति अब साफ दिख रही है—पार्टी अब इस विवाद से दूरी बना रही है। अखिलेश यादव जान चुके हैं कि यह मुद्दा उनकी राजनीतिक जमीन को नुकसान पहुंचा सकता है। विशेष रूप से ऐसे समय में जब यूपी में सामाजिक समीकरण और वोट बैंक को लेकर संघर्ष तेज हो रहा है, अखिलेश किसी भी संवेदनशील मुद्दे पर और ज्यादा चोट नहीं करना चाहते।