- रथयात्रा मेला (Rathyatra Mela) मंगलवार की सुबह मंगला आरती के बाद शुरू
- 14 पहियों के रथ पर सवार भगवान् जगन्नाथ श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहे
- 15 दिनों तक बीमार चल रहे भगवान जगन्नाथ ने आज ठीक होकर अपने भक्तों का दर्शन दिया
वाराणसी | काशी के लक्खा मेले में शुमार तीन दिवसीय रथयात्रा मेले (Rathyatra Mela) का शुभारम्भ आज से हो गया। 15 दिनों के बाद भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ डोली यात्रा के लिए निकले जिसे रथयात्रा मेला (Rathyatra Mela) या लक्खा मेला भी कहते हैं। यह मेला तीन दिनों का होता है जिसे हजारों के संख्या में श्रद्धालु नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन प्राप्त करते हैं।

Highlights
Rathyatra Mela 2023 : इस बार इस मेले का है 221वां साल
काशी का सुप्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा मेला (Rathyatra Mela) मंगलवार की सुबह मंगला आरती के बाद शुरू हुआ। पुजारी ने भगवान् जगन्नाथ, भाल बलभद्र और बहन सुभद्रा की महाआरती की जिसके बाद आम श्रद्धालुओं के लिए दर्शन शुरू हो गए। 14 पहियों के रथ पर सवार भगवान् जगन्नाथ श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहे हैं। साल 1802 में काशी में शुरू हुए इस रथयात्रा मेले का इस बार 221वां साल है।

भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है तुसली का माला
भक्त देर रात से ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन को आतुर दिखे। परंपरागत तरीके से बेनी के बगीचे में आधी रात भगवान जगन्नाथ, भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा की मंगला आरती के बाद प्रतिमा को रथ पर विराजमान किया गया। यहां भी महाआरती के बाद रथयात्रा मेला (Rathyatra Mela) शुरू हो गया। भक्त अपने भगवान से मिलने के लिए आतुर नजर आए। हाथों में तुलसी की माला लिए सभी ने सुख समृद्धि व अच्छे स्वास्थ की कामना की।
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इस मेले (Rathyatra Mela) में जहां एक ओर भवगान के दर्शन प्राप्त कर लोग खुश नजर आए वहीं इस मेले को और आकर्षित बनाया वहां पर लगाए गए नानखटाई के ठेलों ने क्योंकि इस मेले में मिलने वाले नानखटाई बहुत प्रचलित हैं। जो भी लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं वह इसे जरूर खरीदते हैं। इसके साथ ही इस मेले में खिलौनो और अन्य साज सज्जा की भी दुकाने लगाई गयी है। दर्शन के बाद बच्चों ने झूलों का भी लुफत उठाया।

भगवान का अलग-अलग रंग के कपड़ों के साथ श्रृंगार
रथयात्रा मेेले (Rathyatra Mela) के बारे में प्रधान पुजारी पंडित राधेश्याम पांडेय ने बताया कि ज्येष्ठ पूर्णिमा पर भगवान भक्तों द्वारा स्नान कराने पर बिमार पड़ जाते हैं ऐसे में उन्हें स्वस्थ करने के लिए परवल का जूस दिया जाता है जब 15वें दिन वह स्वस्थ हो जाते है तब वह काशी में भ्रमण करने के लिए और भक्तों का दर्शन देने लिए यहां पर आते हैं।
उन्होंने बताया कि तीन दिन में तीन वस्त्र पहले दिन पीला, दूसरे दिन लाल और तीसरे दिन सफेद रंग के वस्त्र के साथ उनका श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद भगवान वापस मंदिर में जाकर विराजित हो जाते है। ऐसा माना जाता है कि इस रथयात्रा मेले (Rathyatra Mela) के दौरान भगवान के दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

पूरी में स्थित भगवान जगन्नाथ से इनके संबंध के बारे में उन्होंने बताया कि जो मेले के संस्थापक द्वारा ही इनकी मूर्ति तैयार की जाती है और पूरी के ही रहने वाले ब्रह्मचारी जी के द्वारा ही इस मूर्ति को स्थापित किया गया था। इस मेले में हजारें की संख्या में दूर-दराज से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं।
श्रद्धालुओं ने की सुख-समृद्धि की कामना
दर्शन करने आए श्रद्धालु ने बताया कि इस तीन दिन के लक्खा मेले में आज हम पूरे परिवार के साथ यहां दर्शन करने के लिए आए हैं और भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा व भाई बलभद्र के दर्शन प्राप्त कर हमें बेहद खुशी मिली है। हम सभी ने अपने परिवार के सुख समृद्धि के लिए कामना की है और भगवान का आर्शीवाद इसी तरह से हमारे पर बना रहें।
श्रद्धालु सुजोत कुमार साहू ने बताया कि मैं बचपन से अपने पिता के साथ भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए आता हूं और मैं यहां से भगवान का आर्शीवाद अपने साथ लेकर जाता हूं और नानखटाई भी जो कि बहुत प्रसिद्ध है यहां कि उसे भी खरीदता हूं।

Rathyatra Mela : 15 दिने से चल रहे थें बीमार, आज दिया भक्तों को दर्शन
नाथ के नाथ भगवान जगन्नाथ के भक्त और उनके प्रेम में बीमार पड़े भगवन आज एक दूसरे के सामने हैं। 15 दिनों तक बीमार चल रहे भगवान जगन्नाथ ने आज ठीक होकर अपने भक्तों का दर्शन दिया है। दरसल पूर्णिमा के दिन अर्को ने अपने भगवन को गर्मी से राहत दिलाने के लिए इतना स्नान कराया कि वह बीमार पड़ गए। ऐसे में उन्हें 15 काढ़े का भोग लगाया गया।
ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त भगवान के इस काढ़े को प्रसाद रूप में ग्रहण करता है। वह सालों साल रोगों से मुक्त रहता है। लगातार 15 दिनों तक भक्त भगवन का यह विरह मानों 15 वर्ष तक का लगता है। और जब इतने दिनों के बाद स्वस्थ होकर भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को दर्शन देते है तब कोई आंखों के अश्रु लिए तो कोई हाथों में फुल, कोई मिष्ठान तो कोई नंगे पाव अपने अराध्य से मिलने के लिए आता है।
इस मेले के साथ होती है काशी के त्योंहारों की श्रृंखला की शुरुआत
सात वार नौ त्योहार वाले काशी के सभी उत्सव अनोखे होते हैं। त्योहारों की श्रृंखला इसी रथयात्रा मेले (Rathyatra Mela) से आरंभ हो जाती है जो कार्तिक पूर्णिमा के दिल देव दीपावली उत्सव के साथ पूरी होगी। नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ जब बिमारी से उठकर अपने बड़े भाई व बहन के साथ मनफेर के लिए शहर भ्रमण के लिए निकलते है उसे ही कहते हैं रथयात्रा का मेला (Rathyatra Mela) ….