- Sankatmochan Sangeet Samaroh में कलाकारों ने नृत्य नाटिका के माध्यम से किया जीवंत, खूब बजी तालियां
- पद्मश्री एन. राजम व संगीता शंकर ने वायलिन के तारों को किया झंकृत
- पद्मश्री मालिनी अवस्थी के गायन पर श्रोता खूब रिझे
- संकटमोचन संगीत समारोह की छठीं निशा
राधेश्याम कमल
वाराणसी। संकटमोचन संगीत समारोह की छठीं निशा शनिवार को शायद यादगार बन गई। वजह समारोह में एक ओर जहां भव्यतम नृत्य नाटिका की प्रस्तुति वहीं मंच पर एक के बाद एक दिग्गज कलाकारों की प्रस्तुति जो श्रोताओं के लिए शायद अविस्मरणीय बन गई। चैत्र मास की गर्मी के बावजूद संगीत जनों का उत्साह देखते ही बनता था। यह संभव है सिर्फ संकटमोचन संगीत समारोह में जहां पर असंभव को भी संभव बना दिया जाता है। यह संभव है सिर्फ संकटमोचन हनुमान के दरबार में जहां स्वयं हनुमानजी विराजमान हैं।

छठीं निशा की पहली प्रस्तुति रूपवाणी संस्खा वाराणसी की ओर से प्रस्तुत राम की शक्ति पूजा नृत्य नाटिका रही। इसका निर्देशन संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल ने किया था। कथा के प्रसंग में राम-रावण युद्ध चल रहा है। युद्धरत राम निराश हैं और हार का अनुभव कर रहे हैं। उनकी सेना भी खिन्न है। प्रिया सीता की याद अवसाद को और घना बना रही है। वह बीते दिनों के पराक्रम और साहस के स्मरण से जाते हैं। बुजुर्ग उमंगित होना चाहते हैं लेकिन मनोबल ध्वस्त है। शक्ति भी रावण के साथ है। देवी स्वयं रावण की ओर से लड़ रही हैं राम ने उन्हें देख लिया है। वह मित्रों से कहते हैं कि विजय असंभव है और शोक में जामवंत उन्हें प्रेरित करते हैं, वह राम की आराधन-शक्ति का आह्वान करते हैं उन्हें सलाह देते हैं कि तुम सिद्ध होकर युद्ध में उतरो। राम ऐसा ही करते हैं।
उधर लक्ष्मण, हनुमान आदि के नेतृत्व में घनघोर संग्राम जारी है, इधर राम की साधना चल रही है। उन्होंने देवी को एक सौ आठ नीलकमल अर्पित करने का संकल्प लिया था, लेकिन देवी चुपके से आकर आखिरी पुष्प चुरा ले जाती हैं। राम विचलित और स्तब्ध हैं। तभी उन्हें याद आता है कि उनकी आंखों को मां नीलकमल कहा करती थीं। वह अपना नेत्र अर्पित कर डालने के लिए हाथों में तीर उठा लेते हैं। तभी देवी प्रकट होती हैं। वह राम को रोकती हैं, उन्हें आशीष देती हैं, उनकी अभ्यर्थना करती हैं और राम में अंतर्ध्यान हो जाती हैं।
कलाकारों में स्वाति (राम), नंदिनी (सीता और देवी दुर्गा) साखी (लक्ष्मण) हनुमान, कापस (विभीषण और जामवंत) शाश्वत (सुग्रीव और अंगद) की भूमिका में रहे। संगीत-रचना जे. पी. शर्मा और आशीष मिश्र का रहा। नृत्य नाटिका के पश्चात मुंबई से आयी पद्मश्री डा. एन. राजम व संगीता शंकर का वायलिन वादन हुआ। उन्होंने वायलिन पर कई रागों की प्रस्तुति कर श्रोताओं को रससिक्त किया। उनके साथ तबले पर अभिषेक मिश्र ने जोरदार संगत की। तत्पश्चात प्रख्यात लोक गायिका पद्मश्री श्रीमती मालिनी अवस्थी का गायन हुआ। उन्होंने लोकगीतों के माध्यम से वहां मौजूद श्रोताओं को खूब भावविभोर किया। उन्होंने श्रोताओं की फरमाइस भी पूरी की। उनके साथ संजू सहाय (तबला) विनायक सहाय (सारंगी) पर संगत की। कलाकारों का स्वागत महंत प्रो. विश्वम्भर नाथ मिश्र ने किया।