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शिव की नगरी काशी के कण-कण भगवान भोलेनाथ विराजमान है और भगवान शंकर को सावन का महीना अतिप्रिय है। हालांकि सावन की शुरुआत 4 जुलाई से ही हो चुकी है लेकिन आज सावन का पहला सोमवार (Sawan First Somvar) है। और आप देख सकते हैं कि किस प्रकार से भक्तों का जनसैलाब यहां पर बाबा की एक झलक पाने के लिए आतुर नजर आ रहा है।

सावन के पहले सोमवार (Sawan First Somvar) पर बोलबम के उदघोष से गूंजा परिसर
बाबा विश्वनाथ का पूरा परिसर बम-बम बोले और हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान हो चुका है ऐसे तो बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए हर दिन लाइन लगी होती है लेकिन सावन (Sawan First Somvar) के दिनों में भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्त दूर-दूर से यहां पर आते हैं।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर जहां से जल लेकर भक्त बाबा का जलाभिषेक करने के लिए धाम में पहुंचते हैं लंबी लाइनों और घंटों इंतजार के बाद उन्हें बाबा के दर्शन प्राप्त होते हैं किसी की आंखों में आंसू तो कोई अपनी प्रार्थना, अपनी मनोकामना दिल मे लेकर और हाथों में राम लिखा बेलपत्र लिए बाबा के दर्शन प्राप्त करने आया है।

रात से ही लम्बी लाइन में लगे रहे भक्त
रात से ही यहाँ सावन के पहले सोमवार (Sawan First Somvar) को देखते हुए भक्त बाबा विश्वनाथ के दर्शन पाने के लिए लाइन में लगे हुए हैं मगर इनके उत्साह को देखकर जरा भी यह लग नहीं रहा है कि यह न जाने कितने घंटों से यहां पर इंतजार कर रहे हैं। इस बार का सावन भी बेहद खास है क्योंकि पूरे 19 साल के बाद ऐसा महासंयोग बना है जब पूरे 59 दिनों में यानी कि 2 महीनों का सावन होगा जी हां इस बार 4 की जगह 8 सोमवार सावन में होंगे ऐसे में बाबा विश्वनाथ के धाम में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी नजर आ रही है।

भगवान शिव को समर्पित है सावन
शास्त्रों और पुराणों में कहा गया है कि सावन का महीना (Sawan First Somvar) भगवान शिव को समर्पित है। यही कारण है कि शिवभक्तों में सावन को लेकर काफी उत्साह देखने को मिलता है। इस महीने में कांवड़ चढ़ाने वालों की संख्या भी काफी बढ़ जाती है।

कांवड़ यात्रा भी इसी महीने से होता है शुरू
बात अगर कांवड़ यात्रा की करे तो सावन के महीने की शुरुआत से कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाती है। सावन माह में शिव भक्त गंगातट पर कलश में गंगाजल भरते हैं और उसको कांवड़ पर बांध कर कंधों पर लटका कर अपने अपने इलाके के शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं।

भगवान विष्णु चार महीने के लिए चले जाते हैं विश्राम करने
सावन (Sawan First Somvar) का महीना इसीलिए खास माना जाता है क्योंकि आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए सो जाते हैं। और उनके साथ अन्य देवता भी विश्राम करने चले जाते हैं ऐसे में सृष्टि का सम्पूर्ण कार्यभार भगवान शंकर पर आ जाता है और इसके बाद रूद्र जो भगवान शिव के ही अंश हैं वह सृष्टि के कार्यभार को संभालते हैं। यानी इस समय सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता त्रिदेवों के सारे कार्यो के उत्तरदायित्व को रूद्र ही संभालते हैं। इसलिए सावन में शिव की पूजा से ही त्रिदेवों की पूजा का फल एक साथ मिल जाता है।

माता पार्वती ने की थी सावन में ही तपस्या
मान्यता यह भी है कि इसी महीने में तपस्या व पूजा करके माता पार्वती ने भगवान शंकर को प्रसन्न किया था और उनकी तपस्या से ही प्रसन्न होकर भगवान शंकर उन्हें मिले थे। जिसके बाद उनका विवाह हुआ था ऐसे में कहा जाता है कि जो भी भक्त इस महीने (Sawan First Somvar) में अपनी मनोकामना को मन मे रख कर बाबा भोले के दरबार मे आता है व्रत रखता ह श्रद्धापूर्वक पूजन करता है उसे बाबा का आशीर्वाद जरूर मिलता है और उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।

भोलेनाथ के अंश रूद्र के लिए होता है रुद्राभिषेक
जैसा कि मैंने बताया भगवान शिव के रूप रुद्र इस दौरान सृष्टि को संभालते हैं और शिव के रूद्र रूप को उग्र माना जाता है लेकिन प्रसन्न होने पर ये तीनों लोकों के सुखों को भक्तों के लिए सुलभ कर देते हैं। इन्हें प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है अभिषेक, चाहे आप दूध से करें, दही से करें या मधु से करें। यही वजह है कि सावन में रुद्राभिषेक भी खूब किए जाते हैं।

भगवान परशुराम ने सबसे पहले की थी कांवड़ यात्रा
मान्यताओं के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’ का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास (Sawan First Somvar) ही चल रहा था, इसी के बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है। वहीं प्राचीन ग्रंथों में रावण को पहला कांवड़िया और कुछ विद्वानों की माने तो सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी।

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है काशी विश्वनाथ
वैसे तो गंगाजल से केवल स्वयंभू शिवलिंगों और 12 ज्योतिर्लिंगों का ही अभिषेक (Sawan First Somvar) किया जाता है। लेकिन अब तो समय के अभाव में कुछ लोग गाड़ियों से भी कांवड़ यात्रा सम्पन्न करते हैं लेकिन पुराने समय में लोग केवल पैदल ही इस कठिन यात्रा को सम्पन्न करते थे।

Dm और कमिश्नर ने पुष्पवर्षा करके किया भक्तों का स्वागत
मंगला आरती के बाद बाबा विश्वनाथ के दर्शन (Sawan First Somvar) होने शुरू हो गए। जहां एक ओर भक्त रात से कतार में बाबा के दर्शन प्राप्त करने के लिए खड़े रहें, वहीं अल सुबह वाराणसी के डीएम और कमिश्नर ने हैलीकाप्टर के द्वारा पुष्पवर्षा की। सभी भक्त इस पुष्पवर्षा को देखकर और भी ज्यादा प्रफुल्लित और उत्हासित हो गए। डीएम एस राजलिंगम व कमिश्नर कौशल राज शर्मा द्वारा किए गए इस पुष्पवर्षा की चारों ओर सराहना की जा रही थी। यह पुष्पवर्षा पुरे विश्वनाथ कॉरिडोर (Sawan First Somvar) से लेकर ज्ञानवापी के परिसर तक किया गया।

खोल दिए गये मंदिर के चारों द्वार
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के बाहर जितना भक्तों का हुजूम नजर आया उतना ही परिसर के अन्दर भक्तों का जनसैलाब नजर आया। भोले के दर पर कोई आखों में आसू तो कोई अपने मनोकामना दिल में बसाये व हाथों में राम नाम लिखा बेलपत्र लिए कतार में खड़ा रहा। सम्पूर्ण परिसर हर-हर महादेव व बम-बम बोले के उद्घोष से गुंजायमान हो गया। सभी वीआईपी व सुगम दर्शन बंद कर मंदिर के चारों द्वारों को खोल दिया गया। यह दिव्य दृश्य जब चारों ओर से भक्त अपने अराध्य को जल चढ़ा रहें और यह तीन तरफ से लगाए गए पात्र से होते हुए आदिविश्वेश्वर (Sawan First Somvar) को अर्पित हो रही है।

कब-कब रहेगा सावन का सोमवार
- सावन का पहला सोमवार (Sawan First Somvar) – 10 जुलाई
- सावन का दूसरा सोमवार- 17 जुलाई
- सावन का तीसरा सोमवार-24 जुलाई
- सावन का चौथा सोमवार- 31 जुलाई
- सावन का पांचवा सोमवार- 7 अगस्त
- सावन का छठा सोमवार- 14 अगस्त
- सावन का सातवां सोमवार- 21 अगस्त
- सावन का आठवां सोमवार- 28 अगस्त
काशी विश्वनाथ मंदिर का सावन महीने में विशेष महत्व होता है। सावन महीने (Sawan First Somvar) में वाराणसी शहर में भगवान शिव की भक्ति और पूजा का उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव भगवान शिव के भक्तों की भारी संख्या में श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
सावन महीने (Sawan First Somvar) के दौरान, श्रद्धालुओं को धार्मिक तपस्या करने, पूजा-अर्चना करने और भगवान शिव के लिए जलाभिषेक करने का अवसर मिलता है। इस महीने में, श्रद्धालु विश्वनाथ मंदिर की यात्रा करते हैं और शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाते हैं। उन्हें मान्यता है कि इस माह में भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और उनकी प्रार्थनाओं को सुनते हैं।
सावन महीने (Sawan First Somvar) के दौरान, काशी विश्वनाथ मंदिर में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान शिव की भजन-कीर्तन, महामृत्युंजय जाप, रुद्राभिषेक, आरती और भक्तिसंगीत आदि का आयोजन किया जाता है।
सावन महीने (Sawan First Somvar) के दौरान, वाराणसी के सावन मेले का आयोजन भी होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु और पर्यटक शामिल होते हैं। यह मेला काशी नगर के विभिन्न भागों में आयोजित होता है और श्रद्धालुओं को भगवान शिव की पूजा-अर्चना, धार्मिक वस्त्र और भक्तिसंगीत का आनंद लेने का अवसर प्रदान करता है।
सावन महीने (Sawan First Somvar) में काशी विश्वनाथ मंदिर की भक्ति और पूजा में विशेष जोश और उत्साह होता है। यह महीना भगवान शिव के आदिश्वरूप की पूजा करने का अवसर होता है और भक्तों को आशीर्वाद प्राप्त करने का अद्वितीय मौका प्रदान करता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है और यह भारतीय धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह वाराणसी (काशी) शहर में स्थित है, जिसे धार्मिक दृष्टिकोण से पुरातत्विक और महत्वपूर्ण माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख देवता भगवान शिव को समर्पित है।
यह मंदिर काशी के पुरातन भाग में स्थित है और उसका निर्माण काशीपत्नि रानी अहिल्याबाई होल्कर ने 18वीं सदी में करवाया था। हालांकि, मंदिर का इतिहास और निर्माण युगों तक पहुंचता है और इसे बार-बार सुधारा और विस्तारित किया गया है। मंदिर का प्रमुख भव्य गोपुरम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिसमें भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है।
काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। काशी में मौजूद इस मंदिर को भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है, जिसे ज्योतिर्लिंग की सर्वोच्चतम मान्यता प्राप्त है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के आस-पास कई धार्मिक स्थल और घाट हैं, जिनमें से कई गंगा घाटों के पास स्थित हैं। यहां परंपरागत रूप से श्रद्धालु नागा साधुओं द्वारा बाल्यकाल से ही वास्तविक भारतीय धर्म, तपस्या और योग की परम्परा का केंद्र है। काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पीठों में से एक है और यहां प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु आते हैं अपनी आस्था और श्रद्धा को व्यक्त करने के लिए।