Sharad Pawar के एनसीपी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के साथ ही पार्टी समेत पूरे महाराष्ट्र की सियासत गरमा गई है। आज से ठीक 24 साल पहले पार्टी गठन के साथ ही शरद पवार ने कमान संभाली थी। मुंबई में आज अपनी आत्मकथा विमोचन के दौरान महाराष्ट्र के क्षत्रप और मराठी मानुस शरद पवार ने कहा कि वह 1999 से पार्टी के अध्यक्ष हैं, लेकिन अब वह अध्यक्ष पद पर बने नहीं रहना चाहते हैं। मेरे साथियों, भले ही मैं पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहा हूं, लेकिन मैं सार्वजनिक जीवन से संन्यास नहीं हो रहा हूं। मैं कार्यक्रमों, बैठकों में हिस्सा लेता रहूंगा। चाहे मैं पुणे, बरामती, मुंबई, दिल्ली या भारत के किसी भी भाग में रहूं, मैं पहले की तरह आप सभी के लिए सहज और सरल रूप से उपलब्ध रहूंगा। शरद पवार भले ही अध्यक्ष पद से हटने का मन बना लिया हों, पर उन्होंने अपने उत्तराधिकारी का नाम घोषित नहीं किया है। बल्कि पार्टी में लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष पद के लिए चुनाव कराने की सिफारिश की है।
उन्होंने पार्टी के भीतर ही एक कमेटी गठित करने की मांग की है, इस कमेटी में प्रफुल्ल पटेल, छग्गन भुजवल, अजित पवार, सुप्रिया सोले समेत कई बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि आखिर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा। पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा। किसकी अगुवाई में एनसीपी आगे का काम करेगी। अगर पार्टी के उत्तराधिकारी की बात करें तो फिलहाल दो नाम सबसे आगे हैं। उसमें पहला नाम उनकी बेटी सुप्रिया सोले और दूसरा उनके भतीजे अजित पवार हैं।
सियासी संकट से जूझ रही एनसीपी
करीब चार दशक से महाराष्ट्र और देश की सियासत में अपना लोहा मनवाने वाले शरद पवार के अचानक अध्यक्ष पद छोड़ने से पार्टी और महाविकास अघाड़ी भी अचरज में हैं। यह बात कोई समझ नहीं पा रहा है कि मराठा क्षत्रप पवार ने आखिर पद से इस्तीफा क्यों दे दिया। क्या शरद पवार पार्टी को टूटने से बचाने के लिए ऐसा फैसला लिया है या फिर नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने के लिए पद छोड़ा है। यह बात तो भविष्य की गर्त में हैं, लेकिन इतना तय है कि एनसीपी पिछले कुछ समय से सियासी संकट से जूझ रही है। ऐसा इसलिए की पिछले कुछ दिनों पहले ही खबर थी कि अजित पवार एनसीपी के कुछ विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं। हालांकि, अजित पवार ने इसका खंडन किया था। उन्होंने कहा था कि वह एनसीपी के साथ हैं, थे और आगे भी रहेंगे।
क्या टूटने से बच जाएगी एनसीपी
2024 में लोकसभा चुनाव से पहले शरद पवार ने सियासी गुगली फेंकते हुए दिल्ली से महाराष्ट्र तक हलचल मचा दी हो, लेकिन इसके पीछे बड़ी वजह एनसीपी के टूटने से बचाने की कवायद बताई जा रही है। कई मौके पर शरद पवार के भतीजे अजित पवार अपने चाचा से नाराज भी हुए हैं। 2019 में महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने के दौरान भी अजित पवार सीएम की रेस में आगे चल रहे थे, लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने यह बाजी मार ली थी। इससे पहले भी कई मौके आए जब अजित पवार राज्य की कमान संभालने की इच्छा अपने चाचा के सामने रख चुके थे, फिर भी उन्हें यह अवसर नहीं मिला। 2020 में तो अजित पवार ने रातोरात बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में सरकार गठन भी कर लिया। देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार उप मुख्यमंत्री की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत साबित नहीं होने पर सरकार गिर गई। तब से माना जा रहा है कि अजित पवार एनसीपी से खफा हैं।
हालांकि, शरद पवार के इस्तीफे के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है कि अजित पवार ही पार्टी की कमान संभालेंगे। क्योंकि अजित पवार को चाचा शरद पवार ने ही राज्य की राजनीतिक जमीन पर उतारा था। शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले दिल्ली की राजनीति दी थी, जबकि अजित पवार को राज्य की राजनीति में स्थापित किया था। अजित पवार सुप्रिया सुले से 10 साल बड़े हैं और जनता में उनकी पकड़ मजबूत है। साथ ही जमीन पर काफी सालों से काम कर रहे हैं। ऐसे में अजित को एनसीपी की कमान मिलती है तो पार्टी टूटने से बच जाएगी। क्योंकि अजित आज सीनियर पवार के इस्तीफे के बाद पार्टी नेताओं से अपील की कि वह उन्हें दोबारा अध्यक्ष पद पड़ रहने का आग्रह नहीं करें। अजित पवार ने कहा कि पवार साहब के हमारे नेता हैं। उनके मार्गदर्शन में नई पीढ़ी आगे का नेतृत्व संभालेगी।
कमेटी करेगी अध्यक्ष का निर्णय
अगला एनसीपी चीफ कौन होगा ये कमेटी के निर्णय के बाद ही तय होगा। इस कमेटी में अतिज और सुप्रिया दोनों भी शामिल हैं, ऐसे में पार्टी और कमेटी के सामने अध्यक्ष के नाम पर सहमति बनाना चुनौती होगी।
जब शरद ने पकड़ा कांग्रेस का हाथ
दरअसल, शरद पवार की सियासत भाजपा विरोधी रही है। 1999 में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनान के नाम का सबसे पहले पवार ने ही विरोध किया था। पवार ने उसी वक्त कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था। हालांकि, पवार ने 2004 में सोनिया गांधी को ही समर्थन दिया था। हाल ही में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद एनसीपी ने कांग्रेस और शिवसेना के साथ हाथ मिला लिया था। 2019 में सीनियर पवार ने बीजेपी के विरोध में महाविकास अघाड़ी का गठन किया और महाराष्ट्र की सियासत में करीब ढाई साल तक सत्ता चलाई। ऐसे में पवार के इस्तीफे के बाद यह संदेश जाएगा सत्ता के साथ नहीं हैं। बल्कि मराठी मानुस के हक और लड़ाई के लिए महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक लड़ रहे हैं।
क्या विपक्षी दलों का नेता बनना चाहते हैं शरद पवार?
भाजपा से अलग होने के बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी का गठन किया था। इसका नेतृत्व भी शरद पवार कर रहे थे। 45 साल से महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभाव रखने वाले शरद पवार जानते हैं कि अगले साल आम चुनाव होने हैं। बीजेपी मात देने के लिए महाराष्ट्र में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। साथ ही विपक्षी एकता को एकसूत्र में बांधने के लिए भी देश में कई पार्टियां अलग थलग पड़ी हुई हैं। ऐसे में विपक्षी दलों को जोड़कर दिल्ली की राजनीति में फिर से प्रभाव जमाने का एक अच्छा विकल्प हो सकता है।