शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri) पर्व की शुरुआत आज से हो गई है और प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा का खास महत्व होता है। देशभर के दुर्गा मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखी जा रही है। इसी कड़ी में वाराणसी के अलईपुर स्थित प्राचीन शैलपुत्री देवी मंदिर में भी श्रद्धालुओं की लम्बी कतारें लगी हुई हैं, जहां भक्तगण माता के दर्शन के लिए सुबह से ही उमड़ पड़े हैं। मंदिर के बाहर लाल चुनरी, नारियल और अन्य पूजन सामग्री की दुकानों ने पूरा वातावरण धार्मिक बना दिया है।
हाथों में नारियल, चुनरी व श्रृंगार का सामान लिए सभी भक्त माता की एक झलक पाने को आतुर नजर आयें। चारों-तरफ सिर्फ और सिर्फ जय माता दी और जय जगदम्बा के उद्घोष गूंज रहे। सबसे पहले सुबह माता का श्रृंगार-पूजन करने के बाद मंगला आरती की गई जिसके बाद उनका कपाट भक्तों के लिए खोल दिया गया। अलहे सुबह से शुरू हुआ दर्शन-पूजन का सिलसिला (Sharadiya Navratri) देर रात तक चलेगा।

वहीं बात अगर सुरक्षा व्यवस्था की करें तो मंदिर परिसर के बहार से लेकर अंदर तक पुलिस फ़ोर्स तैनात रही। मुस्लिम बाहुल्य इलाका होने के चलते उन्होंने अपनी पैनी नजर चारों तरफ बनाए रखी है ताकि भी प्रकार की कोई अप्रिय घटना ना घटित हो। वहीं श्रद्धालुओं (Sharadiya Navratri) की सुरक्षा व सुविधाओं को देखते हुए बराबर लाइन द्वारा उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश दिया जा रहा और इसी के साथ ही मंदिर परिसर से कुछ दूर पहले से वाहनों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया ताकि सुगम व्यवस्था बनी रहे।
भक्तों की मान्यता और पूजन की विशेषता
ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में माता शैलपुत्री का साक्षात वास है, और यहां दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन (Sharadiya Navratri) विशेष रूप से बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शन के लिए यहां आते हैं। मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यहां पूजा करती हैं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं, जिससे उनके पतियों की दीर्घायु होती है।
Sharadiya Navratri: शैलपुत्री मंदिर का धार्मिक महत्व
बताते चलें कि वाराणसी के सिटी रेलवे स्टेशन से लगभग तीन से चार किलोमीटर की दूरी पर वरुणा नदी के किनारे स्थित अलीईपुर में माता शैलपुत्री का प्रसिद्ध मंदिर है। नवरात्र के पहले दिन इस मंदिर में दर्शन करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। मंदिर के पुजारी जीत कुमार तिवारी के अनुसार, काशी खंड में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है, जिसमें कहा गया है कि इसका निर्माण शैलराज हिमालय द्वारा किया गया था।

कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती काशी में निवास करते थे। शैलराज हिमालय, अपनी पुत्री पार्वती की चिंता करते हुए काशी आए थे, यह देखने के लिए कि उनकी पुत्री के रहने की व्यवस्था ठीक है या नहीं। जब वह सोने के इस भव्य नगर को देखते हैं, तो उन्हें अपनी सोच पर पछतावा होता है। इसके बाद, वह अपनी पुत्री माता शैलपुत्री के साथ इस मंदिर को देखने जाते हैं, और तभी से इस मंदिर का नाम शैलपुत्री रखा गया।
Comments 1