Kargil Vijay Diwas: 26 जुलाई 1999, कारगिल युद्ध, एक ऐसा समय जिसे आज भी जब कोई हिन्दुस्तानी याद करता है तो उसकी रूह कांप जाती है। हर जवान अपने देश को बचाने और देशवासियों की रक्षा करने के लिए मन में ‘भारत माता की जय’ के उद्घोष के साथ बॉर्डर पर तैनात था और युद्ध लड़ रहा था। जिसमें आखिरकार भारतीय जवानों की वीरता और बलिदान का परिणाम यह हुआ कि भारत ने युद्ध जीत लिया। आज यानि 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के 25 वर्ष पूरे हो चुके है।
इस युद्ध के बाद कई सैनिकों को सम्मान मिला, पुरस्कार मिला और देश में उन्हें जनता मान और प्यार मिला। लेकिन जिन्दगी जीने के लिए सिर्फ इन्ही चीजों का होना जरूरी नहीं। बहुत-सी ऐसी मूल आवश्यकता है जिन्हें पूरा करने के लिए सरकारी वादों का पूरा होना बहुत जरूरी है। हम बात कर रहें हैं एक ऐसे वीर सपूत की जो गुमनामी और गरीबी के अंधेरे में अपनी ज़िंदगी बसर कर रहा है, जिसने कारगिल (Kargil Vijay Diwas) की बर्फीली ऊंचाइयों पर तिरंगा फहराकर भारत माता की जय-जयकार करवाई थी। बात हो रही है वीर जवान हविलदार आलिम अली की, जो आज सरकारी वादों के बोझ तले दबे, मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

चौबेपुर के छोटे से गांव सरसौल में जन्मे आलिम अली के पिता डॉ. रमजान अली और मां फातिमा बेगम ने कभी सोचा न था कि उनका बेटा देश के लिए दुश्मनों से लड़ेगा। छह भाइयों और एक बहन में सबसे बड़े आलिम अली को बचपन से ही देशभक्ति (Kargil Vijay Diwas) का जज्बा था, जो उन्हें 1990 में भारतीय सेना में ले गया।
कारगिल से पहले कश्मीर में मोर्चा: ऑपरेशन रक्षक का हिस्सा
सेना में भर्ती होने के दो साल बाद ही 1992 से 1995 तक कश्मीर में चल रहे ऑपरेशन रक्षक (Kargil Vijay Diwas) में आलिम अली ने सक्रिय भूमिका निभाई। उस समय घाटी में आतंक अपने चरम पर था और भारतीय सेना दिन-रात जान हथेली पर रखकर देश की सीमाएं सुरक्षित कर रही थी। इस ऑपरेशन के दौरान भी आलिम ने वीरता की मिसाल पेश की थी।
Kargil Vijay Diwas: जुबार हिल पर फहराया तिरंगा
जब पाकिस्तान ने 1999 में कारगिल (Kargil Vijay Diwas) की चोटियों पर कब्जा करने की कोशिश की, तब 7 जून को आलिम अली को कारगिल युद्ध क्षेत्र भेजा गया। उन्होंने अपने 25 साथियों के साथ मिलकर दुश्मनों से मोर्चा लिया और 21 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित जुबार हिल पर तिरंगा फहराया। इस मिशन के दौरान पाकिस्तानी गोलियों ने उनके शरीर को छलनी कर दिया – सीना, घुटना, कमर और पेट में आठ गोलियां लगीं, फिर भी तिरंगा लहराया गया।

जनसंदेश टाइम्स के साथ हुई ख़ास बातचीत में आलिम अली ने बताया कि “3 जुलाई 1999 को जैसे ही हमें जुबार हिल (Kargil Vijay Diwas) पर चढ़ाई का आदेश मिला, हमने जान हथेली पर रख ली। 40 जवानों की टीम थी। दोनों ओर से जबरदस्त गोलीबारी हो रही थी। मेरे सामने मेरे कई साथी शहीद हो गए लेकिन हमने हार नहीं मानी और तिरंगा लहरा दिया।”
उन्होंने बताया कि कारगिल और ऑपरेशन रक्षक (Kargil Vijay Diwas) में भाग लेने के लिए उन्हें सेना सेवा मेडल, स्पेशल सर्विस मेडल, 50 IAM मेडल और 09 ईयर्स सर्विस मेडल से नवाजा गया। लेकिन जिन सरकारी वादों पर उन्होंने भरोसा किया था, वे अब तक अधूरे हैं।
धरे के धरे रह गए सरकार के वादें
बस साल में एक दिन हम जैसे योद्धा ज़िंदा हो जाते हैं, बाकी 364 दिन कोई नहीं पूछता। सरकार ने वादा किया था कि उन्हें गांव में 5 बीघा खेत, बच्चों की पढ़ाई का खर्च, और पेट्रोल पंप का आवंटन मिलेगा – लेकिन आज 26 साल बाद भी कुछ नहीं मिला।

आलिम के चार बेटियां और एक बेटा हैं। एक बेटी की शादी हो चुकी है, जबकि एक बेटा और दो बेटियां बनारस में रहकर बी फार्मा की पढ़ाई कर रहे हैं। वे बताते हैं कि बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है, लेकिन वह चाहते हैं कि उनके बच्चे आत्मनिर्भर बनें।
आज आलिम अली अपने छोटे भाई डा. याकूब अली के साथ वाराणसी के पहड़िया क्षेत्र की एक कॉलोनी में रहते हैं। वह कोई शिकायत नहीं करते, बस इतना कहते हैं कि सम्मान देने से ज्यादा जरूरी है वादा निभाना। उन्होंने जो किया, वह सिर्फ तिरंगा लहराने के लिए नहीं था – वो जंग देश के हर नागरिक के लिए लड़ी गई थी।

सच-मच यदि देश के वीर जवान चाहे वह अलीम अली ही या फिर कोई और, उन्हें देश में साम्मान-पुरस्कार से ज्यादा जरूरत आर्थिक मदद की होती है। अगर सरकार उनसे वादें करती है तो सरकार का फर्ज है कि वह उसे पूरा करें। क्योंकि आज ये देश के वीर जावन और ना जाने कितने ऐसे शहीद है जिनके वजह से ही हम अपने-अपने घरों में सुकून की जिन्दगी जी रहे हैं। कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) इन्ही वीर सपूतों की देन है, जो भारत आज मना रहा…जय हिन्द…जय भारत!