Varanasi: काव्य और संस्कृति के संगम अस्सी घाट पर बहुभाषी कवि सम्मेलन का अनूठा आयोजन हुआ। ‘सुबह-ए-बनारस आनंद कानन’ की ओर से हर सप्ताह होने वाले काव्यार्चन की यह 43वीं कड़ी थी, जिसमें एक ही मंच से संस्कृति, हिंदी, उर्दू, पंजाबी और भोजपुरी की कविताएं प्रस्तुत की गईं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी ने की, जबकि संचालन कबीर पर विशेष शोध करने वाली डॉ. अलका दुबे ने किया। उन्होंने भोजपुरी कविताओं से काव्यपाठ की शुरुआत की। काशी (Varanasi) की चर्चित कवयित्री संगीता श्रीवास्तव ने भोजपुरिया माटी की खुशबू से सजी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
Varanasi: मधुबाला सिंह ‘मधु’ ने दिया सामाजिक सौहार्द का संदेश
नगर के वरिष्ठ रचनाकार विजयचंद्र त्रिपाठी ने भी भोजपुरी भाषा में संस्कृति और संस्कार की झलक दिखाते हुए प्रभावशाली कविताएं पढ़ीं। दिल्ली से आमंत्रित कवयित्री मधुबाला सिंह ‘मधु’ ने सामाजिक सौहार्द का संदेश देते हुए कहा—
“आप अल्लाह-अल्लाह कहना,
मैं भी हृदय से राम-राम कहूँगी,
आप मेरे मंदिर में आकर नमन करना,
मैं आपके मजहब का एहतराम करूँगी।”
उनकी यह पंक्तियाँ सभागार में गहरी छाप छोड़ गईं।
प्रो. वत्सला श्रीवास्तव ने पंजाबी शैली में नवीन सोच को उजागर करती कविताएं प्रस्तुत कीं। वहीं, डॉ. अलका दुबे ने उर्दू भाषा में सामाजिक यथार्थ और समकालीन जीवन के अलग-अलग पहलुओं को अपनी शायरी में बखूबी पिरोया।
अध्यक्षीय काव्यपाठ में प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी ने संस्कृत में रचना प्रस्तुत की, जिसमें सनातन संस्कृति और भारतीय परंपराओं का भावपूर्ण चित्रण था। उन्होंने बाद में अपनी रचना की हिंदी में व्याख्या करते हुए उसकी संवेदनात्मक गहराई को उजागर किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में आगंतुकों का स्वागत (Varanasi) महेंद्र तिवारी ‘अलंकार’ ने किया। सभी रचनाकारों को स्मृति-चिन्ह और प्रमाणपत्र डॉ. जयप्रकाश मिश्र, गौतम अरोड़ा ‘सरस’, अरुण द्विवेदी, विजय बुद्धिहीन, सिद्धनाथ शर्मा ‘सिद्ध’, प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’ और रितु दीक्षित द्वारा प्रदान किए गए। कार्यक्रम का संयोजन अरविन्द मिश्र ‘हर्ष’ और डॉ. नागेश शांडिल्य ने किया, जबकि समन्वय पं. सूर्य प्रकाश मिश्र, प्रियंका सिंह और प्रो. वत्सला श्रीवास्तव का रहा। समापन पर धन्यवाद ज्ञापन एडवोकेट रुद्रनाथ त्रिपाठी ‘पुंज’ ने करते हुए कहा कि भाषा और भाव के इस संगम ने काशी के घाटों को एक बार फिर कविता के रस में डुबो दिया।