Varanasi: काशी की साहित्यिक परंपरा की गौरवशाली विरासत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाते हुए नवसंस्कृति संघ एवं राजकीय जिला पुस्तकालय द्वारा एक विशेष साहित्यिक कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात कवि प्रो. सुरेंद्र प्रताप की कविता पुस्तक ‘दालान में टंगी लालटेन’ और आलोचक डॉ. राकेश पांडेय की आलोचना पुस्तक ‘काशी की कथा’ का लोकार्पण हुआ। समारोह में काशी के अनेक विद्वानों, साहित्यकारों और साहित्य-प्रेमियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
Varanasi: साहित्यिक परंपरा में जुड़ा एक और ऐतिहासिक अध्याय
कार्यक्रम में प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के. सत्यनारायण मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे जिन्होंने कहा कि काशी (Varanasi) में साहित्य रचना की समृद्ध परंपरा है। वह कबीर, तुलसी और भारतेंदु से होती हुई आज तक चली आ रही है। इसी श्रृंखला में सुरेंद्र प्रताप की कविता पुस्तक ‘दालान में टंगी लालटेन’ की कविताएं आती है। इनकी कविताओं में जीवन का सत्य उसकी वास्तविकता आत्म और वाह्य परिवेश समाहित है।

उन्होंने कहा कि प्रो. सुरेंद्र प्रताप की कविताओं में नाना रूप, प्रवृत्तियां, दिशाएं, आयाम और पहलू है। ये कविताएं जीवन के गहरे लगाव, निष्ठा और चिंतन से लिखी गयी है। राकेश पांडेय के आलोचना कर्म को रेखांकित करते हुए उन्होंने बताया कि इनमें शोध की गहरी प्रवृत्ति है। पुस्तक में देवकी नवसंस्कृति संघ एवं राजकीय जिला पुस्तकालय की तरफ से परिचर्चा का आयोजन
एकाएक चौंधिया देती है कविताओं की भाषा
नंदन खत्री से लेकर आज तक के काशीवासी कथाकारों के साहित्य का प्रमाणिक अनुशीलन किया गया है। अध्यक्षता करते हुए प्रो. इंदीवर ने कहा कि सुरेंद्र प्रताप की कविताओं की भाषा हमें एकाएक चौंधिया देती है। उसका व्याकरण भले ही वहीं रहता है पर उसकी रुप रचना, प्रकृति और व्यवहार विभिन्न कविताओं में बदल जाता है, उनकी कविताओं में ग्रामीण परिवेश, शहर की विसंगतियां, किसान, मजदूर के जीवन का संघर्ष एकदम ठेठ बोली में व्यक्त हुआ है। उनकी रचना प्रक्रियां पर लोहिया की समाजवादी दृष्टि का गहरा प्रभाव है।

इस दौरान प्रो. श्रद्धानंद ने कहा कि इन कविताओं में सामाजिक पीड़ा विसंगति, त्रासदी एवं आमजन की सोच तथा संवेदना में आए बदलाव को रूपायित किया गया है। राकेश पांडेय ने काशी (Varanasi) के आज के कथाकारों की खोज कर उनके उपन्यासों की अच्छी समीक्षा की है।
लेखकीय वक्तव्य में प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने कहा कि वर्तमान समय में कविताओं में बिखराव आ रहा है, कविता सिमट रही है। वैश्वीकरण, बाजारवाद एवं विश्व परिदृश्य इसके अनेक कारण है। कविता अन्य विधाओं की तुलना में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय संकटों, सामाजिक असमानता, अन्याय, शोषण और सांप्रदायिकता से मुठभेड़ में सक्षम है। मेरी कविताएं काशी के साथ राजनीतिक मोर्चों, भयावहता, जटिलता और तनावों को उद्धारित करने की कोशिश करती है। ये जुझारू जीवन की जुझारू कविताएं हैं। इसके साथ ही डॉ. राकेश पांडेय ने अपनी आलोचना पुस्तक ‘काशी की कथा’ के बारे में विस्तार से बताया।

संचालन करते हुए प्रो. रामसुधार सिंह ने काशी (Varanasi) के कथा साहित्य कविता के व्यापक सृजन और आलोचना की परंपरा पर गहरी चर्चा की। सुरेंद्र प्रताप को आज के अभावत्मक परिवेश में किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग के जीवन-सत्य का मुखर प्रतिनिधि बताया। राकेश पांडेय के प्रयास की भी सराहना की। उन्हें नए कथाकारों के उपन्यासों का अनुशीलन करने के प्रति तटस्थ दृष्टि के लिए साधुवाद दिया।
कार्यक्रम (Varanasi) में डॉ. मुक्ता और डॉ. शुभा श्रीवास्तव ने भी विचार व्यक्त किए। स्वागत डॉ. दयानिधि मिश्र ने दिया। प्रारंभ में सरस्वती वंदना संगीता श्रीवास्तव ने किया। धन्यवाद पुस्तकालयाध्यक्ष कंचन सिंह परिहार ने दिया। इस अवसर पर डॉ. चंद्रभाल सुकुमार, कवींद्र नारायण, डॉ. नसीमा, डॉ. शुभा श्रीवास्तव, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी, राजीव सिंह आदि मौजूद रहे।


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