Umrao Jaan 86th death anniversary : अपने बेजोड़ थिरकन से देश-दुनिया को मुरीद बनाने वाली मशहूर नृत्यांगना उमराव जान को मंगलवार की दोपहर काशी में याद किया गया। मौका रहा उनकी 86वीं बरसी का। सिगरा स्थित दरगाह-ए-फातमान में उनके मकबरे पर लोगों ने फातिहा पढ़ा और पुष्पवर्षा कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उमराव जान ने अपना अंतिम समय बनारस में ही गुजारा था। 26 दिसंबर, 1937 में इसी शहर में अंतिम सांस ली थी।
सिनेमाई परदे की चमकदार शख्सियत उमराव जान के असल किरदार की 86वीं बरसी {Umrao Jaan 86th death anniversary} मंगलवार को मनाई गई। सामाजिक संस्था डर्बीशायर क्लब की ओर से दोपहर में फातमान स्थित उमराव जान की कब्र पर फातिहा पढ़ी और गुलपोशी की गई। क्लब के अध्यक्ष शकील अहमद जादूगर ने बताया कि अपनी अदाकारी से उमराव जान ने उस दौर के नवाबों, रजवाड़ों से लेकर आम जनमानस तक पर गहरी छाप छोड़ी थी।
उन्होंने उमराव जान {Umrao Jaan 86th death anniversary} पर बनी दो फिल्मों पर भी उन्होंने रोशनी डाली। कहा कि फैजाबाद में ही उमराव ने गीत संगीत और नृत्य की शिक्षा ली। उमराव के किरदार को मशहूर निर्देशक मुजफ्फर अली ने बड़े पर्दे पर देश दुनिया के सामने पेश किया तो उमराव का किरदार भारतीय सिनेमा में अमर हो गया।
Umrao Jaan 86th death anniversary : गुलपोशी करके प्रशंसक करते हैं याद
बताते चलें कि इक तुम ही नहीं तन्हा, उलफत में मेरी रुसवा, इस शहर में तुम जैसे दीवाने हजारों हैं…। उमराव जान फिल्म का यह गीत उस किरदार की याद जेहन में ताजा कर देता है। भले ही उमराव जान कब्र में दफन हो गईं, लेकिन उनके चाहने वाले आज भी उनकी मजार पर गुलपोशी करने आते हैं।
अकेलेपन से दुखी होकर आई थी काशी
अंतिम समय में अकेलेपन से दुखी होकर उमराव वाराणसी आ गई थीं और अपनी शोहरत की बुलंदियों और दुनिया को छोड़कर 26 दिसंबर 1937 को हमेशा के लिए चली गईं। इस अवसर पर मौजूदा सभी लोगों ने सरकार से उमराव जान की के मकबरे {Umrao Jaan 86th death anniversary} को संरक्षित और सुंदरीकरण करने की मांग की।