Varanasi: कार्तिक मास की वह पवित्र तिथि है जो सनातन परंपरा में विशेष स्थान रखती है—देव उठनी एकादशी, जिसे प्रबोधिनी एकादशी, जेठौनी एकादशी, या गंगा स्नान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान श्री विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागृत होकर पुनः सृष्टि के संचालन में प्रवृत्त होते हैं।

देव उठनी एकादशी को अत्यंत शुभ दिन माना गया है, क्योंकि इस दिन के बाद से सभी मांगलिक और शुभ कार्य—जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, और यज्ञ—फिर से प्रारंभ हो जाते हैं। इन चार महीनों (चातुर्मास) में जब भगवान विष्णु शयन अवस्था में रहते हैं, तब विवाह आदि कार्य वर्जित माने जाते हैं।

Varanasi: श्रद्धालुओं ने किया गंगा स्नान
काशी में इस दिन का उत्सव गंगा किनारे विशेष रूप से मनाया जाता है। सुबह से ही घाटों पर गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। माताएं, बहनें और भाई गंगा स्नान के बाद मां गंगा और तुलसी माता का विवाह संपन्न करते हैं।

इस दौरान गन्ना, गुड़, तिल्ली, फल, चीनी और मूल द्रव्य का दान किया जाता है, जिससे एकादशी का फल प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया स्नान, दान और पूजन (Varanasi) न केवल व्यक्तिगत बल्कि पूरे परिवार को पुण्य प्रदान करता है।

गंगोत्री सेवा समिति, दशाश्वमेध घाट के तीर्थ पुरोहितों के अनुसार, कार्तिक मास की इस एकादशी से पंचगंगा घाट स्नान का पंचदिवसीय पर्व आरंभ होता है। जो श्रद्धालु लगातार पांच दिनों तक पंचगंगा घाट (Varanasi) पर स्नान और दीपदान करते हैं, वे पूरे कार्तिक मास के समान पुण्यफल के अधिकारी बनते हैं।
सुबह से ही काशी के दशाश्वमेध, असी, और पंचगंगा घाटों पर हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए। गंगा तट पर दीपदान, आरती और भजन-संकीर्तन की ध्वनियों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। तीर्थ पुरोहितों ने बताया कि “देव उठनी एकादशी का दिन आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है—जैसे भगवान विष्णु जागते हैं, वैसे ही यह दिन हर व्यक्ति के भीतर धर्म, भक्ति और सद्कर्म के प्रति जागरूकता लाने का संदेश देता है।”

