Varanasi: देश की प्रतिष्ठित वाराणसी लोकसभा सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दस लाख मतों के अंतर से विजय दिलाने का ढिंढोरा पिटने वालों की अंतत: पोल खुल गई। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय ने तीसरी बार पराजय स्वीकार किया, लेकिन भाजपा के गढ़ में इस ‘हार’ ने सपा व कांग्रेस गठबंधन को नई राह दिखाने के साथ ही भविष्य के लिए संजीवनी भी दी।
चुनाव शंखनाद के बाद से ढाई महीने तक चली नूरा-कुश्ती में अजय राय ने इस बार जिस तरीके से घटक दलों के साथ मिलकर चुनावी जंग लड़ी, उसका परिणाम मंगलवार को घोषित चुनाव नतीजे में देखने को मिला। बनारस के सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों से अजय राय को वोट मिले। इसमें हर तबके का वोट शामिल रहा। गठबंधन के घटक दलों ने खासकर सपा ने अजय राय के लिए मतदाताओं में विश्वास का बीज बोया और उनके चेहरे के साथ पार्टी की नीति-रीति को घर-घर पहुंचाया।
सबसे महत्वपूर्ण यह कि घटक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने मतों के बिखराव को रोकने के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रही। इसके कारण अजय राय ने पिछले दो लोकसभा चुनाव (2014 व 2019) में अपनी परफारमेंस में सुधार करते हुए जबरदस्त वापसी की। वर्ष 2019 में कांग्रेस पार्टी के अजय राय 1,52,548 वोट के साथ और वर्ष 2014 में 75,614 वोट के साथ तीसरे स्थान पर थे। लेकिन इस बार जमीनी स्तर पर उनकी मेहनत रंग लाई और महज एक लाख 52 हजार मतों के अंतर से हार हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने जिस बहादुरी का उन्होंने परिचय दिया, वही पार्टी में उनके कद को और बढ़ाएगा।
Varanasi: अजय राय बोले, सत्ता के शीर्षस्थ नेता के खिलाफ यह मेरी नैतिक विजय
नतीजा घोषित होने के बाद अजय राय ने कहा कि सत्ता के शीर्षस्थ नेता के खिलाफ यह मेरी नैतिक विजय है। काशीवासियों ने मुझे जिस तरह 10 लाख पार के दंभी नारे को औंधे मुंह कर भारी जनसमर्थन दिया, वह मेरी हार में भी जीत है। कहा कि हम लोग इस लोकतांत्रिक युद्ध में निहत्थे व पैदल थे। दूसरी ओर सत्ता की चकाचौंध और संसाधनों की भरमार थी। सैकड़ों मंत्रियों से लेकर राज्यपालों तक की फौज मेरे खिलाफ काशी में घर-घर घूम रही थी। धन एवं सत्ता शक्ति के जबदस्त इस्तेमाल के बावजूद काशीवासियों ने प्रधानमंत्री को जीतने के लिए नाको चने चबवा दिए।
इंडिया गठबंधन के जुझारू कार्यकर्ता साथियों के साथ काशी की जनता ने मेरा चुनाव खुद को ही अजय राय मानकर लड़ा। कहा कि भारी धन खर्च करने के बाद भी पीएम मोदी को डेढ़ लाख वोटों से जीतने में पसीने छुड़ा कर यह साबित कर दिया कि हजारों किलोमीटर भारत मां की प्रदक्षिणा करने वाले राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी से बहुत बड़े जननायक हैं। साथ ही अयोध्या में भाजपा की हार ने भी यह प्रमाणित कर दिया कि धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक इस्तेमाल लोकतंत्र को अमान्य है।