Varanasi: मझवार समाज ने उत्तर प्रदेश सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए अनुसूचित जाति (SC) का वास्तविक अधिकार बहाल करने की मांग उठाई है। समाज का कहना है कि संविधान और कानून में स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद उन्हें दशकों से उनका हक नहीं मिल पा रहा है। इसे लेकर बड़ी संख्या में मझवार समाज के लोग एकजुट होकर राजातालाब तहसील पहुंचे और यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को संबोधित एक ज्ञापन तहसीलदार राजातालाब शालिनी सिंह को सौपा। ज्ञापन हरिश्चंद द्वारा पूरे वाराणसी जनपद के मझवार समाज की ओर से दिया गया।

जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की अनुसूचित जातियों की सूची में क्रमांक 53 पर ‘मझवार’ दर्ज है। यही नहीं, भारत सरकार द्वारा पारित अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियाँ आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 में भी मझवार को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया गया है।
1961 की जनगणना (विशेष तालिका, अनुसूचित जाति) के अनुसार, वाराणसी जिले में मझवार जनसंख्या 17,389 थी, जिनमें 8,732 पुरुष और 8,657 महिलाएँ थीं। इसके बाद से बीते 64 वर्षों में न तो वाराणसी (Varanasi) और न ही प्रदेश स्तर पर मझवार समुदाय की अलग गिनती की गई। समाज का कहना है कि जनसंख्या वृद्धि दर को देखते हुए यह संख्या आज लाखों में होनी चाहिए थी, लेकिन शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते यह समुदाय अधिकारों से वंचित है।

समाज के नेता विनोद कुमार निषाद ने बताया कि मझवार की पर्यायवाची जातियों में मांझी, मुजाविर, राजगोंड, मल्लाह, केवट, बिंद और निषाद शामिल हैं। इस विषय में 18 मार्च 1975 को हरिजन समाज कल्याण विभाग, लखनऊ से जारी पत्र (संख्या 5217/33-74/जनजाति) में भी मझवार जाति का स्पष्टीकरण दिया गया था। इसके बावजूद, सरकार ने इन जातियों को ओबीसी सूची में दर्ज कर दिया, जिससे लाखों लोग अनुसूचित जाति के अधिकार से वंचित हो गए।
Varanasi: मझवार समाज की मुख्य मांगें
- मल्लाह, केवट, बिंद, निषाद, मांझी, कश्यप और मुजाविर जैसी उपजातियों को ओबीसी सूची से हटाया जाए।
- इन्हें अनुसूचित जाति सूची (क्रमांक 53) में सम्मिलित किया जाए।
- पूरे प्रदेश में मझवार समाज के लोगों को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया जाए।
समाज (Varanasi) का कहना है कि जब तक सरकार आरक्षण की इस विसंगति को दूर नहीं करती, तब तक मझवार समुदाय को न्याय नहीं मिलेगा।