राम सरिस बरु दुलहिनि सीता, समधी दसरथु जनकु पुनीता
भगवान आशुतोष की अतिप्रिय नगरी काशी में उनके ही आराध्य श्रीराम के विवाह की सिर्फ परम्परा नहीं निभायी जाती बल्कि मिथिला से आये पात्रो के सहारे उसे जीवंत किया जाता है, मटकोर (मिट्टी पूजन), धूमधाम से निकलती राम बारात, स्वागत, परछन, मंडप विवाह, सिंदुर दान के साथ ही महिलाओं द्वारा गारी व रामकलेवा तक की रस्म निभाते हुए प्रत्येक वर्ष इस परम्पराओं को आज भी अस्सी स्थित राम जानकी मठ में सहेजा गया है। रात्रि पर्यंत विवाह की पद्वति को मानस की चौपाईयों के साथ जीवंत करते हुए विदाई में श्री सीता जी को ससुराल में कैसे रहा जाए इसकी नसीह तक दी जाती है।
- मार्गशीष शुक्ल पक्ष पंचमी पर श्रीराम विवाहोत्सव के लिए मिथिला से आते हैं पात्र
- मटकोर, बारात, परछन, मंडप विवाह, सिंदुरदान सहित रामकलेवा (खिचड़ी) की परम्परा होती है जीवंत
वाराणसी। मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष की पंचमी पर भगवान राम के विवाह का योग बना तो जनकपुरी सहित अयोध्या व पूरा ब्रम्हंड हर्षित हुआ, भगवान के इस पारिग्रहण बंधन पर मनुष्य ही नहीं देवता भी तरह-तरह के रुप में मंडप तक जा पहुंचे थे। आज कई युग बीत जाने के बाद भी उनकी विवाह की पद्वति उनके आराध्य की नगरी काशी में पूरी परम्पओं के साथ निभायी जा रही है। अस्सी स्थित रामजानकी मठ में भगवान राम के विवाह की परम्परा निभाने के लिए मिथिला से पात्र प्रत्येक वर्ष राम जानकी मठ में पधारते हैं। पूरी विवाह पद्वति किसी जनमानस विवाह से कम नहीं होती भगवान राम के कलेवा (खिचड़ी) ना खाने पर महिलाओं द्वारा गारी भगवान राम बने इन पात्रों को सुनना होता है।

मटकोर पूजन
मिथिला से आये पात्रों में भगवान राम जानकी सहित अन्य स्वरुप साकार होता है। विवाह से एक दिन पूर्व सीता जी द्वारा मटकोर (मिट्टी पूजन) की परम्परा निभायी जाती है। इसके लिए सीता जी सखियों के साथ गंगा मठ से गंगा तट तक जाती हैं। पूरे मठ को विवाहोत्सव की तर्ज पर सजाया जाता है। मंगलगीत गाती सखियों की टोली में श्रीजानकी जी संकुचाई सी मटकोर की रस्म पूरा करने के बाद मठ में जाती हैं जहां अन्य रस्म की परम्पराओं को निभाया जाता है।
श्रीराम बारात में साधु संतों के साथ देवगण भी
बग्घी पर बैठे श्रीराम स्वरुप पात्र ही नहीं बल्कि दशरथ जी के साथ ही मुनी वशिष्ठ सहित अन्य ऋषिगण व मनुष्य के रुप में देवता गण भी श्रीराम बारात में शामिल होते हैं, विभिन्न वाद्ययंत्रों के साथ ही रौशनी के लिए प्राचीन पद्वति अपनाते हुए एक नहीं बल्कि लगभग तीन किलोमिटर की परिधि में श्रीराम बारात की परम्परा को निभायी जाती है। बैंड बाजों के साथ घोड़े व रथ में फूलों से सुसज्जित पालकी में भगवान राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के स्वरूप में विराजते हैं। शोभायात्रा में विद्वानों व भक्तों का समुदाय मंगल गीत व स्तुति गान करते हैं। रास्ते भी महिलाओं की ओर से मंगलगान व जगह-जगह बारात के स्वागत के लिए लोगों की ओर से पुष्प वर्षा करने की परम्परा को भी जीवंत की जा रही है।

स्वागत और परछन की भी परम्परा
श्रीराम बारात के स्वागत के साथ ही महिलाओं की ओर से परछन की भी परम्परा को पूरे आस्था के साथ निभायी जाती है। रामजानकी मठ पर गोधूलि बेला पर भगवान के द्वारचार को भी लोगों की ओर से जीवंत किया जाता है। परछन कर अनधन लुटाया जाता है।
जयमाल व मंडप विवाह लावा परछाई भी
द्वारचार के बाद मठ में श्रीराम जानकी विवाह महोत्सव में जय माल लावा परक्षन एवं अन्य विवाह कृत्य होने के पश्चात मां जानकी का कन्यादान भी किये जाने की परम्परा निभायी जाती है। वहां उपस्थित महिलाओं द्वारा मंगल गीत जानकी मंगल में सब मंगल, टूटत ही धनु भयेहु बिवाहू, सिय रघुबीर विवाह जे गावहि सुनहि। तिन्ह कहू सदा उछाहु मंगलायतनु राम जुसु से पूरा मठ मंगल विवाह में सराबोर हो जाता है। मंडप की बेला चंपा गजरा सहित विभिन्न रंग बिरंगे सुगंधित फूलों से आकर्षक सजावट लोगों को आकर्षण करती है।
बारातियों के लिए भोज
श्रीरामजानकी मठ में बारातियों के लिए भव्य भोज का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें लगभग सैकड़ों की संख्या में लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं, इतना ही नहीं बाराम में शामिल लोगों को द्वारचार पर स्वागत के समय चूड़ा मटर के साथ ही गाजर का हलुआ तक परोसा जाता है।
महिलाओं द्वारा गारी और कलेवा
इस विवाह में भगवान राम स्वरुप पात्रों को महिलओं की ओर से गारी दी भी दी जाती है श्रीजानकी जी के सिंदुर दान के साथ ही विवाह सम्पन्न होने के साथ ही रामकलेवा (खिचड़ी ) पर भगवान राम की ओर से ना खाने की रस्म भी पूरी तरह से जीवंत होती है। श्रीसीता जी की विदाई के साथ ही सखियों औैर मिथिला की महिलाओं की ओर से उन्हें ससुराल में कैसे रहने की नसीहत भी दी जाती है। विदाई के साथ ही तीन दिवसीय श्री राम विवाहोत्सव की परम्परा को अगले साल तक के लिए विराम दिया जाता है। मिथिला से आये पात्रों को अनधन से विदाई दी जाती है। और फिर अगले वर्ष पुन: आने की विनति की जाती है।
बोले महंत

श्रीराम जानकी मठ के प्रभारी रामलोचन दास जी बताते हैं कि श्रीराम विवाह की परम्परा वर्षाे से चली आ रही है। इसके पूर्व चित्रकुट स्थित श्रीरामजानकी मठ में होती थी। यह परम्परा अभी भी चित्रकुट स्थित मठ में निभायी जाती है, लेकिन काशी में भी इस पद्वति को निभाया जा रहा है। मिथिला से आये पात्र ही चारो भाईयों का स्वरुप धारण करते हैं। श्री जानकी जी का चरित्र भी इन्हीं पात्रों की ओर से निभाया जाता है। बताया कि बारात, द्वारचार और विवाह में पात्रों के स्वरुप में साक्षात भगवान का रूप दिखायी देता है।