उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President) ने शनिवार को देशवासियों से एक अहम और विचारोत्तेजक अपील की। उन्होंने कहा कि नागरिकों को सोच-समझकर यह तय करना चाहिए कि वे किस देश से व्यापार करें और कहाँ घूमने जाएं। खासतौर पर ऐसे देशों से दूरी बनाना ज़रूरी है, जो संकट के समय भारत विरोधी रुख अपनाते हैं।
यह बयान उस समय आया है जब हाल ही में तुर्किये और अजरबैजान द्वारा भारत-विरोधी गतिविधियों को समर्थन देने के कारण इन देशों के खिलाफ व्यापार और पर्यटन बहिष्कार की मांग देश में तेज हो रही है।
आर्थिक राष्ट्रवाद की जरूरत– Vice President
एक सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति (Vice President) ने कहा, “क्या हम उन देशों की अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर सकते हैं, जो हमारे खिलाफ खड़े होते हैं? हमें अब यह तय करना होगा कि हमारी विदेश नीति और आर्थिक नीति का आधार राष्ट्रहित और देशभक्ति हो।”
धनखड़ (Vice President) ने यह भी कहा कि देश की सुरक्षा केवल सैनिकों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक, व्यापारी और उद्योगपति को इसमें अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने नागरिकों से आग्रह किया कि वे अपनी क्रय शक्ति को एक जिम्मेदार ताकत के रूप में इस्तेमाल करें।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदला माहौल
यह बयान उस संदर्भ में भी अहम माना जा रहा है जब भारत ने हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर (POK) में आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया था। इस दौरान तुर्किये और अजरबैजान ने पाकिस्तान के पक्ष में बयान दिए थे और भारत की कार्रवाई की आलोचना की थी।
सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान ने संघर्ष के दौरान तुर्की से मिले ड्रोन का भी इस्तेमाल किया, जबकि अजरबैजान ने राजनयिक मंचों पर खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया। इसके बाद से सोशल मीडिया और नागरिक संगठनों में इन देशों के बहिष्कार की आवाज़ें तेज़ हो गई हैं।
हर फैसले में दिखनी चाहिए देशभक्ति: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति धनखड़ (Vice President) ने अपने संबोधन में कहा, “हमें यह तय करना होगा कि हमारी एक-एक क्रिया देश के लिए कितनी लाभकारी है। सिर्फ सरकार पर निर्भर रहना काफी नहीं है, आम नागरिक को भी अब अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि आज के समय में आर्थिक निर्णय भी राष्ट्रभक्ति के चश्मे से लिए जाने चाहिए।
आर्थिक राष्ट्रवाद का आशय यह है कि देशवासी देश में बने उत्पादों और सेवाओं को प्राथमिकता दें, और विदेशी सामान व सेवाओं को केवल तब ही चुनें जब वे राष्ट्रहित में हों। खासतौर पर ऐसे देशों के उत्पादों और पर्यटन सेवाओं से दूरी बनाई जाए, जो भारत के खिलाफ काम करते हैं या भारत के दुश्मनों को समर्थन देते हैं।
देश में अब आम लोग भी विदेश नीति और आर्थिक निर्णयों को लेकर अधिक जागरूक हो रहे हैं। ‘लोकल फॉर वोकल’ जैसे अभियानों और आत्मनिर्भर भारत जैसे प्रयासों ने नागरिकों में यह भावना मजबूत की है कि राष्ट्रीय हित के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी निर्णायक कदम उठाना जरूरी है।