साल 2024 उत्तर प्रदेश के लिए किसी सामान्य साल की तरह नहीं बीता। यह वर्ष आपराधिक घटनाओं, प्रशासनिक अनियमितताओं और हिंसक वारदातों के चलते प्रदेश के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय साबित हुआ। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अपराधों में कमी दर्ज की गई, लेकिन साइबर अपराध, हिंसक झगड़े और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों ने कानून-व्यवस्था की पोल खोल दी।
2024: साइबर अपराधों में बढ़त, प्रदेश बना केंद्र
डिजिटल युग के साथ-साथ साइबर अपराधों में भी तेजी आई। उत्तर प्रदेश 2024 में साइबर अपराधों के मामले में देशभर में सबसे आगे रहा। ऑनलाइन ठगी और डेटा चोरी की घटनाओं ने आम जनता को सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
नोएडा में अगस्त 2024 की एक घटना ने पूरे देश का ध्यान खींचा, जब नैनीताल बैंक का सर्वर हैक कर 17 करोड़ रुपये उड़ा लिए गए। इस मामले में बीजेपी युवा मोर्चा के नगर अध्यक्ष हर्ष बंसल की गिरफ्तारी ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। इस घटना ने दिखाया कि अपराधी किस तरह तकनीक का दुरुपयोग कर रहे हैं और आम जनता की मेहनत की कमाई पर डाका डाल रहे हैं।
पुलिस की साख पर लगे दाग
उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग के लिए 2024 एक कठिन वर्ष साबित हुआ। भ्रष्टाचार के कई मामलों और विवादित घटनाओं ने पुलिस की छवि को धूमिल कर दिया। बलिया जिले के नरही थाना में छापेमारी के दौरान लाखों रुपये की अवैध वसूली का मामला सामने आया। इस प्रकरण में पुलिस की भूमिका ने प्रशासन पर सवाल खड़े किए।
इसके अतिरिक्त, पुलिस अभिरक्षा में मौत के मामलों ने भी विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया। लखनऊ के चिनहट कोतवाली में मोहित की मौत और फतेहपुर के थरियांव थाने में तैनात सिपाही प्रिया सरोज की आत्महत्या जैसे मामले पुलिस व्यवस्था की खामियों को उजागर करते हैं।
हिंसा और सामूहिक हत्याएं
प्रदेश में हिंसक घटनाओं का सिलसिला पूरे साल जारी रहा। 24 नवंबर को संभल में मस्जिद के सर्वे को लेकर हुए खूनी संघर्ष में पांच लोगों की मौत हो गई। वहीं, बहराइच में नवरात्रि के दौरान मूर्ति विसर्जन के समय हुई हिंसा में रामगोपाल मिश्र की जान चली गई।
4 अक्टूबर को अमेठी के शिवरतनगंज में शिक्षक सुनील कुमार, उनकी पत्नी और बच्चों की हत्या ने पूरे प्रदेश को स्तब्ध कर दिया। इस मामले में असनाई (अवैध संबंधों) का शक हत्या का मुख्य कारण बताया गया।
नवंबर के महीने में वाराणसी में राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, उनकी पत्नी और तीन बच्चों की निर्मम हत्या ने कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए। गाजियाबाद में 16 अगस्त को अपहरण के बाद एक व्यक्ति का क्षत-विक्षत शव बरामद हुआ, जिसमें हत्या का कारण प्रेम प्रसंग बताया गया।
भ्रष्टाचार और सरकारी अधिकारियों की आत्महत्याएं
साल 2024 में भ्रष्टाचार और इससे जुड़े मामलों ने भी प्रदेश को झकझोर कर रख दिया। बुलंदशहर में सीबीआई के छापे के बाद पोस्ट ऑफिस अधीक्षक टीपी सिंह ने आत्महत्या कर ली। उनके सुसाइड नोट में सहकर्मियों को जिम्मेदार ठहराया गया, जिससे सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार की सच्चाई उजागर हुई।
इसके अलावा, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी आलोक रंजन ने दिल्ली में ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली। इस घटना ने भी प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर मानसिक दबाव और भ्रष्टाचार की जटिलता को दिखाया।
लूट और डकैती में कमी, लेकिन चोरी और अन्य अपराध बढ़े
लूट और डकैती के मामलों में कमी देखी गई, लेकिन अन्य अपराधों में बढ़ोतरी हुई। सुल्तानपुर में 28 सितंबर को एक सर्राफा की दुकान में हुई लूट ने पुलिस की सतर्कता पर सवाल उठाए। इस घटना में बदमाशों ने दुकान मालिक और उनके बेटे को बंधक बनाकर लाखों के जेवर लूट लिए।
महिलाओं और बच्चों पर बढ़ते अपराध
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में वृद्धि 2024 का एक गंभीर मुद्दा रहा। यौन शोषण, ब्लैकमेलिंग और अपहरण जैसी घटनाओं ने प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए। गाजियाबाद में 16 जुलाई को एक सिपाही ने ब्लैकमेलिंग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। यह घटना प्रशासन की विफलता को दर्शाती है।
पुलिस मुठभेड़ों पर उठे सवाल
2024 में कई जिलों में पुलिस मुठभेड़ की घटनाएं चर्चा का विषय बनीं। सुल्तानपुर समेत अन्य जगहों पर हुए एनकाउंटर पर पारदर्शिता को लेकर सवाल उठे। पुलिस ने कई बदमाशों को मार गिराने का दावा किया, लेकिन इन घटनाओं की सत्यता और प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगते रहे।
साल 2024: चुनौतियों से क्या सीखा?
2024 ने उत्तर प्रदेश को कई गंभीर सबक सिखाए। साइबर अपराधों को रोकने के लिए तकनीकी सुरक्षा पर जोर देना होगा। पुलिस और प्रशासनिक सुधार जरूरी हैं ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके।
महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुलिस की साख को बहाल करने और जनता में विश्वास बढ़ाने के लिए पारदर्शिता के साथ कार्रवाई करनी होगी।
Highlights
साल 2024 उत्तर प्रदेश के लिए सिर्फ एक कठिन साल नहीं था, बल्कि यह एक चेतावनी के रूप में सामने आया। प्रशासन, कानून व्यवस्था और समाज के हर वर्ग को आत्ममंथन करने और सुधार लाने की आवश्यकता है।