हम सभी को इतिहास की पुस्तकों में ज्यादातर यह कहानी पढ़ाई जाती हैं कि मुगल सम्राट हुमायूँ ने रानी कर्णावती के द्वारा राखी भिजवाने के बाद उनकी रक्षा करने के लिए बहादुर शाह जफर के साथ युद्ध किया था। किंतु हमें संपूर्ण कथा तथा इसके पीछे जुड़ी पूरी राजनीति के बारे में नही बताया जाता। आज हम आपको रानी कर्णावती के द्वारा हुमायूँ को राखी भिजवाने तथा हुमायूँ का बहादुर शाह जफर के साथ युद्ध करने की कथा का वर्णन संपूर्ण रूप से करेंगे ताकि आप सत्य से परिचित हो सके।
रानी कर्मवती तथा हुमायूँ की राखी से जुड़ी कथा
रानी कर्मवती जिन्हें कर्णावती के नाम से भी जाना जाता हैं वे मेवाड़ के महान राजा राणा सांगा की पत्नी थी। उस समय भारत देश की भूमि पर चारो ओर से मुगलों और अफगानों का आक्रमण हो रहा था। हर तरह हिंदुओं का रक्त बहाया जा रहा था तथा मंदिरों व गुरुकुलों को तोड़ा जा रहा था।
तब दिल्ली के नए मुगल राजा बने बाबर ने खानवा के युद्ध में मेवाड़ के राजा राणा सांगा को पराजित कर दिया था तथा लाखों की संख्या में हिंदुओं का कत्लेआम किया था। उसके कुछ समय पश्चात राणा सांगा की मृत्यु हो गयी थी और रानी कर्मवती विधवा। अर्थात रानी कर्णावती को विधवा बनाने वाले हुमायूँ का दुष्ट पिता बाबर था।
राणा सांग व रानी के दो पुत्र थे, बड़े का नाम विक्रमादित्य तथा छोटे का नाम उदय सिंह था। महाराज की मृत्यु के पश्चात रानी ने अपने बड़े पुत्र को उत्तराधिकारी बना दिया था। उस समय चित्तोड़ का शासन मुगलों के हाथ में ना जाने पायें इसलिये अपने पुत्र के पूरी तरह परिपक्व होने तक महारानी ने शासन अपने हाथों में ले लिया था।
उस समय अवसर पाकर गुजरात के अफगान राजा बहादुर शाह जफर ने राजस्थान के मेवाड़ राज्य पर आक्रमण कर दिया। यह उसके लिए एक सुनहरा अवसर था क्योंकि राणा सांगा की मृत्यु हो चुकी थी तथा विक्रमादित्य अभी अपरिपक्व तथा कमजोर राजा था जबकि उदय सिंह अभी बहुत छोटे थे। उस समय उदय सिंह की आयु मात्र 10 से 11 वर्ष के बीच रही होगी।
विक्रमादित्य एक बार पहले भी बहादुर शाह जफर के हाथों हार चुके थे तथा उनका सेना में प्रभाव भी बहुत कम था। इसलिये मेवाड़ की सेना ने विक्रमादित्य के नेतृत्व में लड़ना अस्वीकार कर दिया। तब रानी कर्णावती ने मेवाड़ की रक्षा करने के उद्देश्य से राजनीति का सहारा लिया तथा विक्रमादित्य व उदय सिंह को राज्य से दूर बूंदी जिले में भेज दिया तथा सेना को युद्ध करने का आदेश दिया।
रानी कर्णावती को यह भी ज्ञात था कि मेवाड़ की सेना बहादुर शाह जफर की सेना की अपेक्षा अत्यधिक कम थी तथा एक मजबूत नेतृत्व का भी आभाव था। तब उन्होंने शत्रु के शत्रु की सहायता लेने के उद्देश्य से दिल्ली के सम्राट हुमायूँ की सहायता लेने का सोचा। उस समय राखी का पर्व भी पास में था इसलिये उन्होंने इसे एक अवसर के रूप में लिया तथा हुमायूँ को राखी भिजवा दी।
उस समय क्रूर राजा हुमायूँ बंगाल पर चढ़ाई कर रहा था तथा वहां निरंतर हिंदुओं का रक्त बहा रहा था। उसने वर्तमान पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश में लाखों हिंदुओं की हत्या करवा दी थी तथा हजारों मंदिरों को तुड़वा डाला था। जब उसे रानी कर्णावती का संदेश प्राप्त हुआ तो उसने इस अवसर का लाभ उठाने का निर्णय लिया।
उसे यह भलीभांति ज्ञात था कि राजा विक्रमादित्य एक कमजोर राजा हैं तथा यदि वह उसे राजा बना देगा तो एक तरह से चित्तोड़ उसके अधीन माना जायेगा। साथ ही वह मेवाड़ की राजपूत राजाओं की शक्ति को भी कम करना चाहता था। इसलिये वह योजना के अनुसार मेवाड़ की ओर बढ़ा लेकिन तय समय पर नही पहुंचा।
हुमायूँ का उद्देश्य था कि उसके आने से पूर्व ही बहादुर शाह जफर राजपूत सेना का सफाया कर दे तथा उनकी शक्ति कमजोर हो जाये। इससे एक तो राजपूत सेना मारी जाती तथा बहादुर शाह की सेना भी थोड़ी कमजोर होती। इसके बाद वह अपनी सेना की सहायता से बहादुर शाह की सेना को आसानी से हराकर पीछे खदेड़ देता तथा मेवाड़ पर अपना अहसान जताता।
सब कुछ उसकी योजना के अनुसार हुआ तथा बहादुर शाह की सेना मेवाड़ पर टूट पड़ी। मेवाड़ के सैनिक तो अपने माथे पर भगवा बांधकर निकले थे तथा युद्ध भूमि से या तो जीतकर या वही प्राण न्योछावर करने के उद्देश्य से गए थे। इसलिये अंत में मेवाड़ की सेना का भयानक कत्लेआम हुआ। बाहर अपनी सेना को हारता देखा रानी कर्णावती ने सभी रानियों तथा महिलाओं के साथ जौहर कर लिया। यह राजस्थान के हुए तीन मुख्य जौहर के इतिहास में दूसरा जौहर था। जौहर अर्थात दुश्मनों के हाथों बहन-बेटियों का बलात्कार से बचने के लिए उनके अपने पास पहुँचने से पहले अग्नि में अपने शरीर को जलाकर भस्म कर देना।
जब राजपूत सेना हार गयी तथा रानी व महिलाओं ने जौहर कर लिया तब हुमायूँ की मुगल सेना मेवाड़ पहुंची। उन्होंने आसानी से बहादुर शाह की कमजोर हो चुकी सेना को वापस जाने पर विवश कर दिया। उसके बाद हुमायूँ ने कर्णावती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य को राजा घोषित कर दिया व दिल्ली चला गया। अब एक तरह से विक्रमादित्य और मेवाड़ उसके अधीन था।
किंतु हुमायूँ की यह चाल ज्यादा समय तक ना चल सकी तथा राजपूत राजाओं ने अपनी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विद्रोह कर दिया। राजा विक्रमादित्य को बंदी बना दिया गया तथा मेवाड़ की गद्दी खाली हो गयी। तब उनके चाचा इत्यादि ने गद्दी हड़पने का प्रयास किया लेकिन पन्ना धाय की स्वामी भक्ति तथा मेवाड़ के मंत्रियों की चतुराई से उदय सिंह को मात्र 14 वर्ष की आयु में मेवाड़ का राजा घोषित कर दिया गया।
राजा उदय सिंह एक शक्तिशाली सम्राट बनकर उभरे जिन्होंने मुगलों के सामने झुकने से मना कर दिया। उनके द्वारा राजस्थान के इतिहास में एक ऐसे महाराज का जन्म हुआ जिनका लोहा आज तक हम मानते हैं। वे थे महाराणा प्रताप जिन्होंने ना केवल मुगलों के सामने झुकने से मना कर दिया था बल्कि उन्हें युद्ध में परास्त कर राजस्थान की धरती से वापस दिल्ली भेज दिया था।
Anupama Dubey