Varanasi: आज ही के दिन, वर्ष 1950 में पहली बार संसद में राष्ट्रगीत वंदे मातरम की धुन गूंजी थी। इस महत्वपूर्ण दिन की स्मृति में, काशी विश्वनाथ मंदिर के शहनाई वादक महेंद्र प्रसन्ना ने बनारस के भारत माता मंदिर में शहनाई की मधुर धुन पर वंदे मातरम की प्रस्तुति दी और श्रद्धांजलि अर्पित की।
काशी का यह भारत माता मंदिर, जो अपने आप में अनूठा है, शनिवार को एक विशेष दृश्य का गवाह बना। आमतौर पर शहनाई की धुनों का उपयोग मंगल अवसरों के लिए किया जाता है, लेकिन आज इसे देश की गरिमा और सम्मान के प्रतीक के रूप में बजाया गया। काशी के प्रसिद्ध शहनाई वादक महेंद्र प्रसन्ना और शनिदेव उपासक कन्हैया महाराज ने शहनाई बजाकर 7 सितंबर 1950 के ऐतिहासिक दिन को याद किया।

Varanasi: 1896 में हुआ था वंदे मातरम का पहला गायन
वंदे मातरम का पहला गायन 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में हुआ था। इसके बाद, 14 अगस्त 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक की शुरुआत वंदे मातरम से हुई और इसका समापन जन गण मन के साथ किया गया। 1950 में, वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत और जन गण मन को राष्ट्रीय गान के रूप में आधिकारिक मान्यता मिली। भारतीय संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया।