Tata Lesson: रतन टाटा ने व्यवसाय जगत में व्यापार और उद्योग के बीच का अंतर साफ़ करते हुए यह सिखाया कि एक सच्चा उद्योगपति केवल मुनाफे के पीछे नहीं भागता, बल्कि समाज और देश की भलाई को प्राथमिकता देता है। सालों पहले, रतन टाटा ने अपने एक बयान में कहा था, “हम व्यापारी नहीं, उद्योगपति हैं। हमारे लिए मुनाफे से ज्यादा देश और समाज की बेहतरी मायने रखती है।” यह सोच और सिद्धांत उन्हें एक असाधारण व्यक्तित्व बनाते हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन अपनी सीखों के माध्यम से हमेशा हमारे बीच रहेंगे।
रतन टाटा के निधन के बाद देशभर में शोक की लहर दौड़ गई है। टाटा ग्रुप के विस्तार और उनके नेतृत्व के गुणों को जानने वालों ने उनकी सरल और महान सोच को याद किया। मशहूर इन्वेस्टमेंट बैंकर वल्लभ भंसाली ने एक साक्षात्कार में बताया कि रतन टाटा हमेशा दूरगामी सोच रखने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने नेतृत्व में टाटा ग्रुप को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया और मुनाफे की बजाय दीर्घकालिक विजन को प्राथमिकता दी।
Tata Lesson: व्यापारी नहीं, दूरदर्शी उद्योगपति
रतन टाटा ने उद्योगपति और व्यापारी के बीच के अंतर को न केवल अपने शब्दों में बल्कि अपने कार्यों के जरिए भी साबित किया। 1981 में टाटा इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने एक रणनीतिक पहल के तहत हाई-टेक्नोलॉजी व्यवसाय में बड़े बदलाव शुरू किए। वल्लभ भंसाली ने कहा कि रतन टाटा ने हमेशा बड़ी सोच और जोखिम उठाने पर जोर दिया। उनके नेतृत्व में टाटा ने कई वैश्विक कंपनियों का अधिग्रहण किया, और उन्होंने युवा उद्यमियों को जोखिम लेने की प्रेरणा दी।
नैनो: हर भारतीय का कार का सपना
2008 में रतन टाटा ने आम भारतीय के कार के सपने को साकार करते हुए नैनो कार लॉन्च की। इस परियोजना में मुनाफे पर नहीं, बल्कि देश के मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों के लिए किफायती कार उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया था। रतन टाटा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक यह थी कि वह अपनी कंपनी की आमदनी का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा समाजसेवा में टाटा ट्रस्ट के जरिए दान करते थे। यह सिद्ध करता है कि उनके लिए व्यवसाय का उद्देश्य सिर्फ मुनाफा कमाना नहीं था, बल्कि समाज की भलाई के लिए काम करना था।
रतन टाटा की सोच और उनके कार्य आने वाले पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।