Varanasi: तुर्की और पाकिस्तान की भारत-विरोधी नीतियों और आतंकवाद को दिए जा रहे समर्थन के खिलाफ भारत की राष्ट्रीय चेतना एक बार फिर जागी है। विशाल भारत संस्थान के नेतृत्व में वाराणसी के लमही स्थित नेताजी सुभाष मंदिर से इन दोनों देशों की प्रतीकात्मक शव यात्रा निकाली गई। इस यात्रा ने साफ कर दिया कि अब भारत की जनता मौन नहीं रहेगी – जवाब कड़ा और सार्वजनिक होगा।

विरोध प्रदर्शन में यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि अब भारत के नागरिक न तुर्की की यात्रा करेंगे और न ही उसके उत्पादों को खरीदेंगे। व्यापारियों को चेतावनी दी गई कि अगर वे तुर्की से आयातित सामान बेचते हैं, तो उनका आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार होगा।

भारत ने मदद की, तुर्की ने किया घात
प्रदर्शनकारियों (Varanasi) ने तुर्की के कृतघ्न व्यवहार की आलोचना की और साथ ही वर्ष 1192 में तुर्कों द्वारा भारत पर हमले, मंदिरों को तोड़ने और लाखों निर्दोष लोगों की हत्या की ऐतिहासिक घटनाओं की भी याद दिलाई। वक्ताओं ने सुल्तान बलबन जैसे शासकों के नस्लीय भेदभाव वाले दृष्टिकोण को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए कहा कि तुर्की की सोच आज भी वैसी ही है – भारत विरोधी और कट्टरपंथी।

शव यात्रा में खास बात यह रही कि इसमें मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। अफसर बाबा, अफरोज पांडेय, शहाबुद्दीन तिवारी (उर्फ जोसेफ), नौशाद दूबे और लियाकत अली ने तुर्की और पाकिस्तान के प्रतीकात्मक शव को कंधा दिया। अफसर बाबा और शहाबुद्दीन तिवारी ने हंडिया लेकर पाकिस्तान और तुर्की के ‘अंतिम संस्कार’ के प्रतीक स्वरूप भाग लिया।
Varanasi: डॉ. राजीव श्रीगुरुजी ने दिया तीखा बयान
विशाल भारत संस्थान (Varanasi) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि भारत एक उदार राष्ट्र रहा है, जिसने तुर्की के लोगों की जान बचाने के लिए हर संभव मदद की। लेकिन अब जब तुर्की आतंकियों के साथ खड़ा है, तो भारत को भी अपनी रणनीति बदलनी होगी।

डॉ० नजमा परवीन ने कहा कि पाकिस्तान का दाना पानी सब रुकेगा और तुर्की को भी जबाव दिया जाएगा। अब नागरिकों ने फैसला लिया है – तुर्की और पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं। यह सिर्फ विरोध नहीं, यह एक जन-आंदोलन है।

गौरतलब है कि यह प्रदर्शन (Varanasi) एक स्पष्ट संकेत है कि भारत के नागरिक अब केवल सरकार की ओर नहीं देख रहे – वे स्वयं एक नागरिक चार्टर की तर्ज पर राष्ट्रहित में अपने निर्णय ले रहे हैं। पाकिस्तान और तुर्की की शव यात्रा के साथ यह संदेश भी दिया गया कि राष्ट्र विरोधी ताकतों के खिलाफ भारत अब एकजुट है – शब्दों में नहीं, कर्म में।