Varanasi Weather: नवंबर का महीना जैसे ही मध्य तक पहुँचता है, वाराणसी की गलियों में ठंडक एक पुरानी मेहमान की तरह लौट आती है। लेकिन इस बार वह अकेली नहीं आई। उसके साथ चली आ रही है एक धुंधली चादर, जो सूरज को भी ढँक लेती है और साँसों को भारी कर देती है। काशी की सुबहें अब सिर्फ़ अलाव की तलाश में नहीं, मास्क की तलाश में भी शुरू होती हैं।
पारा 11 डिग्री तक लुढ़क चुका है। दिन में भी 26-27 डिग्री तक पहुँचने वाली गर्मी अब इतिहास लगती है। हवा में वह काट अब साफ़ महसूस होती है, जो हड्डियों तक पहुँचती है। लेकिन असली चोट तो वह नहीं जो हवा देती है, असली चोट वह है जो हम खुद शहर को दे रहे हैं। बीते दिनों AQI का आँकड़ा 550 के पार चला गया। यानी हवा में ज़हर की मात्रा इतनी कि उसे ‘गंभीर’ कहना भी कम लगता है।
Varanasi Weather: आसमान में छाया रहता है घंटों धुंध
शहर के भीतरी इलाकों में सुबह सात बजे भी दिन नहीं होता। घंटों धुंध छाई रहती है। गंगा का किनारा, जो कभी सूर्योदय का गवाह बनता था, अब धुएँ के परदे में गुम हो जाता है। वाहनों की लंबी कतारें, निर्माण कार्यों की धूल, पराली का धुआँ और कोयले-लकड़ी के अलाव; सब मिलकर एक घातक कॉकटेल तैयार कर रहे हैं। और सबसे दुखद यह कि ठंड बढ़ने के साथ ही यह कॉकटेल और गाढ़ा होने वाला है। मौसम विभाग (Varanasi Weather) ने कोहरे का अलर्ट जारी किया है। कोहरा आएगा तो हवा रुकेगी, और जब हवा रुकेगी तो ज़हर और गहराई तक घुस जाएगा।
डॉक्टर पहले ही चेतावनी दे चुके हैं। बुजुर्गों और बच्चों के फेफड़े सबसे पहले हार मानते हैं। आँखों में जलन, गले में खराश, साँस की तकलीफ़; ये अब मौसमी (Varanasi Weather) बीमारियाँ नहीं, रोज़मर्रा की हक़ीकत बनती जा रही हैं। अस्पतालों में मरीज़ बढ़ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि हम कब तक मास्क लगाकर, दवाइयाँ खाकर और कमरे बंद करके बचते रहेंगे?
काशी (Varanasi Weather) वह शहर है जहाँ सदियों से लोग मोक्ष की तलाश में आते रहे हैं। लेकिन आज यहाँ की हवा ही जीवन खाने पर तुली है। पराली जलाने वाले किसान, बेतहाशा बढ़ते वाहन, बिना नियंत्रण के चल रहे उद्योग और हमारी उदासीनता; ये सब मिलकर एक ऐसी सर्दी रच रहे हैं जो सिर्फ़ शरीर नहीं, आत्मा को भी ठिठुरा देती है।

