राधेश्याम कमल
वाराणसी। अखण्ड अनंत व अक्षय फल की प्राप्ति के लिए अक्षय तृतीया का व्रत मनाया जाता है। इस दिन से त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। इसी दिन परशुराम भगवान विष्णु के अंश के रूप में अवतरित हुए थे। जिसके फलस्वरूप भगवान परशुराम जयंती मनाने की भी परम्परा है। विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक जो व्यक्ति अक्षय तृतीया के दिन स्नान-दान जप- तप व पितृ तर्पण तथा हवन दान आदि धार्मिक कृत्य करता है उसे सभी तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है।
प्रसिद्ध ज्योतिषी पं. विमल जैन के मुताबिक वैशाख शुक्ल तृतीया की मान्यता अक्षय तृतीया की है। तिथि विशेष पर स्नान-दान व व्रत का विशेष विधान है। 23 अप्रैल को प्रदोष काल में तृतीया तिथि नहीं मिल रही है। फलस्वरूप परशुराम जयंती 22 अप्रैल शनिवार को प्रदोष काल में मनायी जायेगी। जबकि अक्षय तृतीया इस बार 23 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस वर्ष अक्षय तृतीया पर रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इसे बहुत श्रेष्ठ माना जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन व्रत कर्ता को चाहिए कि प्रात:काल ब्रह्म मुहुर्त में उठकर स्नान-ध्यान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके अक्षय तृतीया के व्रत का संकल्प लेकर विधि विधान पूर्वक पूजन अर्चन करनी चाहिए। आज के दिन भगवान नर-नारायण, परशुराम, हैहयग्रीव भूलोक पर अवतरित हुए थे। उनकी महिमा में व्रत उपवास पूरा करने पर अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम को ककड़ी, नर-नारायण को भुने हुए सत्तू से बने नैवेद्य, हैहयग्रीव को चने की भीगी दाल का भोग अर्पित करना चाहिए। तत्पश्चात धूप-दप के साथ पूजा अर्चना करने का विधान है। पूजा अर्चना के बाद अक्षय पुण्य की प्राप्ति के लिए भूदेव (ब्राह्मण) को जल से भरा घट (कलश) नवीन वस्त्र, पंखा, छाता, खड़ाऊं, चावल, दही, खरबूजा, तरबूज, सत्तू, जौ-गेहूं, चना,दूध, गुड़, अन्य उपयोगी वस्तुएं दक्षिणा के साथ दान करना चाहिए। इससे अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन पीले रंग का परिधान तथा स्वर्ण आभूषण धारण करना चाहिए। धर्मशास्त्रों में अक्षय तृतीया सनातन धर्मावलंबियों का प्रधान पर्व बताया गया है। इस दिन दान, स्नान, होम-जप आदि समस्त कर्मो का फल अक्षय होता है। मान्यता है कि पर्व विशेष पर व्रत-पर्व-दान और पुण्य फलकारी होता है। इससे ही इस व्रत को अक्षय कहा गया। अक्षय तृतीया तिथि विशेष पर किसी भी शुभ कार्य को किया जा सकता है।
अक्षय तृतीया पर राशियों के मुताबिक क्या करें दान
1-मेष- ब्राह्मण को जौ-सत्तू से बने पदार्थ का दान करें।
2-वृषभ- ऋतुफल जैसे खरबूजा, तरबूज, ककड़ी व अन्य फल, दूध, जल से भरा घड़ा।
3- मिथुन- हरा मंूग, खीरा, ककड़ी, सत्तू व अन्य हरे रंग के पदार्थ।
4- कर्क- साधु को जल से भरा कलश, दूध, मिश्री, छाता।
5- सिंह- शिव मंदिर में सत्तू, जौ-गेहू के आटे से बने पदार्थ।
6- कन्या- मंदिर में पुजारी को खीरा, तरबूज, ककड़ी का दान।
7- तुला-श्वेत पदार्थ दूध, मिश्री, खोवे से बनी मिठाइयां
8-वृच्छिक- जल से भरा कलश, पंखा, ताल रंग की मिठाई
9- धनु- शिव मंदिर में चने की दाल से निर्मित पदार्थ, सत्तू, फल, बेसन से बने पदार्थ
10- मकर- ब्राह्मण को जल से भरा घट, दूध, मिठाईयां
11- कुंभ- गरीब को जल से भरा घट, ऋतु फल, गेहूं व सत्तू से बने पदार्थ
12- मीन- ब्राह्मण व पुजारी को बेसन से बने पदार्थ, पीले रंग की मिठाईयां
विशेष- अक्षय तृतीया के दिन स्नान ध्यान के पश्चात दोपहर से पूर्व दान देना चाहिए। शिवपुराण के मुताबिक इस दिन भगवान शिव व पार्वती को मालती, मल्लिका, जवां, चंपा, कमल के पुष्पों से पूजा करने से मनुष्य के समस्त पापों का शमन होता है।