संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से दशरूपक कला संस्कृति सेवा समिति एवं श्री नागरी नाटक मंडली ट्रस्ट द्वारा सात दिवसीय बनारस रंग महोत्सव {Banaras Rang Mahotsav} का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कबीरचौरा स्थित श्री नागरी नाटक मंडली प्रेक्षागृह में चल रहे सात दिनी ‘बनारस रंग महोत्सव’ के दूसरे दिन गुरुवार को नाटक ‘नाथवती अनाथवत’ की बेहद प्रभावशाली और दर्शकों को स्तब्ध कर देने वाली सम्मोहक प्रस्तुति हुई। कन्हैया लाल स्मृति संस्कृति संस्थान की ओर से पेश इस प्रयोगधर्मी प्रस्तुति का मूल कथानक महाकवि वेदव्यास रचित महाकाव्य ‘महाभारत’ {Banaras Rang Mahotsav} पर आधारित है।

इसके जरिये {Banaras Rang Mahotsav} युद्ध और विनाश की जमीन पर उभरे नरसंहार, विजय और पराजय बोध संग युद्ध की निरर्थकता से उपजी विरक्ति एवं ध्वंस की लपटों में झुलसते-सिसकते मानव समूह की शांति की आतुर खोज तथा युद्धों से शाश्वत मुक्ति की एक तीखी छटपटाहट है।

ये रहा नाटक {Banaras Rang Mahotsav} का सार
द्रौपदी ने तो सिर्फ अर्जुन को ही चाहा था लेकिन परिस्थितियों ने उसे पांच भाइयों की पत्नी बना दिया। फिर भी एकमात्र भीम को ही उसने हमेशा अपने करीब पाया। तमाम मुश्किलों में सिर्फ भीम ही पांचाली की मदद के लिए आगे आते रहे। धृतराष्ट्र की राजसभा में जुए के खेल में हारने के दौरान जब युधिष्ठिर ने पांचाली को ही दांव पर लगा दिया तो भीम अपने बड़े भाई का हाथ जलाने के लिए उठ खड़ा हुआ।

भीम ने ही दु:शासन और दुर्योधन का अंत कर द्रौपदी के अपमान का बदला लिया। महाप्रस्थान {Banaras Rang Mahotsav} में जीवन की अंतिम यात्रा के दौरान भी सिर्फ भीम ही पांचाली के निकट था। अपमान की एक घटना की आग में झुलसते दुर्योधन की जिद और शकुनि के षड्यंत्र में फंसे पांचों पाण्डवों के सामने पांचाली भरी राजसभा में अपमानित हुई। युधिष्ठिर के ‘धर्मराज’ होने पर भी सवाल खड़े हुए।

अपमान की पराकाष्ठा के बावजूद पांडव युद्ध करने के बजाय कौरवों के साथ समझौता और शांति के लिए लालायित थे। लेकिन पांचाली हर हाल में अपने अपमान का बदला चाहती थी। उसका सोचना था कि कौरव-पांडवों के बीच धर्मयुद्ध होगा। लेकिन कौरव ही नहीं पांडवों ने भी अधर्म युद्ध ही किया, वो भी कृष्ण की सलाह से। दोनों पक्षों ने बहुत कुछ खोया।

इस प्रस्तुति में साफतौर पर महसूस हुआ की नाटक की तैयारी अत्यंत श्रमसाध्य रही होगी। निर्देशक सुरोजीत चैटर्जी, अभीनेत्री पूर्णिमा पांडेय और बैक स्टेज सहयोगियों के बीच जबरदस्त तालमेल दिखा। संवाद अदायगी, कम्पोजिशन्स तथा ब्लॉकिंग्स के अनूठे और चुनौतीपूर्ण प्रयोग के बीच लगातार करीब सवा घन्टे तक मंच पर एकल अभिनय करते हुए पूर्णिमा ने जिस तरह नर्तकी सूत्रघार समेत कौरव और पांडवों के विभिन्न पात्रों को जिया, वह सिर्फ एक्सपर्ट एक्टर के ही बस की बात है। आदीश पांडेय की संगीत परिकल्पना और ध्वनि प्रभाव असरदार रहा। नेपथ्य सहयोग आलोक पांडेय, मोहम्मद शहजाद खान ‘शैज’, अयन भट्टाचार्य एवं सुरोजीत चैटर्जी का था। सांवली मित्र की इस मूल बांग्ला कथा का हिंदी अनुवाद परितोष भट्टाचार्य ने किया है।
बता दें कि इस महोत्सव {Banaras Rang Mahotsav} में 1 नवंबर को कठपुतली नृत्य नाटिका अभिनव समिति की ओर से 2 नवंबर को लोकगीत प्रस्तुति, लाल जी प्रसाद की ओर से 3 नवंबर को कजरी कठपुतली नृत्य, सोमनाथ की ओर से 4 नवंबर को कजरी सोहर विलुप्त कलश, श्याम बिहारी विश्वकर्मा की ओर से 5 नवंबर को कठपुतली नृत्य, महेंद्र कुमार की ओर से 6 नवंबर को लोकगीत महादेव और साथी की ओर से 7 नवंबर को बिरहा गीत श्याम बिहारी व साथी प्रस्तुत की जाएगी।