Varanasi: वाराणसी की सड़कों पर सिर्फ मिट्टी और मलबा नहीं बिखरा, बल्कि उस स्वाद और संस्कृति की यादें भी बिखर गईं जो दशकों से लोगों के दिलों में बसी थीं। मंगलवार देर रात प्रशासनिक कार्रवाई के तहत शहर की दो ऐतिहासिक दुकानों—75 साल पुरानी ‘पहलवान लस्सी’ और 103 साल से स्वाद का पर्याय बनी ‘चाची की कचौड़ी’ समेत कुल 30 दुकानों को ध्वस्त कर दिया गया।

जब बुलडोजर पहलवान लस्सी की दुकान तक पहुंचा, तो मालिक मनोज यादव भावुक हो उठे। वे दुकान के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। चुपचाप कुछ पल आंखें मूंद कर मन ही मन प्रार्थना की, फिर दुकान (Varanasi) की मिट्टी को प्रणाम किया और दूर खड़े होकर टकटकी लगाए अपनी पूरी जिंदगी को ढहता देख रहे थे।

इसी तरह ‘चाची की कचौड़ी’, जो अपने स्वाद के लिए न सिर्फ स्थानीय लोगों बल्कि सैलानियों, नेताओं, अफसरों, फिल्मी सितारों और यूट्यूबर्स तक के बीच लोकप्रिय थी, अब इतिहास बन गई है। यहां की सुगंध और स्वाद, जो बनारस की सड़कों (Varanasi) की पहचान थी, अब सिर्फ सोशल मीडिया की पोस्टों में और लोगों की यादों में बचेगी।
सोशल मीडिया पर बना चर्चा का विषय
इस घटनाक्रम के बाद इंटरनेट पर लोगों की प्रतिक्रियाओं का सैलाब आ गया है। हर कोई इन दुकानों की तस्वीरें और वीडियो शेयर कर रहा है, और यह कह रहा है कि “बनारस जाना और ‘पहलवान लस्सी’ या ‘चाची की कचौड़ी’ न खाना, अब अधूरा सा लगेगा।”

दरअसल, यह कार्रवाई लंका चौराहा से विजया मॉल तक बनने वाली 9.512 किमी लंबी फोरलेन सड़क परियोजना के तहत की गई है, जिसकी कुल लागत 241.80 करोड़ रुपए है। यह सड़क लहरतारा से होते हुए भिखारीपुर तिराहा और संकट मोचन मार्ग से गुजरते हुए बनेगी। इसी परियोजना की जद में लंका चौराहे के पास स्थित ये 30 दुकानें आ रही थीं।
varanasi: एक महीने पर ही दिया गया था नोटिस
एक महीने पहले ही लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा इन दुकानों पर लाल निशान लगा दिए गए थे और विधिवत नोटिस भी दिया गया था। इन दुकानों की जमीन संकट मोचन मंदिर (varanasi) के महंत के परिवार की थी, जिसे किराए पर वर्षों से दुकानदार चला रहे थे।

प्रशासन ने दावा किया है कि मुआवजे की प्रक्रिया पूरी की जा रही है, लेकिन दुकानदारों की चिंता कुछ और ही है। दुकानदारों का कहना है कि “हम चाहकर भी इस टूटन को नहीं रोक पाए। अब 20-25 हजार रुपए किराए में दुकान लेना नामुमकिन है। हमारा भविष्य अनिश्चित है।”
वाराणसी के लिए ये दुकानें (varanasi) सिर्फ व्यवसाय नहीं थीं, बल्कि संस्कृति, स्वाद और शहर की आत्मा का हिस्सा थीं। अब जब इनकी दीवारें जमींदोज हो चुकी हैं, तो एक युग भी मानो ढह गया है।