यूपी में अक्सर राजनीतिक पार्टियां जाति आधारित राजनीति करती हैं। भाजपा, सपा, बसपा एवं कांग्रेस आदि इसमें कहीं से भी पीछे नहीं हैं। चुनाव के वक़्त ऐसे आयोजन बढ़ जाते हैं, जिसमें किसी जाति विशेष पर ध्यान दिया जाता है। सपा पर यादव-मुस्लिम, भाजपा पर ठाकुर-पंडित, बसपा पर दलित वर्ग की राजनीति के आरोप लगते रहते हैं। कोई भी राजनीतिक पार्टी जातिगत आयोजनों से पीछे नहीं हटना चाहती।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के चार राजनीतिक दलों सपा, भाजपा, कांग्रेस, बसपा एवं मुख्य चुनाव आयुक्त को नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने जवाब मांगा है कि राज्य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूरी तरह से क्यों नहीं रोक लगा दिया जाना चाहिए। उल्लंघन के मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त को उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने नौ साल पहले पारित किए अपने अंतरिम आदेश पर कोई कार्रवाई न होने पर नए नोटिस जारी किए हैं। याचिका पेश करने वाले ने कहा था कि राजनीतिक दलों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण कम संख्या वाली जातियां अपने ही देश में दोयम दर्जे की नागरिक बन गई हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 15 दिसंबर तय की है।
9 वर्ष पहले हाईकोर्ट ने लगाया था रोक
बता दें कि हाईकोर्ट ने 9 साल पहले 2013 में अंतरिम आदेश जारी करते हुए जातिगत रैलियों पर रोक लगा दी थी। उस समय मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने मोतीलाल यादव द्वारा एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किए था। जिसके बाद यूपी में जाति आधारित रैलियों पर रोक लगा दी गई थी।
कोर्ट को अभी तक नहीं मिला कोई जवाब
इस मामले में 9 वर्ष पहले ही कोर्ट ने जातिगत रैलियों पर रोक लगाते हुए अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए तमाम राजनितिक पार्टियों (सपा, भाजपा, बसपा, कांग्रेस) को नोटिस जारी किया गया था। जिसमें 9 वर्ष बीत जाने पर भी किसी राजनीतिक दल ने कोर्ट को जवाब देना उचित नहीं समझा। न तो इस सम्बन्ध में मुख्या चुनाव आयुक्त ने ही कोई जवाब दिया। इस पर चिंता जताते हुए पीठ ने राजनीतिक दलों और मुख्य चुनाव आयुक्त को 15 दिसंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए ताजा नोटिस जारी किया है।