Chandauli Loksabha: धान का कटोरा कहे जाने वाली चंदौली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी दोनों का फ्लेवर एक ही है। काशी के बगल में बसे चंदौली के बारे में कहा जाता है कि यहां की राजनीतिक सोच काशी से काफी मिलती-जुलती है। काशी की तरह ही यहां पिछले दो बार से बीजेपी के सांसद हैं। अब बीजेपी ने यहां जीत की हैट्रिक लगाने के लिए एक बार फिर अपने पुराने सिपाही महेंद्र नाथ पांडे पर ही दांव लगाया है।
भले ही चंदौली में आज भगवा लहरा रहा है, लेकिन कभी यह कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था। तब कांग्रेस को समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डॉ० राम मनोहर लोहिया भी शिकस्त नहीं दे पाए थे। शुरुआती चार चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी जीती थी, लेकिन आज यहां कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। चंदौली का लोकसभा सीट अपने राजनीतिक इतिहास के कारण हमेशा सुर्खियों में रहा है। यहां लगभग सभी राजनीतिक दल जिसमें कांग्रेस पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी, जनता दल, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सभी ने जीत का स्वाद चखा है। चंदौली में कांग्रेस चार और बीजेपी सबसे ज्यादा पांच बार जीत दर्ज करने में कामयाब रही है।
Chandauli Loksabha: दूसरी बार महेंद्र नाथ पांडेय बने सांसद
चंदौली में 2019 में डॉ० महेंद्र नाथ पांडे ने दूसरी बार जीत दर्ज की थी। क्योंकि 2019 में सपा बसपा चुनाव लड़ रही थी, तो महेंद्र पांडे को जबरदस्त टक्कर मिली। 2014 में 1,56,756 वोट से बसपा प्रत्याशी अनिल कुमार मौर्य को हराने वाले महेंद्र नाथ पांडेय ने 2019 में सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी संजय सिंह चौहान को करीब 14000 वोटों से हराया था। डॉ० पांडे को 5 लाख 10 हजार 733 वोट मिले थे, जो 2014 से करीब एक लाख वोट ज्यादा थे। इसके बाद भी उनके जीत का अंतर घट कर 13 हजार 959 वोट रह गया था। अब 5 साल बाद सपा बसपा अलग हैं।
1962 तक कांग्रेस रही अजेय
1952 में हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी ने जीत दर्ज की थी। 1962 तक यहां कांग्रेस अजेय रही। 1952 और 57 में समाजवाद के पुरोधा डॉ० राम मनोहर लोहिया को भी यहां हार का सामना करना पड़ा था। 1957 में उन्हें कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने शिकस्त दी थी। त्रिभुवन नारायण सिंह बाद में यूपी के सीएम भी बने। 1968 में चंदौली में सोशलिस्ट पार्टी के निहाल सिंह सांसद बने। वर्ष 1971 में कांग्रेस ने फिर वापसी की और सुधाकर पांडे ने यहां से जीत दर्ज की। वर्ष 1977 में हुए बदलाव का असर यहां भी देखने का मिला और जनता पार्टी के नरसिंह यादव सांसद बने।
1980 में एक बार फिर निहाल सिंह जीत दर्ज करने में कामयाब हुए। इस बार उन्होंने जनता दल से चुनाव जीता। 1984 में पुनः कांग्रेस की वापसी हुई और चंद्रा त्रिपाठी सांसद बने। जबकि 1989 में जनता दल के कैलाशनाथ सिंह सांसद बने थे। इसके बाद 1991 में बीजेपी ने यहां खाता खोला और लगातार तीन बार 91, 96 और 98 में भारतीय जनता पार्टी के भारत रत्न मौर्य सांसद बने। 1999 में सपा के जवाहरलाल जायसवाल, 2004 में बसपा के कैलाश नाथ, 2009 में सपा के रामकृष्ण यादव फिर 2014 और 19 में बीजेपी के महेंद्र नाथ पांडे ने जीत दर्ज की है।
चंदौली लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें वर्तमान में चार पर भाजपा के विधायक हैं। 18 लाख से ज्यादा मतदाता वाले चंदौली लोकसभा सीट में सबसे ज्यादा यादव जाति के मतदाता हैं। यहां यादवों की संख्या करीब 2 लाख 75 हजार है। दलितों का वोट 2.5 लाख के पार है। पिछड़ी जाति में आने वाले मौर्य की आबादी 1 लाख 75 हजार है। जबकि राजपूत, ब्राह्मण, राजभर और मुस्लिम भी करीब एक लाख हैं। बीजेपी ने जहां महेंद्र नाथ पांडे को टिकट दिया है, वहीं अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने वीरेंद्र सिंह पर दांव लगाया है।
Highlights
एक नजर चंदौली लोकसभा सीट पर
1957 – त्रिभुवन नारायण सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1959 – प्रभु नारायण सिंह (सोशलिस्ट पार्टी)
1962 – बाल कृष्ण सिंह (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1967 – निहाल सिंह संयुक्त (सोशलिस्ट पार्टी)
1971 – सुधाकर पांडे भारतीय (राष्ट्रीय कांग्रेस)
1977 – नरसिंह यादव (जनता पार्टी)
1980 – निहाल सिंह _
1984 – चंद्रा त्रिपाठी (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)
1989 – कैलाश नाथ यादव (जनता दल)
1991 – आनंद रत्न मौर्य (भारतीय जनता पार्टी)
1996 – आनंद रत्न मौर्य (भारतीय जनता पार्टी)
1998 – आनंद रत्न मौर्य (भारतीय जनता पार्टी)
1999 – जवाहर लाल जयसवाल (समाजवादी पार्टी)
2004 – कैलाश नाथ यादव (बहुजन समाज पार्टी)
2009 – रामकिशुन (समाजवादी पार्टी)
2014 – महेंद्र नाथ पांडे (भारतीय जनता पार्टी)
2019 – महेंद्र नाथ पांडे (भारतीय जनता पार्टी)
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