Chaubepur News: श्री राम शिवोत्सव मारकंडेय महादेव महोत्सव कैथी में शामिल होने सोमवार भजन गायक अनूप जलोटा दो दिवसीय वाराणसी के दौरे पर आए थे. अनूप जलोटा के मुताबिक, उन्होंने भजन गायकी को इसलिए चुना क्योंकि यह अध्यात्म से जुड़ा है।
वह कहते हैं कि जब गायन की विधा आध्यात्म से जुड़ती है, तो उसका स्थान प्रथम हो जाता है। अनूप जलोटा ने फिल्मों में कुछ रोमांटिक गाने भी गाए हैं, लेकिन उनका झुकाव भजन और गजल गायकी की तरफ ही रहा है. इनका जन्म 29 जुलाई 1953 को लखनऊ मे हुआ. इसके अलावा इनकी पढ़ाई लखनऊ विश्वविद्यालय मे बीए तक हुई है। ये पढ़ाई में बहुत अच्छे थे. मात्र बीस वर्ष की अवस्था में ये मायानगरी मुंबई आ गए। अनूप जलोटा ने ‘जनसंदेश टाइम्स से सोमवार को खास बातचीत की।
संगीत की तरफ कैसे आना हुआ?
संगीत की तरफ पारिवारिक माहौल के वजह से आना हुआ। मेरे पिता पुरुषोत्तमदास प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक थे। मै पिताजी के प्रेरणा की वजह से ही मैं गायन क्षेत्र में आया और श्रोताओं के प्यार से आज यह मुकाम मिला।
आपने भजन ही क्यों चुना?
मैंने शुरुआत शास्त्रीय संगीत से की थी। मुझे ऐसा लगा कि लोग मेरे गाए भजनों को अधिक पसंद कर रहे हैं, लिहाजा मैंने भजन शैली को ही अपना लिया। दूसरी बात यह कि गाने व गजल की तुलना में भजन गाने से एक अलग तरह की संतुष्टि होती है।

परदे के पीछे गाना सरल है या मंच पर?
दोनों कठिन हैं। पार्श्व गायन और मंच गायन, जिसको जो रास आ जाए, उसके लिए वही अच्छा है।
एक अच्छा गायक बनने के लिए क्या-क्या जरूरी है?
सबसे पहले ईश्वर की कृपा जरूरी है। नियमित रियाज और गायन के प्रति समर्पण भी भूमिका निभाता है। प्रसिद्धी दिलाने में शास्त्रीय संगीत का ज्ञान अहम होता है। इसकी बदौलत गायक इस न केवल जल्दी स्थापित होते हैं, बल्कि देर तक टिके भी रहते हैं।
किस जगह कार्यक्रम पेश कर आपको सबसे ज्यादा खुशी हुई और कहां दुख होता है?
सबसे ज्यादा आनंद काशी मे संकट मोचन संगीत समारोह में गाकर आता है, यहां आकर मन को शांति मिलती है क्योंकि काशी के घर-घर में संगीत सीखा जाता है मेरा काशी मे पचासवां दौरा है जहा संगीत की साधना होती है। इसके बाद नंबर महाराष्ट्र का आता है। दक्षिण भारत के कुछ शहरों में जाकर दुख होता है, क्योंकि वहां के लोग या तो हिंदी समझते नहीं या कुछ लोग समझते भी हैं तो दर्शाते नहीं।
आपको कब लगा कि भजन गायकी में आपकी पहचान बन गई है?
मेरा एक म्यूजिक एलबम ‘भजन संध्या’ रिलीज हुआ था। उसमें ‘ऐसी लागी लगन’ , ‘रंग दे चुनरिया’ जैसे हिट भजन आ गए थे।इस एलबम के रिलीज के एक हफ्ते के बाद ही भजन घर घर पहुंच गया। वह भजन बना नहीं था, उस पर कृपा हो गई थी। इसके अलावा मेरे पायो जी मैंने राम रतन धन पायो, जग मे सुंदर है दो नाम, प्रभु जी तुम चन्दन मैं पानी, गोविन्द बोलो जय गोपाल बोलो, चलती चक्की देख कबीरा दिया रोय, यसोमति मैया से बोले नंदलाला,सहित अनेको गाने से पहचान मिली.
आपका अभी तक कितनाना भजन और फिल्म में गाना आ चूका है?
मेरा अब तक 100 से ज्यादा भजन आ चुके हैं. जिसको घर-घर लोगों ने सुना है और पसंद किया है. अभी मेरा एक भजन अयोध्या मे राम के नाम से आ रहा है. जो टी सीरीज के यूट्यूब चैनल पर मिलेगा। मैने दस से ज्यादा हिंदी फिल्मो मे भी गाना गाया है. जिसमे अपने जमाने की पापुलर फ़िल्म एक दूजे के लिए मेरे द्वारा गाए गए गीत 16 बरस की उमर को सलाम जो जबरदस्त हिट हुई थी इसमें मेरे साथ लता मंगेशकर जी ने स्वर दिया था।
पहले के जमाने से अब के जमाने में क्या अंतर है?
पहले कोई भी भजन को रिकॉर्डिंग करके ऑडियो कैसेट के माध्यम से मार्केट मे लॉन्च करने मे महीनो लग जाते थे अब एक हफ्ते में रिकॉर्डिंग करके यूट्यूब चैनल के माध्यम से रिलीज कर पुरे विश्व मे घरों घरों में पहुंच जाता है।