- इसे रोकने का गंभीर प्रयास नहीं हो रहा
- कितने पैसे लगे हैं दांव पर, क्यों हैं लब सिले हुए
वाराणसी। चाइनीज मंझा! ये नाम कुछ दशक पहले बनारस क्या, कम से कम यूपी के पतंग उड़ाने के शौकीनों ने नहीं सुना था। नायलॉन ने मंझे के पीछे लगने वाली सद्दी का स्थान लिया और फिर वह खुद पतंग का हरावल दस्ता बन गया। नतीजा यह हुआ कि बरेली में निर्मित परंपरागत मंझा धीरे-धीरे अप्रासंगिक हो गया। बहुत से ट्रेडिशनल उड़वैया परेता घर रखकर संन्यास में चले गए कि ये तो बेमजा हो गया। लेकिन तभी मंझे की शक्ल में एक और मजबूत धागा लोगों के परेते में लिपट गया और जब उसने राहगुजारों के हाथ और गले को चाक करने लगा तो सब चौंके कि अब तक तो कोई मंझा ऐसा नहीं था जो हाथों के अलावा दूसरे मजबूत अंगों को काट देता। पता चला कि ये चाइनीज मंझा है। बहस चली कि यह चीन से आया है क्या? फिर पता चला कि भारत में ही बनता है और नाम चाइना है।
अब हालत यह है कि चाइनीज मंझा हवा में उड़ती मौत बन गया है। इस मंझे ने न जाने कितनों की जान ली है बल्कि कइयों को जीवन भर का घाव दे रहा है। अफसोस इस बात का है कि इस पर कानून होने के बाद न तो लगाम है, न ही कोई ठोस रणनीति। दो महीने के लिए प्रशासन दिखाने के लिए जगता है, फिर सो जाता है, इस मंझे का व्यापार करने वाले भी मस्त हैं क्योंकि उनको पता है कि प्रशासन हल्की कार्रवाई कर अपनी पीठ थपथपाता है। बीते साल छह साल की बच्ची इस हत्यारे मंझे का शिकार हुई और जान गंवा दी। ऐसा कोई दिन नहीं जब पांच दस लोग इस मंझे का शिकार नहीं होते हैं। बावजूद इस जानलेवा मंझे पर नकेल कसने में प्रशासन फेल है। हां ये अलग बात है कि दस बीस किलो मंझा बरामद या जब्त कर पीठ थपथपा ले लेकिन सच्चाई ये है कि असल में इस पर कार्रवाई होती ही नहीं अगर होती तो क्या मजाल की कोई चाइनीज मंझे का कारोबार कर सकता।
यहां चाइनीज मंझे का सबसे ज्यादा भंडारण
शहर के कुछ इलाके ऐसे जहां प्रशासन छापेमारी से गुरेज करता है। जबकि सबसे ज्यादा इस जानलेवा मंझा का भंडारण यहीं पर होता है। कैसा भी मंझा हो यहां आसानी से उपलब्ध हो जायेगा बस जेब ढीली करनी होगी। जैसे दालमंडी, हड़हासराय, कुंदीगर टोला चौक, औरंगाबाद, लल्लापुरा, हनुमान फाटक, पीलीकोठी, अंबियामंडी, सुग्गा गढ़ही, जैसे अन्य इलाके है, यहां से शहर ही नहीं बल्कि पूर्वांचल में चाइनीज मंझे की सप्लाई होती है लेकिन इन इलाकों में छापेमारी तो दूर महकमा जाने से भी बचता है।
प्रशासन बेपरवाह, कारोबारी भी चिंता मुक्त
प्रशासनिक बेपरवाही का नतीजा है कि कारोबारी भी चिंता मुक्त हैं। उन्हें पता होता है कि होने वाला कुछ भी नहीं। कुछ पैसे खर्च करके धड़ल्ले से कारोबार चलता रहेगा। केवल छापेमारी से ही नहीं बल्कि खुद पुलिस ग्राहक बनकर पहुंच और रेकी कर छापेमारी शुरु करे तो निश्चय ही कारोबारियों के अंदर भय पैदा होगा और काफी हद तक इस किलर मंझे पर लगाम लगेगी।
असल में जागरूकता की दरकार है यहां
तमाम समाज सेवी संगठन चाइनजी मंझे पर नकेल कसने को लेकर जागरूकता अभियान चलाते हैं, जो सुनने-देखने में अच्छी बात है। लेकिन ये अभियान एक ही दिन का होता है। हां, अगर कोई बड़ी घटना घट जाय, तो संगठन फिर सड़कों पर उतर आते हैं। लेकिन ये सारे अभियान ‘प्याली में तूफान’ ही साबित होते हैं। ये जरूर है कि अखबरों की सुर्खियां जरूर बन जाती हैं। प्रशासन को चाहिए कि जैसे नारी शक्ति अभियान, डायल 112 के बारे में जागरूक करने के लिए स्कूलों कॉलेजों में जाती हैं। वैसे ही चाइनीज मंझे के खिलाफ प्रशासन समय समय पर स्कूल कॉलेजों में बच्चों को जागरूक करे ताकि उन्हें इसके प्रयोग से होने वाले नुकसान का पता चल सके। उन्हें जानकारी मिले कि कैसे ये मंझा किसी की जान ले सकता है। कितनों की जान चली गयी या गंभीर रूप से घायल हो गये। अगर इस तरह का अभियान स्कूल कॉलेजों में चलेगा तो निश्चय ही इसका व्यापक असर पड़ेगा।
नहीं भूली है छह साल की कृृतिका की मौत
एक आंकड़े पर नजर डालें तो बीते पांच साल में आधा दर्जन से ज्यादा मौत की वजह ये चाइनीज मंझा बना, वहीं सौ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आकर गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं। 30 दिसंबर 2020 कैंट थाना क्षेत्र के नदेसर घौसाबाद निवासी संदीप गुप्ता अपनी सात साल की बेटी कृतिका संग जा रहे थे कि वह चाइनीज मांझे की चपेट में आ गई और उसका गला कटा और उसकी मौत हो गयी। बीते साल 15 जनवरी को सामनेघाट पुल पर चीनी मंझे से घायल रिटायर्ड बिजली विभाग के जेई ओवैश अंसारी की मौत हो गयी। जिला और मंडलीय अस्पताल में इन दिनों रोजाना आधा दर्जन से ज्यादा चाइनीज मंझा के शिकार लोग इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
इंसान तो इंसान बेजुबान भी हो रहे शिकार
चाइनीज मंझे का शिकार इंसान ही हो रहे, ऐसा नहीं है। बेजुबान पशु भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। आसमान में पक्षी कितनी बार मंझे से अपने पंख गंवाते हैं और बाद में जान भी दे देते हैं। जमीन पर चलने वाले पशु भी कई बार अपने कान गंवा देते हैं, शरीर जख्मी होता है सो अलग।