- अधिसूचना जारी होने में हो रही देरी, उत्साहित उम्मीदवारों की कोर्ट पर टीकी निगाह
वाराणसी। निकाय चुनाव में देरी अब उम्मीदवारों के जेब पर भारी पड़ने गली है। जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं वैसे-वैसे इनका खर्च भी बढ़ता जा रहा है। उधर आरक्षण का मामला कोर्ट में जाने के बाद अधिसूचना जारी होने में संसंय की स्थिति भी बनी हुई है। जिसे चुनाव की तारीखों पर संसंय बना हुआ है।
चुनाव चाहे किसी भी पद के लिए हो उम्मीदवारों की जेब तो ढीली होनी ही है। लेकिन चुनाव समय पर न होने से उम्मीदवारों का खर्च बढ़ जाता है। वैसे ही इस बार के निकाय चुनाव की स्थिति बनी हुई है। जहां चुनाव की अधिसूचना दिसंबर के पहले सप्ताह में जारी होने के कयास लगाए जा रहे थे। जिसपर आरक्षण का ग्रहण लग गया। मामला हाई कोर्ट तक पहुंचने के बाद उम्मीदवारों की उत्सुकता भी जवाब देने लगी। उम्मीदवार जो अपने-अपने वार्डों में पार्षद और नगर पंचायत सदस्य पद की तैयारी में जुटे थे उनके खर्च दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। कई संभावित प्रत्याशियों से बात करने पर पता चला कि चुनाव की आहट से लेकर अब तक उनके दिन का न्युनतम खर्च दो से तीन हजार प्रतिदिन हो गया है। लोगों से मिलने और चाय-पान कराने में ही जेब खाली हो जा रही है। ऐसे में चुनाव का मामाला कोर्ट में जाने से कईयों की उम्मीद भी जवाब देने लगी है। इनमें कई ऐसे उम्मीदवार हैं जो इन दिनों क्षेत्र में खर्च बचाने के लिए नहीं निकल रहे। उधर राजनीतिक दल भी अब कोर्ट की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं।
लग्न में खर्चा और भी बढ़ गया
लग्न का सीजन चल रहा है। अपनी दवेदारी मजबूत करने के लिए उम्मीदवों को क्षेत्र के सभी आमंत्रणों में मौजूद होना पड़ रहा है। जिसमें उनको अपनी जेब भी ढिली हो करनी पड़ रही है। कुछ उम्मीदवारों से बातचीत में पता चला कि उनको प्रति आमंत्रण एक से दस हजार तक का व्यवहार करना पड़ रहा है। वहीं कुछ का कहना है कि विवाह में सामान और गिफ्ट देने में काफी खर्च बढ़ गए हैं।
समर्थकों का भी बढ़ रहा बोझ
चुनाव कैसा भी हो बिना समर्थक के कोई भी उम्मीदवार अपनी मजबूत दावेदारी पेश करने में नाकाम हो जाता है। ऐसे में क्षेत्र के प्रचार-प्रसार और नारे लगाने वालों पर भी खर्च का बोझ रहता है। यहां तक की राजनीतिक पार्टियों व पदाधिकारियों के पास पहुंचने वाले उम्मीदवारों को मजबूती दिखाने के लिए साथ समर्थक लेकर जाना होता है। जिनकी वजह से चुनाव से पहले का खर्च भारी पड़ रहा है।
विजीटिंग कार्ड और पोस्टर भी बड़ रहे भारी
19 का दशक बितने के बाद पेंटरों द्वारा लिखावटी कपडे के बैनर बंद हो गए। जिसकी जगह अब विजीटिंग कार्ड और फोर कलर पोस्टर और फ्लैक्स ने ले लिए हैं। जिनका खर्च लिखावटी बैनरों से काफी ज्यादा हैं। चुनाव की लेट लतिफि की वजह से उम्मीदवारों पर विजीटिंग कार्ड और बैनरों का भी खर्च भारी पड़ रहा है। क्षेत्र के दिवारों और खंभों पर लगे नवरात्रि और दीपावली की शुभकामनाओं की जगह अब प्रिंटिंग कंपनियों को नववर्ष और मकर संक्रांति के नए बैनर छपने के आर्डर दिए जा रहे हैं।