Deva Sharif Majar: जब देशभर में होली की तैयारियां जोरों पर हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के देवा शरीफ दरगाह पर एक अनोखा नजारा देखने को मिलता है। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की यह दरगाह अखंड भाईचारे और कौमी एकता का प्रतीक है, जहां हर साल रंगों का यह त्योहार हिंदू-मुस्लिम मिलकर मनाते हैं। इस ऐतिहासिक मजार पर होली का जश्न किसी धार्मिक या जातीय भेदभाव से परे होता है, और इसे अवध की खास पहचान के रूप में देखा जाता है।
Deva Sharif Majar: मजार पर सदियों पुरानी होली की परंपरा
देवा शरीफ की यह मजार करीब 200 साल पुरानी है, और यहां हर साल होली का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। दूर-दराज से आए श्रद्धालु गुलाल, फूलों की पंखुड़ियों और रंगों से एक-दूसरे को सराबोर कर इस पर्व का आनंद लेते हैं। इस आयोजन में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग शामिल होते हैं और प्यार व भाईचारे का संदेश देते हैं।
गाजे-बाजे के साथ निकलता है होली जुलूस
होली के दिन ‘कौमी एकता गेट’ से एक विशाल जुलूस निकाला जाता है, जिसमें बैंड-बाजों की धुन और रंगों की बौछार होती है। दरगाह परिसर में पहुंचने पर, वहां मौजूद लोग गुलाब की पंखुड़ियों और अबीर-गुलाल से स्वागत करते हैं। यह नजारा मथुरा और वृंदावन की होली की याद दिलाता है।
देशभर से पहुंचते हैं श्रद्धालु
यहां मनाई जाने वाली होली की अनूठी परंपरा न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी और दिल्ली से गुजरात तक के लोगों को आकर्षित करती है। हर साल यहां बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों से लोग आकर इस भाईचारे के उत्सव में शामिल होते हैं।
हाजी वारिस अली शाह: सूफी संत जिन्होंने कौमी एकता की मिसाल पेश की
देवा शरीफ का यह इलाका लखनऊ से मात्र 42 किमी दूर स्थित है और यह सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की जन्मस्थली है। उनका जन्म 19वीं शताब्दी की शुरुआत में एक हुसैनी सय्यद परिवार में हुआ था। उनके पिता सैयद कुर्बान अली शाह के निधन के बाद, उन्होंने सूफी मत की राह अपनाई और पूरी जिंदगी धर्म, प्रेम और एकता का संदेश दिया। हिंदू समुदाय भी उन्हें आदर्श सूफी और वेदांत का अनुयायी मानता था। 7 अप्रैल 1905 को उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी संप्रदायिक सौहार्द्र की परंपरा आज भी कायम है।
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देवा शरीफ की होली: धार्मिक सौहार्द्र का प्रतीक
जब देश में धार्मिक मतभेदों की चर्चा होती है, तब देवा शरीफ दरगाह की यह अनूठी होली एक मिसाल पेश करती है। यहां बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों के लोग एक साथ गुलाल लगाकर, रंगों से सराबोर होकर और प्रेमपूर्वक मिलकर त्योहार मनाते हैं। यह सिर्फ होली का जश्न नहीं, बल्कि आपसी भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी है।