- भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है निर्जला एकादशी
राधेश्याम कमल
वाराणसी। हिंदू सनातन धर्म में व्रत व त्यौहार की परम्परा काफी पुरातन है। भारतीय सनातन धर्म में निर्जला एकादशी तिथि अपने आप में विशेष शुभ फलदायी मानी गई है। विशेष तिथियों पर पूजा-अर्चना करके सर्व मनोकामना पूरी की जाती है। ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी के व्रत से वर्ष भर के समस्त एकादशी के व्रत का फल मिल जाता है। इस व्रत के करने से मोक्ष की प्राप्ति के साथ ही जन्म-मरण के बंधन से भी मुक्ति मिल जाती है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से जानी जाती है।
प्रसिद्ध ज्योतिषविद् पं. विमल जैन के मुताबिक ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 मई मंगलवार को दिन में 1.09 मिनट पर लगेगी जो कि 31 मई बुधवार को दिन में 1.47 मिनट तक रहेगी। निर्जला एकादशी के समस्त धार्मिक अनुष्ठान 31 मई बुधवार को सम्पन्न होंगे। इसी दिन व्रत भी रखा जायेगा। निर्जला एकादशी की खास महिमा है जैसा कि तिथि के नाम से विदित है कि तिथि विशेष के दिन सम्पूर्ण दिन निर्जल व निराहार रह कर भक्ति भाव के साथ पीले वस्त्र पहन कर भगवान श्रीहरि विष्णुजी की हर्षोल्लास के साथ पूजा-अर्चना करने का विधान है।
इस दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठ कर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा स्नान आदि करना चाहिए। गंगा स्नान यदि संभव न हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा अर्चना के पश्चात व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों को यथा संभव दान करना चाहिए। उन्हें जल से भरा कलश, अन्न, मिष्ठान्न, चीनी, शक्कर, गुड़, फल, स्वर्ण-रजत पंखा व दक्षिणा देने का विधान है।