Flashback 1967: चुनाव के दिनों में भले ही पार्टी कार्यालय गुलजार रहते हों लेकिन बाकी दिनों में राजनेता मीटिंग के लिए ही कार्यालयों में पहुंचते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने चुनाव कार्यालय में ही अपना जीवन गुजार दिया। ये और कोई नहीं ये हैं 1967 के चुनाव के विजेता और वाराणसी के चौथे सांसद सत्यनारायण सिंह, आइए बताते हैं आपको वाराणसी के चौथे सांसद सत्यनारायण सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां..
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काशी के पूर्व सांसद सत्यनारायण सिंह [Flashback 1967] कार्यालय में रहकर ही चुनाव जीते और उन्होंने कार्यालय में ही अपनी अंतिम साँसे ली। उन्हें सर्वहारा वर्ग का सच्चा प्रतिनिधि कहा जाता था। मुस्लिमों के बीच वह खासे लोकप्रिय थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि आजादी के बाद से जब से चुनाव शुरू हुआ यानि कि बनारस के पहले से लेकर तीसरी आम चुनाव में जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस का तिलिस्म वर्ष 1967 के आम चुनाव में माकपा उम्मीदवार सत्यनारायण सिंह ने तोड़ा था। सत्यनारायण सिंह ने कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. रघुनाथ सिंह को हराकर अपनी जीत दर्ज कराई थी।

जनता की सेवा ही उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य
ऐसे तो मूल रूप से सत्यनारायण सिंह जौनपुर जिले के मडि़याहूं क्षेत्र के रहने वाले थे लेकिन छात्र जीवन से ही उनका जुड़ाव वाराणसी से हो गया था। देश के चौथे लोकसभा चुनाव (1967) से पहले सीपीआई के कुछ नेताओं ने मिलकर भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (CPIM) नाम से एक अलग पार्टी [Flashback 1967] बनाई थी। इसके बाद सत्यनारायण सिंह भी इस CPIM पार्टी का हिस्सा बन गए, उससे जुड़ गए।
पार्टी से जुड़ने के बाद उहोने जनता की सेवा के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। जनता की समस्या का समाधान ही उनके जीवन का एक मात्र उद्देश्य बन गया था। कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी से जुड़ने के बाद जब 1967 में वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर पार्टी कार्यालय [Flashback 1967] खुला तो वह वहीं रहने लगे।
इसके बाद फिर क्या था कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी ने अपनी चुनावी रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी और 1967 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई, सीपीआईएम और सोशलिस्ट पार्टी ने संयुक्त मोर्चा के बैनर से वाराणसी लोकसभा सीट से सत्यनारायण सिंह को चुनावी मैदान में उतारा। उस समय शहर दक्षिणी से विधायक रुस्तम सैटिन, राजनारायण और प्रभुनारायण ने उनका प्रचार किया।
प्रचार के दौरान कई बार खत्म हो जाता था जीप का तेल
सत्यनारायण सिंह पार्टी की जीप से ही प्रचार करते थे। प्रचार के दौरान कई बार जीप का तेल खत्म हो जाता था। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता और तीन बार से लगातार सांसद चुने जा रहे डॉ. रघुनाथ सिंह को शिकस्त दी। वाराणसी लोकसभा सीट से पहले सत्यनारायण सिंह [Flashback 1967] भदोही से विधानसभा का चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।
Flashback 1967: खुद रोटी बनाकर नेताओं को खिलाया खाना
बात अगर 1967 के माहौल की करें तो वाराणसी में उस वक़्त अंग्रेजी विरोधी आंदोलन चल रहा था। देवव्रत मजूमदार समेत सोशलिस्ट नेता इस आंदोलन को चला रहे थे। कांग्रेस इससे अलग थी। पुलिस की गिरफ्तारी के डर से यह नेता दिल्ली भाग गए। दिल्ली में ही रात के समय सत्यनारायण सिंह [Flashback 1967] के सरकारी आवास पर पहुंचे। आवास पर कोई नौकर नहीं था। सत्यनारायण सिंह ने खुद आटा गूंथकर रोटी बनाई। मेहमानों को रोटी और नमक, प्याज खिलाया।
फटी कोट पहन कर सत्य नारायण सिंह जाते थे लोकसभा
इतना ही नहीं, लोकसभा सदस्य चुने जाने के बाद सत्यनारायण सिंह के नए कपड़े नहीं थे। वह फटी कोट पहन कर लोकसभा में जा रहे थे। इसके बाद सत्यनारायण सिंह की मदद उनके एक मित्र ने की और उन्हें अपना एक कोट दिया जिसे पहनकर वह लोकसभा पहुँचते थे।

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में सबसे हाई-प्रोफाइल सीट वाराणसी मानी जाती है। वाराणसी सीट पर अब तक 17 बार आम चुनाव हो चुके हैं। जिसमें 7 बार बीजेपी और 7 बार कांग्रेस को जीत मिली है। जबकि सीपीएम, जनता दल और जनता पार्टी को भी एक-एक बार सफलता मिल चुकी है। अब देखना ये होगा कि इस बार के चुनाव में किसे मिलेगा जनता का प्यार, किसे देखना होगा हार का मुंह, ये तो समय ही बताएगा।
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