- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में जिले के छह हजार से अधिक अपात्रों को रिकवरी की नोटिस
- पात्रता निर्धारित करने वाले लेखपालों को बचाने के लिए नजरअंदाज करना बना चर्चा का विषय
वाराणसी। जनपद में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए पात्र न होने के बावजूद कई किश्त ले चुके छह हजार से अधिक अपात्रों से वसूली जारी है। अबतक लगभग 55 लाख 44 हजार रुपये की वसूली हो चुकी है। हैरत की बात यह है कि स्कीम में पात्रता की पुष्टि करने वाले तहसील कर्मियों की कोई जिम्मेदारी न तो तय की गयी है और न ही उनसे किसी प्रकार का सवाल-जवाब हो रहा है। इसे लेकर अफसर भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं। इस गोलमाल में लेखपालों की हो रही अनदेखी चर्चा का विषय बनी हुई है।
सूत्र बताते हैं कि जिले में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ लेने वाले अपात्रों की संख्या करीब छह हजार 720 है। उन सभी को नोटिस जारी कर कृषि विभाग के लखनऊ स्थित स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के खाते में धनराशि जमा करायी जा रही है। शेष अपात्रों से आगामी दस जून के बाद से वसूली प्रक्रिया शुरु करेंगे। फर्जी अभिलेख बनाकर इस योजना का लाभ लेने वालों में सरकारी कर्मचारी, आयकर दाता समेत ऐसे तमाम लोग रहे जो पीएम किसान सम्मान निधि की पात्रता में मानक में आते ही नहीं।
यह प्रकरण ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार बीते साल गिर गाय के मुफ्त वितरण को लेकर उपजे विवाद के बाद सत्ता में गहरी पकड़ रखने वालों को रेवड़ी की तरह गिर गायें बांट दी गयीं और पहले से सर्वेक्षण कर तैयार की गयी पात्रता की सूची में शामिल दर्जनों लोगों को दरकिनार कर दिया गया। इधर, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ लेने की सबसे पहली प्रक्रिया यही है कि आवेदन तहसील के लॉगइन पर जाता है। वहां संबंधित किसान के बारे में लेखपाल पुष्टि करता है कि वह पात्र है या अपात्र।
पात्रता निर्धारित होने के बाद संबंधित विवरण उपनिदेशक कृषि के लॉगइन में फॉरवर्ड करते हैं। तहसील से कृषि विभाग के लॉगइन में संबंधित किसान को पात्र होने की पुष्टि पर प्रक्रिया आगे बढ़ायी जाती है। बीते मंगलवार को सूबे के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही में स्वयं की स्वीकार किया कि लाखों की संख्या में अपात्र लोग किसान सम्मान निधि का लाभ ले रहे थे और उनसे वसूली की जा रही है। रोचक यह कि स्कीम के कई किश्त लेने वालों के धनराशि वापस तो ली जा रही है लेकिन उन अपात्रों को सरकारी कागजों पर पात्र घोषित करने वाले लेखपालों को हैरतअंगेज ढंग से नजरअंदाज किया जा रहा है। चर्चा है कि लेखपालों को इस प्रकरण के दूर रखने के कई कारण हैं जिनका खुलासा अफसर नहीं कर पा रहे हैं।