Nagpanchami: परंपराओं, अध्यात्म और प्राचीनता की नगरी काशी हर मोड़ पर एक नए रहस्य को अपने भीतर समेटे हुए है। काशी में एक ऐसा स्थान भी है जो केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि रहस्य और चमत्कार का अद्भुत संगम भी है। सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी नाग पंचमी के शुभ अवसर पर श्रद्धालुओं का हुजूम उस स्थान की ओर उमड़ता है, जिसे नागलोक का द्वार कहा जाता है—यह स्थान है वाराणसी के जैतपुरा क्षेत्र में स्थित नागकूप, काशी में एक ऐसा अलौकिक तीर्थ, जिसके रहस्य आज तक सुलझे नहीं और लोगों को हैरान कर देते हैं।
Highlight
कल्पना कीजिए एक ऐसे कुएं की, जिसकी गहराई का आज तक कोई अंदाज़ा नहीं लगा पाया। एक ऐसा स्थान जिसका करकोटक नाग तीर्थ के नाम से पुराणों में भी वर्णन मिलता है। मान्यता है कि यह कुआं सीधे पाताल लोक और नागलोक तक जाता है और इसके गर्भ में निवास करते हैं स्वयं तक्षक नाग। हर साल नाग पंचमी के दिन जब श्रद्धालु यहाँ आते हैं, तो सिर्फ दर्शन मात्र से ही कालसर्प दोष जैसे गंभीर ज्योतिषीय दोष से मुक्ति मिल जाती है।
नागकूप है नागलोक का दरवाजा
इस रहस्यमयी कुँए के बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी गहराई कितनी है आज तक किसी को नही पता। ऐसा कहा जाता है कि यह कुआँ (Nagpanchami) सीधा पाताल और नागलोक तक जाती है व इस कुएं का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। इसे ‘करकोटक नाग तीर्थ’ के नाम से जाना जाता है। इस नाग कुंड को नाग लोक का दरवाजा बताया जाता है।

नागकुआँ के महत्त्व को बताते हुए आचार्य कुंदन ने बताया कि यह नागकूप कालसर्प दोष से मुक्ति का केंद्र है। उसके लिए यहां पूजन करवाना सर्वोत्तम है। इसके लिए पुराणों में नासिक, उज्जैन और काशी तीन जगह है। जिसमें से यह नागकूप सर्वप्रथम स्थान है। यहां का पानी ले जाकर घरों में छिड़कने से सांपदंश से भी सुरक्षा होती है।

जितना अद्दभुत नागकुआँ का रहस्य है, उतनी ही अनूठी इसकी संरचना भी है। चारों दिशाओं (Nagpanchami) से उतरती सीढ़ियों के बीच सात गहरे कुएं हैं, जिनकी कुल गहराई लगभग 100 फीट मानी जाती है। दक्षिण की ओर 40 सीढ़ियां, पश्चिम से 37, और उत्तर-पूर्व से 60 सीढ़ियों के जरिए श्रद्धालु नीचे उतरकर नागेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं। यह वही शिवलिंग है जो सदैव जल में डूबा रहता है और ये जल, जो न जाने कहां से आता है किसी को कुछ नहीं पता।
Nagpanchami: काल सर्प दोष से मिलता है छुटकारा
मान्यता यह है कि यह कुंआ पाताल लोक से जुड़ा है। इस कुए को नागों का घर भी कहा जाता है। श्रद्धालुओं की मानें तो तक्षक नाग इसी कुएं में निवास करते हैं और जो भी व्यक्ति यहाँ दर्शन करता है उसके दर्शन मात्र से ही काल सर्प दोष समाप्त हो जाता है। वहीं कहा ऐसा भी जाता है कि यहाँ दर्शन करने से अकाल मृत्यु का कारण भी खत्म हो जाता है।

नागकूप में पानी आने का रहस्य आश्चर्यचकित
माना जाता है कि पूरी दुनिया में केवल 3 ही जगह कालसर्प दोष की पूजा होती है, उनमें यह नाग कुआं पहले स्थान पर है। कुआं के अंदर शिवलिंग हमेशा पानी में डूबा रहता है। नागपंचमी (Nagpanchami) के दिन होने वाले मेले से पहले पंप द्वारा कुएं का सारा पानी बाहर निकाला जाता है। उसके बाद कुँए में स्थापित शिवलिंग का विधि-विधान से पूजा की जाती है। लेकिन रहस्य की बात यह है कि इस पुरी प्रक्रिया के बाद करीब एक घंटे के अंदर अपने आप कुँए में पानी वापस भर जाता है।

जल के छिडकाव से मिलती है दोषों से मुक्ति
श्रद्धालु यहां आकर नागेश्वर महादेव को दूध, लावा और तुलसी की माला से पूजा करते हैं, क्योंकि शेषनाग को तुलसी बहुत प्रिय है। नाग पंचमी (Nagpanchami) के दिन श्रद्धालु यहाँ आकर कूप में विराजमान नागेश्वर महादेव के दर्शन करते है। कहते है जिस किसी भी व्यक्ति को स्वप्न में बार-बार सर्प या नाग देवता के दर्शन होते हैं, इस कुंड का जल घर में छिड़काव करने से इन दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

महर्षि पतंजलि ने की थी स्थापना
पौराणिक मान्यता है कि इस स्थल की स्थापना स्वयं महर्षि पतंजलि ने की थी। जैतपुरा स्थित इस नागकूप (Nagpanchami) को पतंजलि की शास्त्रार्थ परंपरा और योग परंपरा का उद्गम भी माना जाता है। यही कारण है कि आज भी इस स्थान पर सदियों पुरानी वैदिक परंपराएं जीवंत रूप से निभाई जाती हैं।