International Girl Day: अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर दखल संगठन के ओर से कैंट स्टेशन पर बुधवार देर रात ‘मेरी रात मेरी सड़कें’ नुक्कड़ नाटक का मंचन किया गया। जिसमें महिलाओं से संबंधित समाज के विभिन्न मुद्दों को उठाया गया। इस कार्यक्रम के काशी विद्यापीठ व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की कई छात्राओं ने भाग लिया।
नुक्कड़ नाटक में शामिल युवतियों व महिलाओं ने हाथों में तख्ती व बैनर लेकर सड़कों पर महिलाओं के हक को अपनी आवाज़ बुलंद की। आंदोलनकारी मेधा पाटेकर भी महिलाओं के इस कार्यक्रम से जुड़ीं। उन्होंने कमला भसीन का गीत सुना के नारीवादी विमर्श के विषय पर अपनी बात रखी।
कार्यक्रम का उद्देश्य बताते हुए काशी विद्यापीठ छात्रा व संगठन से जुडी शिवांगी [International Girl Day] ने बताया कि आज़ादी मिले हुए 75 साल हो गए। वोट डालने का अधिकार मिला। पढ़ने लिखने, काम करने कमाने का अधिकार मिला। संपत्ति में क़ानूनी हक़ मिला। अपने मर्जी का जीवन साथी चुनने का अधिकार मिला। आधा अधूरा ही सही लेकिन सबसे बड़ी पंचायत ‘ संसद ‘ में हम महिलाओ के लिए आरक्षण की भी बात हो रही है। लेकिन इन क़ानूनी कछुवाचालों के बीच समाज का अपना एक जड़ ढाँचा है। जो सभी अधिकारों पर कुंडली मारकर बैठ जाता है। बाते सिर्फ किताबी रह जाती है।

हम बनारस की सड़को पर, गंगा घाट पर गीत संगीत कविता कहानियों के साथ अपने हक़ की, हिस्से की सड़क मांगने के लिए जुटते हैं। आज इन्हीं बातो को सोचते समझते हुए हम रेलवे स्टेशन पर जुटे हैं। हम चाहते हैं कि बनारस में हो रही ये बात देश विदेश से आने जाने वाले मेहमान [International Girl Day] भी सुने देखें और बराबरी के लिए किये जाने वाले इस कोशिश में सब जुड़ें।
International Girl Day: भारत का हृदय महासागर जैसा
सभा के दौरान बीएचयू में समाजशास्त्र की प्रोफेसर डॉ० प्रतिमा गोंड ने कहा कि भारत की स्त्री [International Girl Day] के हृदय में महासागर जैसा धीरज है। उसने खुद के साथ हुई बेईमानी की शिकायत नहीं की और सिर्फ अपने फायदे के बारे में कभी नहीं सोचा। उसने नदियों की तरह सब की भलाई के लिए काम किया है और मुश्किल वक्त में हिमालय की तरह अडिग रही । लेकिन मेरा स्पष्ट मानना है की महिलाओं के साथ भेदभाव और अन्याय आज भी है और कंही अधिक संगठित और संस्थागत है।

मुंबई से आई युवा सामाजिक कार्यकर्त्ता गुड्डी ने कहा कि स्त्री की मेहनत, स्त्री की गरिमा और स्त्री के त्याग की पहचान करके ही हम लोग मनुष्यता की परीक्षा में पास हो सकते हैं। आजादी की लड़ाई और नए भारत के निर्माण के हर मोर्चे पर स्त्री, पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है। वह उम्मीदों, आकांक्षा, तकलीफों और घर गृहस्ती के बोझ के नीचे नहीं दबी।

कस्तूरबा, सरोजिनी नायडू, दुर्गा भाभी, सावित्री बाई फुले, सुचेता कृपलानी, अरुणा आसिफ अली, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर और उनके साथ तमाम लाखों लाखों महिलाओं से लेकर आज की तारीख तक स्त्री ने कठिन समय में हर बार महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, ज्योतिबा फुले, सरदार पटेल, बाबा साहब अंबेडकर और मौलाना आजाद के सपनों को जमीन पर उतार कर दिखाया है।
सभा व मार्च में मुख्य रूप से मेधा पाटेकर, डॉ० प्रतिमा गोंड, डॉ० इंदु पांडेय, नीति, गुड्डी, मैत्री, शालिनी, शिवांगी, आन्या , शबनम, दीक्षा काजल, मृदुला आदि शामिल रहीं।