- कर्पूरी ठाकुर ने कहा था ‘अधिकार चाहते हैं तो लड़ना सीखें’
- दशकों की राजनीति के बाद भी एक इंच जमीन नहीं खरीदी
बिहार की राजनीति का वो ध्रुव सितारा, जिसकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की आज भी कसमें खायी जाती हैं। दो बार बिहार का उप मुख्यमंत्री और दो बार सीएम रहते हुए जिसने अपने पीछे एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ी। वो नेता, जो आजादी से पहले आंदोलनों का प्रमुख केंद्र रहा और आजादी के बाद जिसने भारतीय राजनीति में सुचिता और ईमानदारी की नई पटकथा लिखी। जिनके राजनीतिक गुरु जेपी यानी जय प्रकाश नारायण और डॉ. लोहिया रहे। उनके साथियों में रामसेवक यादव एवं मधुलिमये जैसे दिग्गज थे, तो उनकी पाठशाला से लालू, नीतीश, राम विलास पासवान जैसे दिग्गज नेताओं का भारतीय राजनीति में उदय हुआ। जी हां, हम बात कर रहे हैं जननायक कर्पूरी ठाकुर की।
गुलाम भारत में कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को हुआ था और निधन 17 फरवरी 1988 को। कर्पूरी ठाकुर को सीएम बाद में पहले आजादी के आंदोलनों के नेता के तौर पर जाना जाता है। आजाद भारत में वो डिप्टी सीएम और दो बार सीएम बने। मुख्यमंत्री रहते पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण की आवाज उठायी और हमेशा इसके लिए लड़ते रहे। नेतृवर्ग अगर इसे गांठ बांधे तो उन्होंने खुद के लिए एक इंच भी जमीन नहीं रखी। वो जननायक जिसने कहा था अधिकार चाहते हो तो लड़ना सीखो। 24 जनवरी यानी आज समाजवादी नेता और जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती है।
15 साल की उम्र में जेल, 26 महीने सलाखों के पीछे
गुलाम भारत में जब गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का आहृवान किया तो उसमें बढ़चढ़ कर भाग लिया और महज 15 साल की उम्र में जेल गये और जेल में 26 महीने काटे। आजादी के समय पटना की कृष्णा टॉकीज के हॉल में छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने एक क्रांतिकारी भाषण दिया था। कहा था कि हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा। हालांकि इस इस भाषण के कारण उन्हें दण्ड भी झेलनी पड़ी थी।

जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो संसद को चुनौती मिलेगी
जनता की समस्याओं और अनके अधिकारों को लेकर जमीनी लड़ाई लड़ने वाले कर्पूरी ठाकुर ने कहा था कि अगर जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो जनता आज-नहीं तो कल संसद के विशेषाधिकारों भी को चुनौती देगी। कर्पूरी ठाकुर का चिर परिचित नारा था.. ‘अधिकार की चाहत है तो लड़ना सीखो, पग-पग पर अड़ना सीखो, जीना है तो मरना सीखो।
नौकरी की सिफारिश पर बहनोई को फटकारा
उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में सुनने को मिलते हैं। बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते के बहनोई नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। फिर अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, जाइए, उस्तरा आदि खरीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए। कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं भूले। पत्र में तीन ही बातें लिखीं-पहला, तुम इससे प्रभावित नहीं होना कि तुम्हारे पिता सीएम हैं। कोई लोभ-लालच देगा, तो उसमें मत आना। मेरी बदनामी होगी।

सीएम रहते उनके पिता को दबंगों ने पीटा
ये घटना राजनीति को दबंगई का पर्याय मानने वालों के लिए सबक जैसी है। एक बार कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए ही उनके क्षेत्र के कुछ सामंती सोच वालों ने उनके पिता को सेवा के लिये बुलाया। जब वे बीमार होने के नाते नहीं पहुंच सके तो जमींदार ने अपने लठैतों से मारपीट कर लाने का आदेश दिया। जिसकी सूचना किसी प्रकार जिला प्रशासन को हो गयी। तुरन्त जिला प्रशासन कर्पूरी ठाकुर के घर पहुंच गया और लठैतों को बंदी बना लिया। किन्तु कर्पूरी ठाकुर ने सभी लठैतों को जिला प्रशाशन से बिना शर्त छोड़ने को कहा। कर्पूरी ठाकुर ने उस वक्त कहा था कि इस प्रकार के पता नही कितने असहाय लाचार एवं शोषित लोग प्रतिदिन लाठियां खाकर दम तोड़ते हैं। किस-किस को बचाओगे। क्या सभी मुख्यमंत्री के मां बाप हैं। इनको इसलिये दंडित किया जा रहा है कि इन्होंने मुख्यमंत्री के पिता को उत्पीड़ित किया है, सामान्य जनता को कौन बचायेगा। जाओ प्रदेश के कोने कोने में शोषण उत्पीड़न के खिलाफ अभियान चलाओ और एक भी परिवार सामंतों के जुल्मो सितम का शिकार न होने पाये। इसके बाद लठैतों को कर्पूरी ठाकुर ने छुड़वा दिया। कहने का गर्ज ये कि उनका मानना था कि लोगों की मानसिकता बदलनी जरूरी है। ऐसा होने पर किसी प्रशासन की कड़ाई की जरूरत नहीं रह जाएगी।
रिक्शे से चलने वाले सीएम थे कर्पूरी ठाकुर
एक बार उप मुख्यमंत्री और दो बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे। क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती। कहा जाता है कि उनके निधन पर जब हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे तो उनकी पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे। जबकि 1952 से लगातार विधायक रहते और दो बार सीएम रहते उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया। सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने उनसे कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए। उन्होंने साफ मना कर दिया। तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए आप नहीं तो आपके बाल-बच्चे कहां रहेंगे। कर्पूरी ठाकुर ने कहा, गांव में।

बेटी की शादी में किसी को आमंत्रित नहीं किया
1970-71 में कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री थे। रांची के एक गांव में उन्हें वर देखने जाना था। कर्पूरी ठाकुर सरकारी गाड़ी से नहीं जाकर वहां टैक्सी से गये थे। शादी समस्तीपुर जिला स्थित उनके पुश्तैनी गांव पितौंजिया में हुई। कर्पूरी ठाकुर चाहते थे कि शादी देवघर मंदिर में हो, पर उनकी पत्नी की जिद पर गांव में शादी हुई। कर्पूरी ठाकुर ने अपने मंत्रिमंडल के किसी सदस्य को भी उस शादी में आमंत्रित नहीं किया था। जबकि आज के नेता करोड़ों रुपये खर्च करने में शान शौकत समझते हैं।
46 साल पहले कर्पूरी ठाकुर ने लागू की थी शराबबंदी
कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में जून 1977 में शराबबंदी का ऐलान किया। इस ऐलान से गरीबों व मजदूरों में खुशी की लहर दौड़ गई। उनके इस फैसले के बाद वे एक खास तबके के दुश्मन बन गए। कर्पूरी ठाकुर के इस फैसले के बाद बिहार में शराब माफिया सक्रिय हो गए और उनके खिलाफ लॉबिंग शुरू हो गयी। इस धंधे में शामिल दबंगों और माफिया को पीछे से कर्पूरी ठाकुर के विरोधियों का सपोर्ट भी मिलने लगा। उसके बाद बिहार में एक नया आर्थिक तंत्र पनपने लगा। बिहार में अवैध शराब की खेप आने लगी। शराब माफिया ने राजनीतिक दवाब बनाने का खेल शुरू किया। उसके बाद महज ढाई साल में कर्पूरी ठाकुर को 21 अप्रैल 1979 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद नई सरकार ने आते ही शराबबंदी कानून को खत्म कर दिया।