Kashi Vishwanath Vivah: महाशिवरात्रि पर बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ और माता गौरा की वर-वधु के रूप में राजसी शृंगार किया गया। दूल्हा बने बाबा की प्रतिमा को सेहरा पहनाया गया. वहीं माता गौरा मदुरै से मंगवायी गई खास लाल लहंगे में सजीं।
टेढीनीम महंत आवास पर साढ़े तीन सौ वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही लोकपरंपरा के अनुसार पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने दोपहर में मातृका पूजन की परंपरा [Kashi Vishwanath Vivah] का निर्वाह किया। पारंपरिक वैवाहिक गीतों की गूंज इस दौरान होती रही। इसके बाद करीब चार सौ साल पुराने स्फटिक के शिवलिंग को आंटे से चौक पूर कर पीतल की परात में रखा गया।

इसके उपरांत वैदिक ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चार के माध्यम से सभी देवी-देवताओं से शिव के विवाह में शामिल होने का आमंत्रण दिया गया। बाबा और गौरा की प्रतिमा की सायंकाल आरती की। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में पं. वाचस्पति तिवारी ने सपत्नीक रुद्राभिषेक किया। दोपहर में फलाहार का भोग लगाया गया। भोग आरती के बाद संजीवरत्न मिश्र ने बाबा एवं माता की चल प्रतिमा का राजसी शृंगार किया।
Kashi Vishwanath Vivah: 20 मार्च को होगा गौना का रस्म
सायंकाल श्रद्धालु महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल भक्तिमय कर दिया। रात्रि में मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती के विधान पूर्ण किए गए। डॉ० तिवारी ने बताया कि 20 मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर माता के गौना की रस्म निभाई जाएगी।