Mahamurkh Sammelan: परम्परा के अनुरूप हर साल एक अप्रैल को महामूर्ख मेला का आयोजन काशी के गंगा के तट पर किया जाता है। शांत सदानीरा का तट हंसी ठहाकों के बीच देर रात तक लोगों के आवागमन से हिलोरे मारता है। हर साल हंसी ठिठौली की अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, इस दौरान कवियों ने अपने व्यंग्य और शेर ओ शायरी से महफिल में समां बांधा।
अद्भुत शहर बनारस में हर कुछ अद्भुत होता है और इस अद्भुत तरह के आयोजनों की शृंखला में एक अप्रैल यानी मूर्ख दिवस के दिन राजेंद्र प्रसाद घाट पर बने ओपन थिएटर यानी घाटों की सीढ़िया पर मौजूद लोगों की भारी भीड़ के बीच महामूर्ख मेले का आयोजन हुआ।

दरअसल शनिवार गोष्ठी नाम की साहित्यिक संस्था की तरफ से इस आयोजन को पूरा कराया जाता है। जिसमें सुदामा तिवारी जिन्हें सांड बनारसी के नाम से जाना जाता है, उनके संरक्षण में यह आयोजन विगत कई साल से किया जा रहा है, इस वर्ष भी एकअप्रैल को मूर्ख दिवस के दिन यह आयोजन पूरा हुआ। काशी के प्रसिद्ध नगाड़े की थाप पर गधे की आवाज के साथ शुरू होने वाले इस आयोजन में सब कुछ अनूठा था।
Mahamurkh Sammelan: दुल्हन थी डॉ. शिव शक्ति दूल्हा थे डॉ.नेहा
दुल्हन की जगह लड़का दूल्हे की जगह लड़की और पंडित जी की जगह कवि। आयोजन का प्रारंभ गर्दभ ध्वनि हुआ तो मंडप में दूल्हा बने हुए नारी का सम्मान किया गया, वहीं दुल्हन बने पुरुष को सोलहो श्रृंगार करके दुल्हन बनाया गया। यद्यपि पूर्वजों ने इस बात की सिद्धि की है कि व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी मूर्खता विवाह है। इसी को आदर्श वाक्य मानते हुए, यहां पुरुष दुल्हन और स्त्री दूल्हा का उल्टा पलटा विवाह गड़बड़ मंत्रोचार से कराया गया। बाद में दूल्हे ने यह आरोप लगाया कि दुल्हन की मूंछें है और दुल्हन टकली हैं। फिर भी समाज के मूर्ख जनों द्वारा शादी किसी तरह बचा कर रखने की सलाह दी लेकिन अंतत विवाह विच्छेद हो गया।

इसके उपरांत मंच काशी की नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाते हुए स्तुति सेठ, अदिति शर्मा व स्तुति ने लोक नृत्य कालबेलिया की प्रस्तुति की। उत्तर प्रदेश पुलिस व साइबर क्राइम पुलिस के प्रतिनिधियों ने साइबर क्राइम पर अपना पक्ष रखकर उपस्थित उन मूर्षों को जागरूक किया जिन को साइबर ठग लूट लिया करते हैं जिससे वे दोबारा मूर्ख ना बन सके। देश के ख्याति प्राप्त स्वधन्य रचनाकारों को, हास्य कवियों को कलाकारों को थीम पर आधारित हथकड़ी के रूप उपहार स्वरूप भौंट देकर, दुपट्टा, स्मृति चिन्ह, माला इत्यादि से उनका सम्मान किया गया। नाउन के रूप में थे प्रतीण विश्वास पुरोहित के रूप में थे बृजेश सिंह पाठक “बड़कू पंडित।
हास्य कवि सम्मेलन प्रारंभ होने से लेकर मध्य रात्रि तक लोग ठहाके लगाते रहे और मनहूसियत अगले एक साल तक के लिए दूर भगते रहे। काव्य पाठ करने वाले कवियों में मुख्य रूप से अखिलेश द्विवेदी, सौरभ जैन सुमन, बिहारी लाल अंबर, सुदीप भौला, बादशाह प्रेमी, संजय सिंह, श्याम लाल यादव, महेश चंद्र जायसवाल व डॉ प्रशांत सिंह थे । इन्होंने अपनी रचना सुना कर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। कार्यक्रम का संचालन दमदार बनारसी ने किया।

ये पढ़ी गयी रचनाएं
कवि विनोद पाल – खुद अपने चरित्र पर ही मूंग दल रहे हो तुम अच्छे हो तो क्यूँ फितरत बदल रहें हो तुम अगर लड़की तुम्हें देखके रस्ता बदल रही है तो ये जान लो गलत रस्ते पर चल रहे हो तुम।

महेश चंद्र – गयल जमाना अबेंस्डर क, अंपाला भी रोअत हव। आज क राजा बेंज सफारी, आज क राजा रोवर हव । चाहे रक्खा बीएमडब्ल्यू, चाहे कुछ भौकाल गढ़ा। सब गाड़ियन क ऐसी तैसी, सबसे हिट बूल्डोजर हव। डॉ प्रशांत सिंह – मोबाइल के दौर में चला रील का ट्रेंड फॉलोवर तो बढ़ गये दोस्त हुए अनफ्रेंड । सीमित गर ना हुआ तकनीकी उपयोग रिश्तों को खा जाएगा मोबाइल का रोग ।
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