- काशी में कम उम्र में ही गायन में अर्जित कर ली है ख्याति
- बोले- ‘हम युगलबंदी की परम्परा को बढ़ाना चाहते हैं’
- हमारा सौभाग्य है कि हम बनारस के संगीत घराने में जन्म लिये
राधेश्याम कमल
वाराणसी। काशी के युवा कलाकारों की नई जोड़ियों में राहुल-रोहित मिश्र बनारस संगीत घराने के सम्मानित परिवार से ताल्लुक रखते हैं। वैसे तो बनारस घराने में गायन के क्षेत्र में कई जोड़ियां पहले भी रही और आज भी हैं। इनमें अमरनाथ-पशुपतिनाथ मिश्र, पं. राजन-साजन मिश्र का नाम सर्वोपरि माना जाता है। कोरोना काल के दौरान प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. राजन मिश्र का अचानक निधन से उनकी जोड़ी पर एक असर तो जरुर पड़ा लेकिन उनके भाई पं. साजन मिश्र ने उसे टूटने नहीं दिया। पं. राजन मिश्र हालांकि अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन पं. साजन मिश्र उसे अभी भी बरकरार रखे हुये हैं। पं. राजन मिश्र के दोनों पुत्र रितेश-रजनीश ने इस विरासत को संभाल रखा है। पं. साजन मिश्र के पुत्र स्वरांश भी अपने पिता के पदचिह्नों पर लगातार अग्रसर होकर ख्याति अर्जित कर रहे हैं। इन कलाकारों के बीच में जो नई युवा जोड़ी उभर कर सामने आयी है वह है राहुल-रोहित मिश्र की जोड़ी। जो निरंतर बनारस घराने की परम्परा को समृद्ध करने में जुटी हुई है। उन्होंने कम उम्र और कम समय में ही युगलबंदी में जो ख्याति अर्जित की है वह किसी युवा कलाकार के लिए कम नहीं है। राहुल-रोहित से उनके कबीरचौरा स्थित आवास पर खास मुलाकात हुई। इस दौरान उनसे संगीत के परिप्रेक्ष्य में लंबी बातचीत हुई।
पद्मविभूषण गिरिजा देवी से बंधवाया गंडा
राहुल-रोहित मिश्र ने प्रख्यात शास्त्रीय गायिका पद्मविभूषण गिरिजा देवी से गंडा बंधवाया है। राहुल-रोहित मिश्र के दादा स्व. पं बैजनाथ प्रसाद मिश्र सारंगी के बनारस घराने के महान कलाकार रहे। जबकि नाना तबला सम्राट स्व पं शारदा सहाय थे जो कि पं राम सहाय के प्रत्यक्ष वंशज- जो स्वयं बनारस शैली के तबला वादन के संस्थापक थे। राहुल-रोहित संगीतज्ञ पं त्रिलोकीनाथ मिश्र के पुत्र और स्व. पद्मविभूषण गिरिजा देवी के “गंडाबंध शिष्य” हैं। जो स्वयं उनके पर दादा स्वर्गीय पं सरजू प्रसाद मिश्र की शिष्या थीं ।

गायन सीखने के लिए गिरिजा देवी के यहां गुजार दिया बचपन
गायन सीखने के लिए राहुल-रोहित मिश्र ने अपना पूरा बचपन पद्मविभूषण स्व. गिरिजा देवी के संजय गांधी नगर कालोनी काटन मिल में गुजार दी। बचपन से लेकर युवावस्था तक अप्पाजी के सानिध्य में रहने के बाद राहुल-रोहित मिश्र जब मंचों पर पदार्पण किया तो वह सचमुच एक तराशे हुए हीरे की तरह निकले। राहुल मिश्र बताते हैं कि जिस गुरु से हमने सीखा उसी गुरु से रोहित ने भी सीखा। हम लोगों का न तो मत अलग है और न ही संगीत। हम लोगों का व्यक्तित्व थोड़ा अलग हो सकता है लेकिन संगीत में हम दोनों एक ही हैं। देखा जाय तो हम दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। कहा कि हर कलाकारोें को पुरस्कार की चाहत है लेकिन वह सही तरीके से मिले तो अच्छा है। कहा कि असली पुरस्कार तो पब्लिक का प्यार है वह पुरस्कार आपकी आत्मा को सुकून देता है।

संकटमोचन संगीत समारोह से की शुरुआत
राहुल-रोहित मिश्र ने प्रसिद्ध संकटमोचन संगीत समारोह में 2011 में शुरुआत की। इसके बाद 2017-18 से मंचों पर नियमित हो गये। वे बताते हैं कि उनके सर्वप्रथम गुरु व पिता संगीतज्ञ पं. त्रिलोकीनाथ मिश्र रहे। उन्होंने पिता से संगीत की कई बारीकियों को सीखा। इसके बाद उन्होंने पं. राजेश्वर प्रसाद मिश्र से संगीत की जानकारी हासिल की। वर्ष 2005 में वह पद्मविभूषण गिरिजा देवी के यहां रह कर युगलबंदी की बारीकियों को सीखा। रोहित मिश्र बताते हैं कि काशी में युगलबंदी की परम्परा बहुत ही पुरानी है। हम दोनों भाई इस युगलबंदी की परम्परा को और भी आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमें बहुत अच्छा लग रहा है कि हम बनारस घराने की इस परम्परा को समृद्ध करने में जुटे हुए हैं। कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हम बनारस में पैदा हुए। बड़े पिता पं. धर्मनाथ मिश्र, पं. कामेश्वरनाथ मिश्र, नाना पं. शारदा सहाय रहे। इनके अलावा पं. राजन-साजन मिश्र, पं. कन्हैयालाल मिश्र के अलावा सामता प्रसाद मिश्र गुदई महराज के पुत्र का भी स्नेह मिला। हमारे परदादा पं. सरजू प्रसाद मिश्र रहे।

पं. राजन-साजन मिश्र ने की थी गायन की तारीफ
वे बताते हैं कि वर्ष 2011 में संकटमोचन संगीत समारोह में युगलबंदी पेश करने के बाद प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. राजन-साजन मिश्र ने उन दोनों की तारीफ करते हुए कहा था कि बनारस में संगीत के क्षेत्र में एक अच्छी जोड़ी आयी है। वे बताते हैं कि जब कभी भी पं. राजन-साजन मिश्र का गायन होता था तो हम उन्हें सुनने के लिए अक्सर जाया करते थे। इससे हमें सीखने का मौका मिलता था। उन्होंने पूरी दुनिया को बताया कि यहां पर ख्याल गायकी भी है। राहुल-रोहित मिश्र ने तानसेन संगीत समारोह, कालीदास संगीत समारोह, दिल्ली ठुमरी फेस्टिवल समेत कई समारोहों में युगलबंदी कर चुके हैं। राहुल और रोहित हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अधिकांश रूपों में प्रशिक्षित हैं। जो बनारस घराने के विशिष्ट हैं, जिनमें ख्याल, ठुमरी, टप्पा, दादरा, चैती, कजरी, होरी, भजन आदि शामिल हैं। राहुल-रोहित मिश्र प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से प्रवीण की डिग्री हासिल की है। इसके अलावा संस्कृति मंत्रालय से राष्ट्रीय छात्रवृत्ति धारक हैं। 2014 में, राहुल-रोहित मिश्र ने एक फ्यूजन एलबम में वर की गायक / गीतकार के साथ काम किया, जिसमें उनका मुख्य शास्त्रीय संगीत की शैली का प्रदर्शन किया गया था। राहुल-रोहित मिश्र के साथ ‘देस परदेस बैंड’ नामक बैंड के सह-संस्थापक भी हैं, जो कि लीजेंडरी म्यूजिक कंपोजर ए.आर. रहमान की संगीत कंपनी “क्यूकी” का हिस्सा बनने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय फ्यूजन बैंड है। राहुल- रोहित न केवल वे अपने पूर्वजों के संगीत का प्रसार कर रहे हैं और जो उपहार उन्हें अपने गुरु से हिंदुस्तानी वोकल क्लासिकल के क्षेत्र में मिला है, बल्कि इसे विश्व और संगीत के अन्य रूपों में भी फैला रहे हैं।