Rakshabandhan: देशभर में रक्षाबंधन की धूम है। मुहूर्त के अनुसार, इस वर्ष रक्षाबंधन दो दिन मनाया जा रहा है। यानि, कई जगहों पर गुरुवार, तो कई जगहों पर बुधवार को ही मना लिया गया। रक्षाबंधन पर बहनें अपने भाई के लम्बी उम्र की प्रार्थना करती हैं, वहीं भाई भी बहन को आजीवन रक्षा का वचन देते हैं। बहनें थाल सजाकर आरती करती हैं और भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं।
क्या आपको पता है कि रक्षाबंधन (Rakshabandhan) का इतिहास सैकड़ों नहीं, बल्कि हजारों वर्ष पुराना है। भाई बहन के प्रेम का प्रतीक यह त्योहार आदि काल से मनाया जाता है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इस रक्षाबंधन की शुरुआत भगवती लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर की थी। सतयुग में ही मां लक्ष्मी ने इस परंपरा की शुरुआत कर दी थी। जिसके बाद यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। इस त्योहार से जुड़ी ढेरों कथाएं हैं, जो हिन्दू धर्म में प्रचलित हैं। आज इन्हीं कथाओं के जरिए हम रक्षाबंधन के इतिहास को जानेंगे।
Rakshabandhan: देवरानी ने अपने पति देवराज इंद्र को बांधी राखी
भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार, देवताओ के राजा इंद्र की पत्नी ने एक बार अपने पति को राखी बांधी थी। एक बार देवताओं और दानवों में भयंकर युद्ध हुआ। जिसके बाद देवगुरु बृहस्पति के कहने पर देवराज की पत्नी शुचि ने उनकी कलाई पर रक्षासूत्र (Rakshabandhan) बांधा था। तब इंद्र ने रक्षासूत्र की शक्ति से स्वयं और अपनी सेना के प्राण बचाए थे।
भगवती लक्ष्मी ने बांधी राजा बलि को राखी
रजा बलि का दान इतिहास में प्रख्यात है। जब भगवान विष्णु वामन अवतार में राजा बलि का अहंकार नापने के लिए दो पग में संसार को नाप लिया। उसके बाद उन्होंने तीसरे पग के लिए अपना सिर आगे कर दिया। राजा बलि समझ चुके थे कि भगवान उनकी परीक्षा लेने आए हैं। उन्होंने भगवन से प्रार्थना किया कि अब तो मेरा संसार चला गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकार करें और मेरे साथ चलकर पाताल में रहें। भगवान को भी भक्त की इच्छा माननी पड़ी और जगत के पालनहार भगवन विष्णु वैकुण्ठ छोड़कर पाताल चले गए।

जब भगवती लक्ष्मी को इस बात की जानकारी हुई, तो वे गरीब महिला का वेश धारण कर पाताल पहुंची और बलि को राखी (Rakshabandhan) बांध दी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात श्रीहरि हैं और मुझे वही चाहिए। इस पर बलि ने भगवान विष्णु से माता लक्ष्मी के साथ जाने की विनती की। तब जाते वक्त भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीने चर्तुमास के रूप में जाने जाते हैं।
Highlights
द्रौपदी ने श्री कृष्ण को बांधा रक्षा सूत्र, योगेश्वर ने रखी द्रौपदी की लाज
द्वापर में जब युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ कर रहे थे उस समय सभा में शिशुपाल भी मौजूद था। शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया। लौटते वक्त सुदर्शन चक्र से भवन कृष्ण की छोटी उंगली घायल हो गई और रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर लपेट दिया। तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह इस रक्षा सूत्र (Rakshabandhan) का वचन निभाएंगे।

इसके बाद जब कौरवों ने द्रौपदी का चीरहरण किया तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी की लाज रखी। मान्यता है कि जिस दिन द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर साड़ी का पल्लू बांधा था वह श्रावण पूर्णिमा ही थी।
रानी कर्णावती ने भेजी हुमांयू को राखी
मध्यकालीन भारत में यह पर्व (Rakshabandhan) समाज के हर हिस्से में मनाया जाने लगा। इसका श्रेय जाता है रानी कर्णावती को। यह तब की बात है, जब देश में चारों ओर राजाओं में एक दूसरे का राज्य हथियाने के लिए मारकाट चल रही थी। मेवाड़ पर महाराज की विधवा रानी कर्णावती राजगद्दी पर बैठी थीं। गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह उनके राज्य पर नजरें गड़ाए बैठा था। तब रानी ने हुमायूं को भाई मानकर राखी भेजी। हुमायूं ने बहादुर शाह से रानी कर्णावती के राज्य की रक्षा की और राखी की लाज रखी।
