Raseshwar Mahadev: सावन में समूची काशी शिवमय हो गई है। चहुँओर हर हर महादेव और बोल बम का नारा गूंज रहा है। गूंजे भी क्यों नहीं, यह महादेव की नगरी जो है। काशी में 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं और हर ज्योतिर्लिंग व शिवलिंग की अपनी अलग-अलग महिमा है।
काशी में प्रति किमी पर एक शिवलिंग तो मिल ही जाएंगे। पक्के महाल में तो घर-घर शिव की पूजा आराधना होती है। यहां के अधिकतर घरों में भगवान शिव की प्रतिमा अथवा शिवलिंग मिल जाएंगे। यहां शिव की विभिन्न स्वरूपों में पूजा होती है। इसी क्रम में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव को औषधि अर्पित की जाती है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय में स्थापित रसेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव को औषधि का भोग लगाया जाता है। वैसे तो शिवालय के लोग फूल, बेलपत्र, धतूरा, दूध माला चंदन घी शहद भगवान भोलेनाथ को समर्पित करते हैं परंतु इस शिवलिंग पर औषधि समर्पित किया जाता है।

आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण प्रक्रिया के तहत भस्मों के पाक के क्रम में अघोरेश्वर शिव की आराधना के लिए 1950-60 में प्रो। दत्तात्रेय अनंत कुलकर्णी ने पुराने आर्युवेदिक फार्मेसी विभाग में रस शास्त्रीय प्रक्रियाओं के लिए शिव आराधना के लिए मंदिर का निर्माण कराया था। भगवान भोलेनाथ को औषधियों का जनक कहा जाता है। इसी उद्देश्य से “रसेश्वर महादेव मंदिर” का निर्माण कराया गया। मंदिर में भगवान शिव, मां पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की प्रतिमा के साथ ही महामना की प्रतिमा स्थापित किया गया है।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने की थी। उन्होंने लोगों से दान लेकर इसकी स्थापना की थी। उनके इसी बात को आत्मसात करते हुए विज्ञान संस्थान आर्युवेद संकाय के रस शास्त्र विभाग के प्रोफेसर आनंद कुमार ने भिक्षा के पैसे से रसेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना की। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 2016 में शुरू हुआ 21 फरवरी 2018 को बनकर तैयार हुआ।

Raseshwar Mahadev: औषधि मरीजों से पहले भगवान शिव धन्वन्तरी को लगता है भोग
बता दें कि महामना पं. मदनमोहन मालवीय ने समाज को शिक्षित करने के साथ ही लोगों को स्वस्थ रखने के लिए आर्युवेद चिकित्सा की स्थापना 1922 से 1932 के बीच बीएचयू में की थी। महामना अपनी दैनिक दिनचर्या के तहत आर्यवेदिक फार्मेसी का निरिक्षण भी करते थे। प्रोफेसर आनंद कुमार ने बताया कि रस शास्त्र विभाग में जो भी औषधि दवा बनती है उसे सर्वप्रथम औषधि के देवता भगवान भोलेनाथ और भगवान धन्वंतरि को समर्पित किया जाता है। इसके बाद ही यह लोगों को कष्ट निवारण के लिए दिया जाता है। यह मालवीय जी के द्वारा स्थापित परंपरा में से एक परंपरा है, जिसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है।

प्रोफेसर ने बताया कि कोविड काल में जिस समय देश परेशान था, उस समय हम लोगों द्वारा औषधि काढ़ा बनाया गया था और लोगों को प्राण दान दिया जा रहा था। रिसर्च स्कॉलर वैशाली गुप्ता ने बताया कि हम काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयुर्वेद डिपार्टमेंट के रस शास्त्र विभाग में रिसर्च कर रहे हैं और हम हर्बल क्रीम बना रहे हैं। हम लोग जो भी आयुर्वेदिक औषधि द्वारा दवा बनाते हैं या भस्म बनाते हैं उसे सबसे पहले हमारे कैंपस में स्थित रसेश्वर महादेव को अर्पित करते हैं।
हम लोगों का मानना है हम लोगों द्वारा जो भी औषधि गुड़ वाला दवा बनाते हैं, उसे सर्वप्रथम महादेव को समर्पित करते हैं। उन्होंने कहा कि हम लोगों के आराध्य देव भगवान शिव शंकर है और हम लोगों का विश्वास है कि जो भी दवा हम लोग बनाते हैं बनाने से पहले और बनाने के बाद उपयोग में लाने से पहले अर्पित करते हैं ताकि यह दवा का असर लोगों पर अच्छा और तत्काल हो।